मनमोहक धुन न्योली जहां की,
मंत्रमुग्ध खुशबू प्योली जहां की,
कल-कल करती नदियां चंचल,
हवाओं की धुन पर जहां पत्तियों का शोर,
बहुत हुआ उस धरती से पलायन,
आओ ! फिर चले गांव की ओर,
घाट के लिए अब पानी नहीं है,
सूख गए सब नदी गधेरे,
खुले नहीं कब से घर के किवाड़,
सुनी लगती है घर की चौखट,
याद गांव की बहुत आएगी,
ढूंढती होगी अपनेपन की डोर,
बहुत हुआ इस धरती से पलायन,
आओ ! फिर चले गांव की ओर,
सुने हो गए वो खेत-खलियान सब,
दादी की डांट सुनते हो गए जमाने,
सन्नाटे में खो गई वो चहचहाती भोर,
बहुत हुआ उस धरती से पलायन,
आओ ! फिर चले गांव की ओर,
नीतू रावल
गनीगांव, गरुड़
बागेश्वर, उत्तराखंड
चरखा फीचर
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