आलेख : जब टीडीपी ने अटल की सरकार गिरा दी थी... - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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बुधवार, 12 जून 2024

आलेख : जब टीडीपी ने अटल की सरकार गिरा दी थी...

मोदी कैबिनेट 3.0 के शपथ ग्रहण और पोर्टफोलियो बंटवारे के बाद अब स्पीकर को लेकर बहस तेज हो गयी है। 24 जून से संसद का बजट सत्र शुरू होने वाला है और इससे पहले लोकसभा स्पीकर का चुना जाना बेहद महत्वपूर्ण है। स्पीकर की महत्ता का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि जब 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे और गैर भाजपा दलों के नेताओं के समर्थन के बावजूद लोकसभा में विश्वास मत हारने के बाद सरकार गिर गई थी. सिर्फ एक वोट से वाजपेयी सरकार के भाग्य का फैसला हो गया और लोकसभा अध्यक्ष की शक्ति का पता चल गया. यह स्पीकर का वोट नहीं था, बल्कि उनका निर्णय था जिसके कारण सरकार गिर गई. इस बार भी भाजपा के खुद का 240 सीटें तो है, लेकिन बाकी यानी एनडीए की सीटे है। ठीक ऐसी ही स्थिति 1999 में भी थी। शायद यही वजह है कि भाजपा लोकसभा अघ्यक्ष के चुनाव को लेकर बेहद संजीदा है। सूत्रों का कहना है कि एनडीए के दूसरे सबसे बड़े घटक दल तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) ने स्पीकर पद की मांग की है. संयोग से यह टीडीपी के स्पीकर ही थे, जिन्होंने 1999 में वाजपेयी सरकार के गिरने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. हालांकि दोनों की सहमति से ओम बिरला को फिर से लोकसभा अध्यक्ष चुना जा सकता है


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फिरहाल, भाजपा जेडीयू और टीडीपी के साथ केंद्र में एनडीए की सरकार बन गयी है। विभागों के बंटवारे के साथ मंत्री अपने कामकाज भी संभाल लिए है। लेकिन सर्वाधिक खींचतान लोकसभा अध्यक्ष को लेकर है। जेडीयू और टीडीपी दोनों ही यह पद अपने पास चाहती है। टीडीपी की तरफ से चंद्रबाबू नायडू की पत्नी नारा भुवनेश्वरी की बहन पुरंदेश्वरी का नाम सामने आ रहा है। जबकि जेडीयू की तरफ से नाम तो नहीं हैं, लेकिन अंदरखाने में इस पद को लेकर ख्वाहिश बनी हुई है। इस दावें के बीच भाजपा की तरफ से एक बार फिर राजस्थान की कोटा-बूंदी सीट से लगातार तीसरी बार जीतने वाले