विशेष : फुस्स हो गया 400 पार का चुनावी जुमला - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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मंगलवार, 4 जून 2024

विशेष : फुस्स हो गया 400 पार का चुनावी जुमला

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भाजपा ने अपने 38 सहयोगी दलों के साथ के साथ भले बहुमत हासिल कर लिया हो, लेकिन एक बात स्पष्ट है कि देश की जनता ने मोदी के जलवे को नकार दिया है। जनता ने बता दिया की बेरोजगारी, महंगाई, अपराध आज आज़ादी के बाद सबसे अधिक हैं, जबकि देश में सबसे ज्यादा युवा ऐसे हैं, जिनके लिए जिंदगी की आगे की राह बहुत मुश्किल होती जा रही है। न सिर्फ युवाओं को, बल्कि गृहस्थ लोगों को भी जिंदगी चलाना कितनी दूभर है, जब महंगाई भी आसमान छू रही है और हाथों में का नहीं है, या जिनके पास काम है भी, उसमें खर्च के मुकाबले आमदनी का रेशो या तो बहुत कम है या फिर बचत के नाम पर कुछ नहीं है। परेशानी का हाल ये है कि बड़ी संख्या में देश के किसान और मजदूर आत्महत्या कर रहे हैं, जिसके आंकड़े पिछले दो साल से सामने नहीं आ पा रहे हैं। महंगाई का नमूना पूरे देश ने चुनाव के नतीजे आने से दो दिन पहले ही देख लिया, जिसमें दूध पर पैसे बढ़े और टोल टैक्स भी बढ़ गया। कुछ जानकार कह रहे हैं कि पहले तो एनडीए की अगुवाई करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सरकार बनाने में बहुत मुश्किल आएगी और अगर किसी तरह उन्होंने सरकार बना भी ली, तो उन्हें इस बार जनता का गुस्सा और ज्यादा झेलना पड़ेगा, क्योंकि जिस प्रकार की स्थिति है, उसके हिसाब से अब महंगाई को वो कंट्रोल नहीं कर पाएंगे। क्योंकि चुनाव परिणाम आने के साथ-साथ जिस प्रकार से शेयर बाजार धड़ाम से गिरा है, उससे यह संकेत साफ हैं कि अब आम आदमी की जेब पर और ज्यादा बोझ पड़ने वाला है।


महंगाई की मार सिर्फ कई प्रदेशों  में 100 रुपए के पार बिकने वाले पेट्रोल और डीजल पर ही नहीं है, बल्कि बच्चों की पढ़ाई से लेकर घर में खाने तक पर है। दालों और सब्जियों की आसमान छूती कीमतें और तकरीबन हर चीज पर लगता टैक्स लोगों को बेहाल कर रहा है। 10 वर्षों तक 2014 से पहले 400 रुपए से भी कम में मिलने वाला एलपीजी गैस सिलेंडर 10 वर्षों में सब्सिडी खत्म होने के साथ-साथ 1100 के पार पहुंच गया था, जिसे लोकसभा चुनाव के मद्देनजर कुछ महीने पहले ही 100 रुपए घटाकर और बाद में कुछ और कटौती करके 900 रुपए के आसपास किया गया था। भाजपा नेताओं और गोदी मीडिया ने इस छोटी सी राहत को रसोई गैस सिलेंडर पर बड़ी राहत बताया और लोगों को यह दिखाया कि सरकार उन पर कितनी मेहरबान है। इसी प्रकार से महिलाओं की सुरक्षा की बात करें, तो बेटी बचाओ - बेटी पढ़ाओं का जुमला देने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके भाजपा नेता हाथरस कांड, मणिपुर कांड, बदायूँ कांड, उन्नाव कांड, कानपुर कांड और पहलवान बेटियों के साथ हुई ज्यादती से लेकर न जाने कितने ही कांडों पर खामोश रहे। हाथरस में जिस प्रकार से रात के अंधरे में रेप के बाद हत्या करके खत्म की गई  दलित लड़की की लाश को जलाने से लेकर मिजोरम के कारगिल युद्ध लड़े सैनिक की पत्नी समेत दो महिलाओं को निवस्त्र घुमाने और मणिपुर में दो लड़कियों को नंगा घुमाने पर प्रधानमंत्री चुप रहे और कठुआ रेप में पीड़ित बच्ची के आरोपियों के पक्ष में भाजपा के शर्मनाक प्रदर्शन पर मोदी सरकार की बेशर्मी ने यह बता दिया कि भाजपा के शासन में यही सब होगा। इतना ही नहीं, हरियाणा प्रदेश भाजपा अध्यक्ष का बेटा लड़कियों को छेड़ता हुआ पकड़ा गयाच लेकिन वहां की उस समय की खटटर सरकार ने मामला दबा दिया था। ऐसी घटनाओं को देश की महिलाओं और बच्चियों ने देखा और समझा है। अगर नहीं समझा, तो चिन्मयानन्द, कुलदीप सिंह सेंगर, बृजभूषण सिंह जैसे भाजपा के सांसदों और विधायकों ने।


बहरहाल, अगर केंद्र की मोदी सरकार की उपलब्धियों की बात करें, तो उनकी बड़ी उपलब्धियों में नोटबंदी, कर्ज बढ़ना, हिंसा की घटनाएं बढ़ना और लोगों के बीच नफरत बढ़ने जैसी घटनाओं के अलावा कुछ खास नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी ने नोटबंदी के समय तर्क दिया था कि 50 दिन में आतंकवाद की घटना बंद हो जाएंगी, कालाधन खत्म हो जाएगा, लेकिन इन दोनों मुद्दों पर कुछ हुआ? आतंकवाद की घटनाएं नोटबंदी के बाद से बढ़ गईं, जम्मू-कश्मीर में कई प्रवासी मजदूरों की हत्या कर दी गई। सुजवान में आतंकी हमला हुआ, ऊरी में आतंकी हमला हुआ, पठानकोट में आतंकी हमला हुआ, पुलवामा में 300 किलो आरडीएक्स से सेना के जवानों से भरी गाड़ी को उड़ा दिया गया और उसके बाद भी कई आतंकी घटनाएं होती रही हैं, जो रुकने का नाम ही नहीं ले रही हैं। खबरों की मानें, तो नोटबंदी के बाद भी जम्मू-कश्मीर में तकरीबन रोज़ाना होते आतंकी हमले बिलकुल भी नहीं रुके। इस प्रकार नोटबंदी का फायदा किसको पंहुचा? यह बड़ा सवाल आज भी खड़ा है। सवाल यह भी है कि गुजरात के एक को-ऑपरेटिव बैंक में एक ही दिन में करोड़ों किसने और कैसे जमा करा दिए, जबकि बैंक में एक दिन में रुपए जमा कराने की सीमा सिर्फ दो लाख की ही थी? क्या कोई जाँच अथवा कार्रवाई हुई नहीं हुई? ईडी और सीबीआई और इनकम टैक्स विभाग ने इस मामले में छापेमारी क्यों नहीं की? वही सवाल यह भी है कि आखिर ये कोआप्रेटिव बैंक किसका है? लेकिन केंद्र की मोदी सरकार के दबाव में सारा मामला दबा दिया गया और हैरत की बात है कि मीडिया में भी ये मामला बहुत नहीं उछला। क्या देश की जनता और बुद्धिजीवी वर्ग ने यह नज़ारा नहीं देखा और नहीं समझा?


दरअसल, केंद्र की मोदी सरकार इतनी निरंकुश हो गयी है कि सत्ता के नशे में चूर होकर इल्क्ट्रोल बांड के जरिए एक बड़ा महाघोटाला किया, जो कि विश्व का सबसे बड़ा घोटाला बताया जा रहा है। केंद्र की मोदी सरकार ने उन कंपनियों से चंदा लिया, जिन पर कार्रवाई करनी थी, और फिर उन कंपनियों को जमकर फायदा पहुंचाया। इस पर बेशर्मी इस कदर की कि देश की जनता के सामने गोदी मीडिया के माध्यम से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार की खोखली ईमानदारी की मुनादी पिटवाई। लोग शायद भूल गए कि कोरोना काल में गंगा और उसकी सहायक नदियों में लाशें ही लाशें तैरती नजर आ रही थीं और कोरोना के मरीजों का इलाज भी ठीक से नहीं हो पा रहा था। शहरों में रहने वाले मजदूर और दूसरे लोग सैकड़ों और हजारों किलोमीटर पैदल चलकर अपने गांव, घर पहुंच रहे थे और उन पर कई जगह पुलिस के डंडे तक पड़ रहे थे। आज भी वो दृश्य सोचकर दिल दहल जाता है। इसके बावजूद नरेंद्र मोदी की ढीठता देखो कि लोगों के लिए कोरोना काल में सांत्वना देने की बजाय, महामारी से मरने वालों के प्रति कोई संवेदना जताने की बजाय अपनी नाकामी को छिपाने के लिए देश से ताली और थाली पिटवाई, लाइट बुझाकर मोमबत्ती और मोबाइल की टॉर्च जलवाईं, ताकि देश की जनता का असल मुद्दे से ध्यान भटकाया जा सके। कोरोनाकाल में गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत सड़ा-गला राशन देकर देश की जनता को भिखमंगा समझकर लाइनों में लगा दिया। आज भी रोजगार देने की जगह लोगों को पांच किलो राशन दिया जा रहा है, जिससे लोग महंगाई, बेरोजगारी और तमाम दूसरी परेशानियों से तंग आकर गुजारा भी नहीं कर पा रहे हैं। जबकि 2014 में केंद्र की सत्ता में आने से पहले खुद नरेंद्र मोदी ने हर साल 2 करोड़ युवाओं को रोजगार देने का वादा करके देश की जनता को गुमराह किया और इस वादे के अलावा इसी प्रकार से 15 लाख खाते में भेजने, किसानों की आमदनी 2022 तक दोगुनी करने और इसी प्रकार के दर्जनों वायदे करके सत्ता की मलाई चखी। लेकिन पूरे 10 साल के एनडीए शासनकाल में कितने पूंजीपति मित्रों का कर्ज़ा माफ़ करके उनके द्वारा लिए गए कर्जे से हुए घाटे को एनपीए यानि बट्टे खाते में डालकर न सिर्फ 10 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा नुकसान किया, बल्कि उसकी वसूली के लिए जनता पर टैक्स का बोझ बढ़ाकर लाद दिया, जिससे आज देश की जनता किश्तों पर सांसें ले रही है। मुद्दे अभी और भी हैं, लेकिन इन पर फिर कभी चर्चा करूंगा। फ़िलहाल यह तय हो गया है भाजपा बमुश्किल जीत के पास पहुंची है और उसका 400 पार का जुमला जनता ने इस प्रकार से फुस्स दिया मानों किसी ने फूले हुए गुब्बारे की धीरे-धीरे करके हवा निकाल दी हो।






K-p-mallik

—के. पी. मलिक—

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)

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