पहाड़ों से घिरी, बादलों से ढकी,
ऊंचे-नीचे ढलानों में बसी,
ऐसी है हमारी पहाड़ी जिंदगी,
मां की छत्रछाया में बीता बचपन हमारा,
मन हमारा पवित्र और दिल में है धैर्यता,
पहाड़ में बस हमें शांति ही मिला,
मौसम और ये वादियां, चाहता नहीं कोई खोना,
जो भी आए यहां, सोचे बस यहीं है बसना,
पहाड़ों के साथ, उनके ही राग गाए,
पहाड़ों में रहकर वो, अपनी याद बसाए,
कंडाली और डूबके का साग खाए,
ऐसा है पहाड़ मेरा, जो आए उसे गले लगाए,
पहाड़ों से घिरा और बादलों से ढका,
ऊंचे नीचे ढलानों में, बसा पहाड़ मेरा।।
प्रियांशी
कक्षा-9
गरुड़, उत्तराखंड
चरखा फीचर
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