कविता : हर वक्त एक ही सवाल - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

रविवार, 21 जुलाई 2024

कविता : हर वक्त एक ही सवाल

हर वक्त एक ही सवाल मन में दौड़ता है,

कैसे कोई पल में अच्छा और बुरा बन जाता है?

बैठे-बैठे यही सोचती हूं, जवाब नही मिल पता है,

जब वह अच्छा बनता है, तो तारीफें करता है,

और जब बुरा बनता है तो बुराइयां करता है,

हर बार अपना अलग रंग दिखलाता है,

उसका रंग देखते-देखते जीवन निकल जाता है,

मगर रंग बदलते-बदलते वह क्यों नहीं थकता है?

उससे कैसे बचा जाए, यह बस हमें ही आता है,

पर तब भी उससे कोई बच नहीं पाता है,

क्या लोग ऐसे ही होते हैं? मन में यही सवाल आता है,

मगर जवाब नहीं मिल पाता है, बस बैठे बैठे दिन निकल जाता है।






Sakshi-devrari-charkha-feature


साक्षी देवरारी

गरुड़, बागेश्वर

उत्तराखंड

चरखा फीचर

कोई टिप्पणी नहीं: