पहले शिक्षा, फिर पेपर लीक और अब परीक्षा में धांधली को लेकर दिल्ली से पटना और राजस्थान-गुजरात से यूपी तक देश के हर शहर जिले में युवा छात्र गुस्से में है। कहीं, डिग्रियां जलायी जा रही है तो कहीं भूख हड़ताल के बीच धरना-प्रदर्शन चल रहा है। सबके सब कहीं न कहीं खराब शिक्षा प्रणाली, पेपर लीक और परीक्षा धांधली से हलकान है, उन्हें खुद का भविष्य अंधकार में जाता दिख रहा है। हालांकि इस तरह की धांधलियां पहले भी होती रही है, लेकिन तब इतनी जागरुकता नहीं थी। मुझे तो वह दौर भी याद है जब शिक्षा की राजधानी कल का इलाहाबाद और आज के प्रयागराज में परीक्षा की कापियां ही बदल दिया जाया करती थी। प्रतियोगी परीक्षाओं में दुसरे की फोटो लगाकर छात्र परीक्षा दे आते थे और तो और परीक्षा केन्द्र की सेटिंग-गेटिंग से आंसर सीट ही बदल दी जाती थी। ऐसे में बड़ा सवाल तो यही है देश में कब बदलेगी शिक्षा प्रणाली और कब थमेगा पेपर लीक व परीक्षा में धांधली पर कब लगेगी लगाम?
देखा जाएं तो दो दशक पहले भी पेपर लीक होते थे। हालांकि घटनाएं सिर्फ कुछ जगह तक सीमित रहती थीं। आज सोशल मीडिया आने से पेपर लीक जैसी घटनाएं छिपती नहीं रही है बल्कि जगजाहिर हो रही हैं। देश में शिक्षा एक कमोडिटी हो गई है। यानी सबकुछ व्यवसायिक नजरिये से देखा जाने लगा है। एग्जामिशन पैटर्न पुराना हो चुका है। कई बार बच्चे पढ़ाई से जी चुराते हैं। विद्यार्थियों के साथ-साथ उनके अभिभावक भी चाहते हैं कि किसी तरह बच्चा पास हो जाए। इसके लिए वे कुछ भी करने को तैयार रहते हैं। पेपर सेट तैयार होने से लेकर परीक्षा केंद्र उनके वितरण तक सैकड़ों लोग शामिल रहते हैं। जबकि परीक्षा में गोपनीयता रखना सर्वोपरि है क्योंकि प्रश्न पत्र के माध्यम से ही विद्यार्थी का मूल्यांकन होता है। आज भी पेपर सेट करने वाला शिक्षक हाथ से लिखता है। फिर किसी कर्मचारी द्वारा कंप्यूटर पर टाइप किया जाता है। प्रश्नपत्र बोर्ड के पास जाने के बाद प्रिंटिंग के लिए जाता है। प्रिंटिंग के बाद पैकेजिंग होती है। ऐसे में कोई एक कमजोर कड़ी भी दवाब या पैसे के लालच में पेपर लीक जैसा गुनाह कर बैठती है। ऐसे में आज के तकनीक के दौर में डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर डवलप करके पेपर लीक जैसी घटनाओं पर कुछ हत तक काबू पाया जा सकता है। इससे पेपर सेट होने और उसके परीक्षा केंद्र में वितरित होने के दौरान कम से कम व्यक्तियों का दखल होगा तो लीक होने की संभावना न के बराबर होगी। हालांकि इसके लिए डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित करने की जरूरत होगी। इसके लिए प्रश्न पत्र बनाने वाले को निर्धारित फॉर्मेट के आधार पर प्रश्नपत्र तैयार करना चाहिए। इसके सीबीएसई के पोर्टल पर एनक्रिप्ट होकर सेव होने से पेपर लीक होना मुश्किल हो सकता है। इसके अलावा एग्जामिमेशन सेंटर को डिजिटल नेटवर्क के साथ जोड़ा जाना चाहिए। परीक्षा के दिन ही तीस मिनट पहले पेपर एग्जामिशन सेंटर के पोर्टल पर जारी करना होगा। साथ ही प्रश्नपत्र उसी कंपयूटर पर खुले जिसका स्टैटिक आईपी सर्वर के साथ रजिस्टर्ड हो। उसे खोलने के लिए ओटीपी व कोड का प्रयोग किया जा सकता हो।
