राज्य के अजमेर जिला स्थित नाचनबाड़ी गांव ऐसा ही एक उदाहरण है. जिला के घूघरा पंचायत स्थित इस गांव में अनुसूचित जनजाति कालबेलिया समुदाय की बहुलता हैं. पंचायत में दर्ज आंकड़ों के अनुसार गांव में लगभग 500 घर हैं. गांव के अधिकतर पुरुष और महिलाएं स्थानीय चूना भट्टा पर दैनिक मज़दूर के रूप में काम करते हैं. जहां दिन भर जी तोड़ मेहनत के बाद भी उन्हें इतनी ही मज़दूरी मिलती है जिससे वह अपने परिवार का गुज़ारा कर सके. यही कारण है कि गांव के कई बुज़ुर्ग पुरुष और महिलाएं आसपास के गांवों से भिक्षा मांगकर अपना गुज़ारा करते है. समुदाय में किसी के पास भी खेती के लिए अपनी ज़मीन नहीं है. खानाबदोश जीवन गुज़ारने के कारण इस समुदाय का पहले कोई स्थाई ठिकाना नहीं हुआ करता था. हालांकि समय बदलने के साथ अब यह समुदाय कुछ जगहों पर पीढ़ी दर पीढ़ी स्थाई रूप से निवास करने लगा है. लेकिन इनमें से किसी के पास ज़मीन का अपना पट्टा नहीं है. इस समुदाय में बालिका शिक्षा की स्थिति अब भी कम है. हालांकि पहले की तुलना में कालबेलिया समुदाय के लोग अपनी लड़कियों को स्कूल भेजने लगे हैं लेकिन अधिकतर लड़कियों की 12वीं के बाद शादी कर दी जाती है. इस संबंध में समुदाय की एक 37 वर्षीय महिला शांति बाई बताती हैं कि "नाचनबाड़ी में केवल एक प्राथमिक विद्यालय है, जहां पांचवी तक की पढ़ाई होती है. इसमें गांव के सभी बच्चे पढ़ने जाते हैं. लेकिन इसके आगे के लिए बच्चों को तीन किमी दूर घूघरा जाना पड़ता है. जहां अपनी लड़कियों को भेजने के लिए अभिभावक तैयार नहीं होते हैं." शांति बाई बताती हैं कि उनकी तीन लड़कियां हैं जो 10वीं, 9वीं और 6वीं में पढ़ने के लिए घूघरा गांव जाती हैं. यह समुदाय की पहली लड़कियां हैं जो 5वीं से आगे शिक्षा प्राप्त करना शुरू की थी. उनके इस कदम से समुदाय के कुछ जागरूक अभिभावकों ने भी अपनी लड़कियों को माध्यमिक और उच्च शिक्षा के लिए घूघरा गांव के हाई स्कूल में एडमिशन कराया है.
वह बताते हैं कि उनके दो बेटे और तीन बेटियां हैं. जिन्हें वह पढ़ाना चाहते हैं, लेकिन लड़कियों की शिक्षा के प्रति समाज की नकारात्मक सोच इस दिशा में सबसे बड़ी बाधा बन रही है. विशेषकर जब घर के ही बड़े बुजुर्ग लड़कियों को उच्च शिक्षा दिलाने की जगह उनकी शादी करने का दबाव डालने लगें तो अभिभावकों के सामने विकट परिस्थिति आ जाती है. ऐसी परिस्थिति का वह स्वयं सामना कर रहे हैं. लेकिन शिक्षा की महत्ता को समझते हुए वह अपनी बेटियों को उच्च शिक्षा दिलाने का प्रयास करेंगे. इस संबंध में स्थानीय समाजसेवी वीरेंद्र बताते हैं कि कालबेलिया समुदाय में शिक्षा के प्रति जागरूकता अभी कम है. यही कारण है कि इस समुदाय की कोई भी लड़की आज तक 12वीं से आगे की शिक्षा प्राप्त नहीं कर सकी है. दसवीं के बाद से ही कालबेलिया समाज की ओर से माता-पिता पर लड़की की शादी कराने का दबाव बढ़ने लगता है. हालांकि इस समुदाय में शिक्षा के स्तर को बढ़ाने के लिए सरकार की ओर से बहुत अधिक प्रयास किए जाते रहे हैं. इसके अतिरिक्त स्थानीय स्तर पर कई स्वयंसेवी संस्थाएं भी बालिका शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए कार्यक्रम संचालित करती हैं. लेकिन यह सभी प्रयास उस समय ही सफल हो सकते हैं, जब सरकारी पहल और इन संस्थाओं के साथ मिलकर कालबेलिया समाज आगे बढ़ेगा. इसके लिए समुदाय में जागरूकता का प्रसार करनी होगी ताकि इस समाज की किशोरियों को शिक्षा जैसे मूलभूत अधिकार के लिए संघर्ष न करनी पड़े.
निरमा
अजमेर, राजस्थान
(चरखा फीचर)
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