ओम बिड़ला को लोकसभा अध्यक्ष बनाया जाना लगभग फाइनल है। बता दें, सदन के संचालन में लोकसभा अध्यक्ष महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और अनुशासन सुनिश्चित करता है। साथ ही कई मामलों में लोकसभा अध्यक्ष का वोट निर्णायक साबित होता है। खासकर जब सदन में बहुमत साबित करने का बारी आती है और दल बदल कानून लागू होती है, तब भी लोकसभा स्पीकर की अहमियत बढ़ जाती है। साथ ही सदन के सदस्यों की योग्यता और अयोग्यता का फैसला लेने का अधिकार भी स्पीकर के पास होता है। मोदी 3.0 के गठन के साथ ही जिसमें तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) के 16 सांसद और जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) के 12 सांसद शामिल हैं। जबकि भाजपा के पास 240 का आंकड़ा है। बीजेपी जब तक लोकसभा अध्यक्ष के नाम की घोषणा करती टीडीपी ने पहले ही लोकसभा अध्यक्ष की प्रतिष्ठित सीट पर अपना दावा ठोक दिया है. यह अलग बात है कि पिछले 10 वर्षों में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा अपने बहुमत के आधार पर अध्यक्ष का नामांकन और नियुक्ति करती रही है. हालांकि, जनादेश कम होने के कारण अब यह संभव नहीं हो सकता है. लेकिन भाजपा ने भी ओम बिड़ला का नाम उछाल दिया है। सूत्रों के मुताबिक, भाजपा की बैठक में उनके नाम पर मुहर लग गई है। भाजपा को बिड़ला का नाम फाइनल करने के लिए एनडीए के सहयोगी दलों की मीटिंग का इंतजार है। बिड़ला मोदी और शाह के नजदीकी माने जाते हैं और स्पीकर के संवैधानिक पद पर रहते हुए उन्होंने कई ऐसे फैसले लिए, जो अपने आप में रिकॉर्ड हैं। अपनी कार्यशैली के कारण भाजपा सहित विरोधी दलों में भी उनकी अच्छी पैठ है। भाजपा इस बार पूर्ण बहुमत में नहीं है, इसलिए मोदी-शाह भी अपने विश्वासपात्र को ही लोकसभा अध्यक्ष बनाना चाहेंगे। इस चॉइस में भी बिड़ला खरे उतरते हैं। दुसरी तरफ लोकसभा स्पीकर की रेस में शामिल भाजपा की आंध्र प्रदेश अध्यक्ष डी. पुरंदेश्वरी को लोकसभा उपाध्यक्ष बनाया जा सकता है। उन्होंने नायडू का उस वक्त समर्थन किया था, जब उनकी अपने ससुर एनटी रामाराव का तख्ता पलट करने पर आलोचना हो रही थी। ऐसे में उन्हें स्पीकर बनाया जाता है, तो नायडू पर सॉफ्ट प्रेशर रहेगा। उनकी पार्टी पुरंदेश्वरी का विरोध नहीं कर पाएगी।


बता दें कि 4 जून को लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजे आए थे. इसमें बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन ने 293 सीटों के साथ जीत हासिल की थी. नतीजों के बाद से ही यह बात काफी हद तक साफ हो चुकी थी कि आगे एनडीए केंद्र में सरकार बनाएगा और नरेंद्र मोदी तीसरी बार देश के प्रधानमंत्री बनेंगे. 9 जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ ही सांसदों सहित 72 नेताओं ने मोदी कैबिनेट 3.0 की शपथ ली थी. इसके ठीक अगले दिन यानी 10 जून को सभी मंत्रियों को पोर्टफोलियो का बंटवारा भी कर दिया गया था. लेकिन लोकसभा अध्यक्ष की घोषणा नहीं हो पायी थी। सूत्रों के मुताबिक संसद का 8 दिवसीय विशेष सत्र 24 जून से 3 जुलाई तक चल सकता है. संसद के विशेष सत्र में 24 और 25 जून को नए सांसदों का शपथ ग्रहण हो सकता है. वहीं, 26 जून को लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव होने की संभावना है. उसके पहले बीजेपी लोकसभा अध्यक्ष को लेकर सजग हो गयी है। वह 1999 के अटल बिहारी बाजपेयी वाली घटना की पुनरावृत्ति से बचना चाहती है। क्योंकि ये कार्यकाल पीएम मोदी के पहले और दूसरे कार्यकल से बहुत अलग है। कुछ ऐसा ही स्थिति 1999 में भी थी जब अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे। ओडिशा कांग्रेस के नेता गिरिधर गमांग की ओर से डाले गए एक वोट के कारण सरकार गिर गई. और यह तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) के लोकसभा अध्यक्ष जीएमसी बालयोगी थे, जिन्होंने गमांग को वोट देने की अनुमति दी, जबकि उन्होंने कुछ दिन पहले ही उड़ीसा (अब ओडिशा) के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी. अगर गमांग को वोट देने की अनुमति नहीं दी गई होती, तो ’हां’ और ’नहीं’ बराबर होते. विश्वास प्रस्ताव पर अंतिम वोट एनडीए के पक्ष में 269 और विपक्ष में 270 थे. एक वोट के कारण सरकार को बर्खास्त कर दिया गया. विशेष रूप से यह स्पीकर का वोट नहीं था जो सरकार के गिरने का निर्णायक था, बल्कि उनके निर्णय और विवेकाधीन शक्ति के कारण वाजपेयी लोकसभा में विश्वास मत हारने वाले पहले प्रधानमंत्री बने. यहां जिक्र करना जरुरी है किक टीडीपी के बालयोगी को 1998 में एन चंद्रबाबू नायडू के आग्रह पर लोकसभा अध्यक्ष नियुक्त किया गया था. पच्चीस साल बाद टीडीपी प्रमुख नायडू एक बार फिर पार्टी के लिए लोकसभा अध्यक्ष का पद मांग रहे हैं. ऐसे में बड़ा सवाल तो यही है क्या भाजपा महत्वपूर्ण अध्यक्ष का पद छोड़ेगी? और यही वजह है कि अब मोदी 3.0 के सामने लोकसभा में नियुक्ति एक बड़ा और कठिन काम हो गया है. हालांकि, पीएम मोदी ने लगातार तीसरे कार्यकाल के लिए शपथ ली, लेकिन सत्तारूढ़ भाजपा के लिए लोकसभा में साधारण बहुमत (50 फीसदी से अधिक सदस्यों का बहुमत) न होने से पार्टी मुश्किल में पड़ गई है. मामला तब और गंभीर हो गया जब शिवसेना (यूबीटी) नेता आदित्य ठाकरे से लेकर पूरा विपक्ष टीडीपी को सुझाव दर सुझाव दि जा रहा है कि चाहे टीडीपी हो जेडीयू लोकसभा अध्यक्ष जैसे उच्च-सीट पर अपना दावा पेश करे. “जिसका स्पीकर, उसकी सरकार“ वाला वाक्य लोकसभा अध्यक्ष के पद के महत्व और उसके बारे में चल रहे दावों और अफवाहों को सटीक रूप से दिखाता है. हालांकि, भाजपा ने केंद्रीय परिषद में महत्वपूर्ण मंत्रालयों को बरकरार रखकर अपनी मंशा दिखाई है. पार्टी अध्यक्ष का पद भी बरकरार रख सकती है, क्योंकि यह संकट की स्थिति में महत्वपूर्ण होगा.


असीम शक्तियां व विशेषाधिकार

अध्यक्ष का पद भारत के सर्वोच्च विधायी निकाय, लोक सभा में विधायी प्रक्रिया पर सत्तारूढ़ पार्टी या गठबंधन की ताकत और नियंत्रण के प्रतीक के रूप में देखा जाता है. संविधान में अध्यक्ष के साथ-साथ उपसभापति के चुनाव का भी प्रावधान है, जो अध्यक्ष की अनुपस्थिति में उसके कर्तव्यों का निर्वहन करता है. लोकसभा का अध्यक्ष निचले सदन का पीठासीन अधिकारी होता है, जो न केवल औपचारिक होता है, बल्कि सदन के कामकाज पर पर्याप्त प्रभाव भी रखता है. लोकसभा अध्यक्ष सदन के सदस्यों में से एक होता है, जिसे साधारण बहुमत से चुना जाता है. अध्यक्ष का पद धारण करने वाली पार्टी या गठबंधन विधायी एजेंडे पर काफी प्रभाव डाल सकता है, जो बदले में सरकार के कानूनों और नीतियों के कार्यान्वयन को प्रभावित कर सकता है. सदन के नियमों की व्याख्या से लेकर व्यवस्था बनाए रखने और सदस्यों के निष्कासन तक, लोकसभा अध्यक्ष यह सब करता है. अध्यक्ष लोकसभा औराज्यसभा के संयुक्त सत्रों की अध्यक्षता भी करता है. यदि कोरम की कमी होती है, तो वह बैठकों को स्थगित कर देता है और यदि आवश्यक हो, तो टाई-ब्रेकिंग वोट  डालता है. अध्यक्ष यह निर्धारित करता है कि सदन में पेश किया गया विधेयक बहुमत विधेयक है या साधारण विधेयक. यह महत्वपूर्ण है, क्योंकि विधेयक का पारित होना इस बात पर निर्भर करता है कि इसे किस तरह लिस्टेड किया गया है. सदन की समितियां, जो मतदान से पहले किसी नीति पर चर्चा और विचार-विमर्श करती हैं, अध्यक्ष की ओर से गठित की जाती हैं. वे अध्यक्ष के निर्देशों के तहत भी काम करती हैं. संसदीय समितियों के सदस्यों और अध्यक्षों को नामित करने का अधिकार अध्यक्ष को ही होता है हालांकि, लोकसभा अध्यक्ष का पद उतना शानदार और आधिकारिक नहीं है जितना लगता है. 2008 की एक घटना, जब लोकसभा अध्यक्ष और भारतीय कमम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के दिग्गज सोमनाथ चटर्जी को अपनी पार्टी की सदस्यता खोनी पड़ी, क्योंकि उन्होंने लोकसभा अध्यक्ष के रूप में अपने कर्तव्य को प्राथमिकता दी थी. अध्यक्ष के पद की गैर-पक्षपाती प्रकृति को भारत के सुप्रीम कोर्ट ने भी उजागर किया है, जिसने माना है कि अध्यक्ष को पद के कर्तव्यों को प्राथमिकता देनी चाहिए, न कि उस पार्टी को जिससे वह संबंधित है. चटर्जी ने बाद में इसे अपने जीवन का “सबसे दुखद दिन“ बताया, क्योंकि उन्होंने अपनी पार्टी की सदस्यता से भी अधिक महत्वपूर्ण पद को बरकरार रखा. सीपी(एम) से निष्कासित होने के बावजूद, उन्होंने लोक सभा के अध्यक्ष के रूप में अपना कार्यकाल पूरा किया. लोकसभा अध्यक्ष सदन का प्रतिनिधित्व करते हैं। सदन में अनुशासन सुनिश्चित करने के लिए अध्यक्ष जिम्मेदार होता हैं। लोकसभा अध्यक्ष ही तय करते हैं कि लोकसभा की कार्यवाही का क्रम क्या होगा, कौन सा प्रश्न कब पूछा जाएगा और कौन का सदस्य कितने समय तक बोलेगा। वोटिंग के दौरान भी अध्यक्ष की भूमिका बढ़ जाती है और कई मामलों में अध्यक्ष का वोट निर्णायक बन जाता है। मान लीजिए किसी बिल पर वोटिंग हुई है और इसके पक्ष और विपक्ष में बराबर वोट पड़े हैं, ऐसे में अंत में लोकसभा सभा स्पीकर वोट करता है। कुल मिलाकर इस तरह की परिस्थितियों में बिल पास होगा या नहीं, यह तय करने की शक्ति लोकसभा स्पीकर के पास आ जाती है। हालांकि संविधान के अनुच्छेद 100 के अनुसार अध्यक्ष किसी भी वोटिंग प्रक्रिया में हिस्सा नहीं लेता है, लेकिन उक्त स्थिति में ही मतदान कर सकता है। सदन में अनुशासन तोड़ने पर अध्यक्ष सदस्य को सदन की कार्यवाही से निलंबित भी कर सकता है। दल-बदल के आधार पर किसी भी सदस्य को अयोग्य ठहराने की शक्ति भी लोकसभा अध्यक्ष के पास रहती है। लोकसभा की कोई भी प्रक्रिया जैसे स्थगन प्रस्ताव, अविश्वास प्रस्ताव और निंदा प्रस्ताव अध्यक्ष की अनुमति के बगैर नहीं होती। कोई विधेयक धन विधेयक है या नहीं, यह तय करने की शक्ति भी अध्यक्ष के पास होती है। सदन की कई समितियां लोकसभा अध्यक्ष के अधिकार क्षेत्र में रहती है और इनके अध्यक्ष को लोकसभा स्पीकर ही मनोनीत करते है।


रिकॉर्ड बना सकते हैं बिड़ला

बिड़ला यदि दूसरी बार फिर लोकसभा अध्यक्ष बनाए जाते हैं और वे इस पद पर अपना दूसरा कार्यकाल भी पूरा कर लेते हैं, तो उनके नाम एक रिकॉर्ड और दर्ज हो सकता है। साढ़े तीन दशक पहले लगातार दो बार चुने जाने और कार्यकाल पूरा करने वाले बलराम जाखड़ एकमात्र लोकसभा अध्यक्ष रहे हैं। जीएमसी बालयोगी, पीए संगमा जैसे नेता दो बार लोकसभा अध्यक्ष तो बने, लेकिन पूरे 5-5 साल के कार्यकाल पूरे नहीं किए। बलराम जाखड़ ने साल 1980 से 1985 और 1985 से 1989 तक अपने दोनों कार्यकाल पूरे किए। गठबंधन की मजबूरियों के कारण यदि लोकसभा अध्यक्ष का पद सहयोगी दलों के पास जाता है तो इस स्थिति में ओम बिड़ला का नाम राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए भी दौड़ में है। इस पद के लिए राजस्थान से ही भूपेंद्र यादव का नाम भी चला था, लेकिन उन्हें मंत्रिमंडल में जगह दे दी गई है। अब माना जा रहा है कि यदि बिड़ला लोकसभा अध्यक्ष नहीं बन सके, तो मोदी-शाह के नजदीकी होने के कारण उन्हें ठश्रच् का राष्ट्रीय अध्यक्ष पद दिया जा सकता है। सूत्रों के अनुसार राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के संभावित नामों में बिड़ला का भी नाम है, लेकिन इस मामले में एक अड़चन भी है। वह यह कि महाराष्ट्र, बिहार, हरियाणा, दिल्ली जैसे राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। भाजपा चुनावी फायदा लेने के लिए इन राज्यों में से किसी एक राज्य के नेता का नाम अध्यक्ष पद के लिए चुन सकती है। हालांकि अब तक लोकसभा अध्यक्ष का कार्यकाल खत्म होने के तत्काल बाद पार्टी अध्यक्ष का पद किसी को नहीं दिया गया है।


गणेश वासुदेव मावलंकर लोकसभा के पहले अध्यक्ष

आजादी के बाद पहली बार 1952 में सरकार बनी तो लोकसभा के अध्यक्ष पद पर गणेश वासुदेव मावलंकर चुने गए. 1956 में उनके निधन के बाद शेष कार्यकाल के लिए उनके स्थान पर कांग्रेस के ही अनंतशयनम अयंगार का चुनाव भी निर्विरोध हुआ. इसके बाद 1957 के चुनाव के बाद दूसरी लोकसभा के अध्यक्ष भी अयंगार ही चुने गए. 1962 में तीसरी लोकसभा में सरदार हुकुम सिंह और चौथी लोकसभा में नीलम संजीव रेड्डी भी अध्यक्ष पद पर निर्विरोध निर्वाचित हुए. इसके बाद जीएस ढिल्लो, बलिराम भगत, नीलम रेड्डी और के एस हेगड़े स्पीकर रहे, लेकिन चारों लोकसभा अध्यक्ष अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके. 1980 में मध्यावधि चुनाव हुए और सातवीं लोकसभा अस्तित्व में आई तो बलराम जाखड़ स्पीकर चुने गए. बलराम जाखड़ के बाद रवि राय और 1991 के चुनाव के बाद शिवराज पाटिल लोकसभा के अध्यक्ष चुने गए. 1996 से लेकर 1998 तक पीए संगमा लोकसभा स्पीकर रहे. संगमा के बाद 1999 में टीडीपी के सांसद जीएमसी बालयोगी लोकसभा अध्यक्ष चुने गए थे, लेकिन 2002 में हेलीकॉप्टर दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई. इसके बाद शिवसेना के मनोहर जोशी लोकसभा स्पीकर बने. 2004 में कांग्रेस के नेतृत्व यूपीए की सरकार बनी, लेकिन मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के सोमनाथ चटर्जी लोकसभा अध्यक्ष चुने गए. इसके बाद 2009 में मीरा कुमार लोकसभा अध्यक्ष चुनी गई. बीजेपी की सरकार 2014 में बनी सुमित्रा महाजन स्पीकर रहीं और 2019 में ओम बिरला लोकसभा अध्यक्ष चुने गए.




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सुरेश गांधी

वरिष्ठ पत्रकार 

वाराणसी

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