समाज में रहना है तो,
बंध कर रहना होगा,
घर से बाहर निकलने से पहले,
समाज के बारे में सोचना ही होगा,
चूल्हे पर रोटी सेकने वाली औरतें,
बाहर काम नहीं कर सकती हैं,
लड़कियों से घर की इज्जत है,
वे लड़कों से दोस्ती नहीं कर सकती है,
समाज की चार बातों से डर कर,
हाफ शॉर्ट्स नहीं पहन सकती है,
माता पिता की इज्जत की ख़ातिर,
सुसराल में अपनी इच्छा को दबाती है,
आखिर लड़कियां भी तो इंसान हैं,
किसी के हाथों की कठपुतलियां नहीं,
जब चाहे नाच नचाये समाज,
जब चाहे बंधन में बांधे समाज,
रोक टोक की इस बस्ती में,
औरत का ही क्यों बसेरा है?
उनमें भी है उड़ने का आकार,
मत छीनो तुम उनसे ये सारा अधिकार॥
पूजा गोस्वामी
गरुड़, उत्तराखंड
चरखा फीचर
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