दूसरी ओर शिक्षा नीति को आज भी अंग्रेजी चश्मे से देखा जाता है। प्रतियोगी परीक्षाएं भी ऐसी हैं जिससे परीक्षार्थी की समझ का आकलन नहीं हो पाता। ये परीक्षाएं रटने की प्रवृत्ति को ही बढ़ावा देती हैं। परीक्षाओं में सवाल ऐसे क्यों नहीं किए जाएं जिससे इन परीक्षाओं में बैठने वालों की समझ का पता चल सके। लेकिन धन कमाने की प्रवृत्ति के घनचक्कर में करोड़ों छात्रों का भविष्य दांव पर तो है ही, येनकेन प्रकारेण ये पास भी हो गए तो इनकी पहली प्राथमिकता ध नही होगी। आज के अस्पतालों से लेकर सड़कें - पुल पुलिया में देखा जा सकता है। हद तो तब हो जाती है जब नकली अंग प्रत्यारोपण, नकली दवाइयां, झूठे टेस्ट व झूठे क्लेम के बीच कमीशनखोरी जैसे मामले सामने आते है। इनके लिए देश, राष्ट्र सब गौण हो जाते है। उनके इस खेल में कुछ धनकुबेर अभिभावक साथ देते है। ये उन्हीं अभिभावकों की काली छाया है, जिससे अब लगभग डेढ़ करोड़ बच्च्चों का भविष्य प्रभावित हुआ है। देखा जाएं तो देश में कानूनों की कमी नहीं है। लोगों की कमी नहीं है। सरकारें रोज नए कानून लाती रहती हैं। उसके कर्मचारी- नौकर ही कानूनों की धज्जियां उड़ाते रहते हैं। केन्द्र सरकार का लोक परीक्षा- अनुचित साधन निवारण बिल- 2024 लोकसभा में पास हुआ था। कोई प्रभाव नहीं पड़ा। देश भर में छात्रों के भविष्य से पेपर माफिया होली खेल रहा है। जम्मू से आंध्र, गुजरात, महाराष्ट्र, असम चारों ओर त्राहि-त्राहि मची रहती है। सारी जांचें मिलकर भी इन परीक्षा लेने वालों के प्रति विश्वास पैदा नहीं कर पाईं।
पेपर लीक के आंकड़ों में बिहार, यूपी व राजस्थान सबसे आगे है। रीट-2021, लाइब्रेरियन भर्ती परीक्षा, वरिष्ठ अध्यापक भर्ती परीक्षा, स्वास्थ्य सहायक संविदा भर्ती परीक्षा, पुलिस कांस्टेबल भर्ती परीक्षा, कोर्ट एलडीसी भर्ती परीक्षा सब में पेपर लीक हुएं आज बड़े स्कूलों में स्वयं अध्यापक ट्यूशन पर जोर देकर अपनी आय बढ़ाने में लगे हैं। कौन रोक रहा है उनको? नगर-नगर में कोचिंग संस्थाओं की बाढ़ क्यों आ गई? क्योंकि सरकारी ढांचा चरमरा गया है। शिक्षण स्पर्धा करने में सक्षम नहीं है। दूसरी ओर शिक्षा नीति को आज भी अंग्रेजी चश्मे से देखा जाता है। प्रतियोगी परीक्षाएं भी ऐसी हैं जिससे परीक्षार्थी की समझ का आकलन नहीं हो पाता। ये परीक्षाएं रटने की प्रवृत्ति को ही बढ़ावा देती हैं। परीक्षाओं में सवाल ऐसे क्यों नहीं किए जाएं जिससे इन परीक्षाओं में बैठने वालों की समझ का पता चल सके। सिर्फ नंबर देने के लिए ही परीक्षाएं क्यों? शिक्षा नीति के लिए वरिष्ठ शिक्षकों की समिति होनी चाहिए। पाठ्क्रम भी समिति के सदस्य ही सर्वसम्मति से तय करें। शिक्षा से जुड़े हर व्यक्ति का अलग से गुणवत्ता टेस्ट भी होना चाहिए। केवल वरिष्ठता का आधार ही उपयोगी नहीं है। परीक्षा क्षेत्र के लोगों का तो मनोवैज्ञानिक परीक्षण भी अनिवार्य होना चाहिए। शिक्षा मंत्री-सचिव जैसे पदों पर बैठे लोग भी आज दूध के धुले नहीं रहे। बड़ा लालच इनको भी फांस सकता है। शिक्षा एक पवित्र कार्य है, पूजा है। कोई अहंकार बीच में नहीं आना चाहिए। मतलब साफ है सरकारों का दृढ़ संकल्प कारगर होना ही चाहिए। वरना बच्चे लुटते रहेंगे, पास होकर भी बेरोजगार घूमते रहेंगे। समानता का अधिकार, शिक्षा का अधिकार सरकारी उदासीनता की भेंट इसी तरह चढ़ते रहेंगे। हाल यह है कि अध्यापकों-अधिकारियों-शोध ग्रंथों सभी की तो गुणवत्ता सवालों के घेरे में हैं। ऊपर से पेपर-लीक में इतना बड़ा धन, मानो लाटरी खुल गई। बड़ी सारी चुनौती है जिससे निपटने की शुरुआत गंभीर शिक्षा मंत्री, शिक्षा अधिकारी से लेकर सुदृढ़ ढांचे तक से करनी होगी।
कई पेपर पहले भी हो चुके हैं लीक
कुछ ही समय पहले यूपी व बिहार पुलिस भर्ती परीक्षा का पेपर सोशल मीडिया पर वायरल हो गया था. जिसके बाद पुलिस ने मामले में कई लोगों पर केस दर्ज किया था. साथ ही इस परीक्षा को रद्द कर दिया गया था. इसके अलावा साल 2022 में पेपर लीक होने के चलते बिहार सिविल सेवा परीक्षा भी रद्द हो चुकी है. इनके अलावा बिहार कर्मचारी चयन आयोग की परीक्षा 2017, बिहार कर्मचारी चयन आयोग की इंटर स्तरीय परीक्षा 2017 परीक्षा आदि भी पेपर लीक का शिकार हो चुकी हैं. प्रतियोगी एग्जाम के अलावा राज्य में 10वीं -12वीं एग्जाम के पेपर लीक के मामले कई बार चर्चा का विषय बनते नजर आए हैं. हालांकि सरकार की ओर से पेपर लीक कि घटनाओं को गंभीरता से लिया जा रहा है. लेकिन ये सिलसिला थम नहीं रहा. देश में होने वाले पेपर लीक के मामले कहीं ना कहीं बिहार से कनेक्ट ही होते हैं. हाल ही में हुई यूजीसी नेट परीक्षा पेपर लीक होने के कारण रद्द कर दी गई है. एजेंसी की मानें तो एग्जाम पेपर डार्क नेट पर लीक हो गया था. जिसके बाद इसे रद्द करने का निर्णय लिया गया. इस परीक्षा में करीब 09 लाख कैंडिडेट्स शामिल हुए थे. अब उम्मीदवारों को परीक्षा की नई तारीख आने का इंतजार है. सीएसआईआर नेट जून 2024 परीक्षा स्थगित कर दी गई है. नेशनल टेस्टिंग एजेंसी (एनटीए) ने इस संबंध में एक अधिसूचना जारी की है. परीक्षा 25 से 27 जून 2024 तक देशभर के विभिन्न परीक्षा केंद्रों पर आयोजित होने वाली थी. नई परीक्षा तिथियों की घोषणा जल्द ही की जाएगी.
परीक्षा प्रणाली पर माफिया तंत्र हावी
माफिया तंत्र और पैसों वालों की सांठ गांठ से पेपर लीक के जरिए लाखों रुपए देकर सीट खरीद कर पैसे वाले शिक्षा और परीक्षा प्रणाली को धता बता रहे हैं। वहीं, इस तरह के अपराधिक कृत्य से प्रतिभावान निम्न वर्गीय और मध्यम वर्गीय बच्चों का भविष्य अंधकार में डाला जा रहा है। हालत यह हो गई है कि जब छात्र परीक्षा देकर आते हैं तो यही डर सताता है कि पेपर लीक की खबर कभी भी आ जाएगी और उनका भविष्य लटक जाएगा । यह घटनाएं तब से ज्यादा बढ़ी हैं जब से छज्। इन परीक्षाओं को कंडक्ट कर रहा है। सरकार को चाहिए कि छात्रों के भविष्य से खिलवाड़ बंद किया जाए और सभी तरह के एग्जामिनेशन के लिए कोई बेहतर विकल्प की तलाश करते हुए फुल प्रूफ प्रणाली विकसित की जाए ताकि आम छात्रों का शिक्षा व्यवस्था पर भरोसा बना रहे और देश के आर्थिक विकास में सहायक बन सके। लंबे संघर्ष के बाद वैश्विक समुदाय में हमने अपना स्थान बनाया है. पर कुछ ऐसे मामले भी हैं, जो देश के लिए चिंता का विषय बने हुए हैं. आज देश की शिक्षा व्यवस्था में असामाजिक तत्व और भ्रष्ट प्रवृत्तियां लगातार बढ़ रही हैं, जो व्यवस्था को खोखला कर रही हैं. इन मुद्दों पर चर्चा और तत्काल निर्णय लेने की जरूरत है. जो माफिया आज की परीक्षा के पेपर लीक में शामिल है, वह तीन वर्ष पहले भी ऐसी गतिविधियों में शामिल था. इसका सीधा अर्थ यह निकलता है कि देश में कानून इतना शिथिल है अथवा माफियाओं की पहुंच इतनी ज्यादा है कि उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं होती. ऐसी कोई खबर मीडिया नहीं छाप रहा है कि जो पेपर आज से चार-पांच साल पहले लीक हुए उसमें शामिल अपराधियों में से किसी को सजा हुई है या नहीं. और कितनी कठोर सजा हुई. हमारे यहां लोगों को मालूम है कि हमारी न्याय व्यवस्था इतनी शिथिल है कि मामला लटकता जायेगा और कुछ होगा नहीं. प्रश्न है कि एक व्यक्ति या चार व्यक्ति मिलकर एक परीक्षा का प्रश्नपत्र लीक करते हैं, और 48 लाख या 13 लाख लोगों पर प्रभाव पड़ता है, इसमें यदि उनके परिवारवालों को जोड़ लिया जाए, तो करोड़ों लोग इससे प्रभावित होते हैं. कितने परिवारों पर आर्थिक दबाव पड़ता है. इस बात की कोई संभावना नहीं है कि पेपर लीक मामले में शामिल लोगों को कोई सजा हो भी पायेगी. हमारे देश के नियम इतने शिथिल हैं कि इतनी सारी घटनाएं होने के बाद भी आज तक किसी नेता या मंत्री को उत्तरदायी क्यों नहीं माना गया? यह स्थिति चिंताजनक और दुर्भाग्यपूर्ण है. जहां तक प्रश्न है कि किस तरह ये अपराधी इस मामले को अंजाम देते आ रहे हैं, तो इसका उत्तर है कि या तो प्रतिष्ठान इनके साथ मिला हुआ है या यह उस एजेंसी की अक्षमता है और उसके भी भ्रष्टाचार में लिप्त होने की संभावना भी है, जिसके ऊपर इस परीक्षा की जिम्मेदारी है. इस तरह की संभावनाओं पर अब विचार करना पड़ेगा. इस समस्या के समाधान के लिए देश के जाने-माने शिक्षाविदों के साथ बात करनी चाहिए, इसमें किसी तरह की कोई राजनीति नहीं होनी चाहिए. सभी सरकारों को मिलकर एक नयी शिक्षा प्रणाली के लिए आगे बढ़ना चाहिए और यह संभव है. इसके बाद उन कारणों का पता लगाना चाहिए जिसके चलते यह स्थिति निर्मित हुई है.
सुरेश गांधी
वरिष्ठ पत्रकार
वाराणसी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें