- शिव कथा की रसधार में डुबकी लगाकर ही मन शीतल आनंद की अनुभूति करता-कथा व्यास पंडित राघव मिश्रा
उक्त विचार जिला मुख्यालय के समीपस्थ चितावलिया हेमा स्थित निर्माणाधीन मुरली मनोहर एवं कुबेरेश्वर महादेव मंदिर में जारी पांच दिवसीय शिव महापुराण के तीसरे दिन अंतर्राष्ट्रीय कथा वाचक पंडित प्रदीप मिश्रा के पुत्र कथा व्यास पंडित राघव मिश्रा ने कहे। बुधवार को पंडित राघव महाराज के द्वारा भगवान गणेश और कार्तिकेय के जन्म और शिव लिंग की उत्पति आदि के विषय में वर्णन किया। पंडित श्री मिश्रा ने कथा का विस्तार करते हुए वर्णन किया कि एक बार भगवान ब्रह्मा और विष्णु के बीच श्रेष्ठता का विवाद हो गया। जब उनका विवाद बहुत अधिक बढ़ गया, तब अग्नि की ज्वालाओं के लिपटा हुआ लिंग भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु के बीच आकर स्थापित हुआ था, दोनों उस लिंग का रहस्य नहीं समझ पाए। इस रहस्य के बारे में विष्णु भगवान और ब्रह्मदेव ने लंबे समय तक खोज की फिर भी उन्हें उस लिंग का स्त्रोत नहीं मिला। निराश होकर दोनों देव फिर से वहीं आ गए जहां उन्होंने लिंग को देखा था। वहां आने पर उन्हें ओम की ध्वनि सुनाई दी, जिसको सुनकर उन्हें अनुभव हुआ कि कि यह कोई शक्ति है और उस ओम के स्वर की आराधना करने लगे। भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु की आराधना से प्रसन्न होकर उस लिंग से भगवान शिव प्रकट हुए और सदबुद्धि का वरदान दिया। देवों को वरदान देकर भगवान शिव चले गए हो गए और एक शिवलिंग के रूप में स्थापित हो गए। यही भगवान शिव का पहला शिवलिंग माना गया। सबसे पहले भगवान ब्रह्मा और विष्णु ने शिव के उस लिंग की पूजा-अर्चना की थी। तब से भगवान शिव की लिंग के रूप में पूजा करने की परम्परा की शुरुआत मानी जाती है।
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