कुछ लोग मानव जाति की आपदा और लाशों के ढेर को कमाई का स्वर्णिम अवसर समझ कर फायदा उठाने के लिए तत्पर हो जाते हैं। इसलिए ओहदे का दुरुपयोग कर एवं पैसे खर्च कर के आम लोगों में अंधविश्वास फैला कर तथा मौत का भय दिखा कर अपना उल्लू साधने का प्रयास किया जाता है। जिससे अपने वर्चस्व की पकड़ को मजबूत किया जाए, अपनी पहाड़ जैसी संपत्ति को कई गुना करने का मौका मिले और मौके का लाभ उठाया जाए। अरबों डॉलर खर्च कर के 10,,12 बहुरूपियों ने मंच सजाया और मंच से ग्लोबल वार्मिग राक्षस आने का कारण चमचों को समझाने लगे। प्रदूषण के कारण ग्लोबल वार्मिग राक्षस असमान से आ टपका है और हम सब को निगल जाएगा। वहां पर उपस्थित सभी चमचों ने अपने आका के ज्ञान में कसीदे पढ़कर अपना समर्थन जताया एवं तालियों की गड़गड़ाहट और जय जय कार के नारो से असमान गूंजने लगा। इस तरह से अपना वर्चस्व और उत्पादन दोनों दूसरों पर थोपने का काम हो गया। विज्ञान युग के मनुष्य को मूर्ख बनाने एवं साथ में एक नए अंधविश्वास ने धरातल पर जन्म देने का कार्य पूरा हो गया। विज्ञान युग के मनुष्य को कुछ मूर्खो के फैलाए हुए अंधविश्वास से बाहर निकल कर प्रदूषण एवं ग्लोबल वार्मिग राक्षसों के आने का सही कारण समझना और उसका उपचार करना चाहिए, जिससे मानव सभ्यता को खत्म होने से बचाया जा सकता है।
नई दिल्ली। पिछले मई, जून महीनों से देश ग्लोबल वार्मिंग यानी झुलसा देने वाली गर्मी (हीट वेव) की चपेट में आया हुआ है। जुलाई भी ऐसे ही झुलसा देने वाली रहेगी। देश के लोगों को घरों से बाहर निकल पाना नामुमकिन हो गया है। आम दिनों में साधारण इंसान 9 से 10 बजे के बीच काम धंधे के लिए घर से बाहर निकलता था मगर भयंकर गर्मी के कारण घर से बाहर निकला हुआ व्यक्ति भी 10 से 11 बजे तक अपने घर वापस पहुंचना चाहता हैं। सुबह 11बजे के बाद सड़के एकदम सुनसान हो जाती हैं जैसे पूरे देश में कर्फ्यू लगी हुई है। इस भयंकर गर्मी के कारण दैनिक लाखों लोग बीमार पड़ रहे हैं और हजारों लोगों को जीवन से हाथ धोना पड़ता है। मेरे लिखने का अभिप्राय स्पष्ट है "ग्लोबल वार्मिंग के कारण हमारे जीवन तथा आजीविका दोनों पर खतरा मंडराने लगा है।" आगामी दिसम्बर जनवरी के महीनों में देश भयंकर प्रदूषण से दो दो हाथ करता हुआ नजर आएगा। ग्लोबल वार्मिंग यानी झुलसा देने वाली भयंकर गर्मी के दौरान आम लोगों को दिन के वक्त घरों में दुबक कर रहने तथा रात के समय अपेक्षाकृत गर्मी कम होने से थोड़ी बहुत राहत मिल जाती है मगर प्रदूषण रुपी राक्षस से बचना असंभव है। प्रदूषण राक्षस दिन हो या रात, घर हो या बाहर, एक मिनिट के लिए पीछा नहीं छोड़ता। प्रदूषण का जहर श्वास के साथ शरीर के अंदर जाने से दम घुटने लगता है, कांसते कांसते बेहाल हो जाता है एवं फेफड़ों की बीमारियों के कारण अच्छा भला इंसान यातना भरी मौत की ओर बढ़ने लगता है। ग्लोबल वार्मिंग पूर्व छोर है तो प्रदूषण पश्चिम छोर, दोनों समस्याएं मिलकर पृथ्वी से मानव जाति का अस्तित्व मिटाने के लिए आतुर है। दोनों रोग अलग हैं और उनसे छुटकारा मिलने के लिए अलग तरीके से उपचार किया जाएगा।
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