हम इसी संबंध में राजद के एक नेता से बात कर रहे थे। उन्होंने कहा कि इस्तीफा नहीं देती तो उनका लोकसभा नामांकन रद हो जाता है। हमने कहा कि ऐसा नहीं है। रामकृपाल यादव ने राजद के राज्यसभा सदस्य रहते हुए भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा था। पिछले विधान सभा चुनाव सुमन महासेठ भाजपा के एमएलसी थे और वीआईपी के टिकट पर मधुबनी से चुनाव लड़ रहे थे। पिछले लोकसभा चुनाव में अजय निषाद भाजपा के सांसद रहते हुए कांग्रेस के टिकट पर मुजफ्फरपुर से चुनाव लड़ रहे थे। हर चुनाव में दर्जनों लोग होते हैं, जो एक पार्टी के सांसद या विधायक रहते हुए दूसरी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ते हैं। इनकी उम्मीदवारी पर कोई संकट नहीं आता है। पिछले लोकसभा चुनाव में झारखंड का मामला है। जेपी पटेल मांडू से भाजपा के विधायक थे और कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा का चुनाव हजारीबाग से चुनाव लड़ रहे थे। लोबिन हेम्ब्रम जेएमएम के विधायक थे और राजमहल से निर्दलीय चुनाव लड़ रहे थे। हालांकि दोनों चुनाव हार गये, लेकिन दूसरी पार्टी के विधायक होने के कारण नामांकन में कोई अड़चन नहीं आयी। नामांकन के लिए ऐसी कोई बाध्यता नहीं है कि आप एक पार्टी के विधायक या सांसद रहते हुए दूसरी पार्टी से चुनाव नहीं लड़ सकते हैं। इसलिए बीमा भारती भी जदयू विधायक रहते हुए राजद के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ सकती थीं और विधायक भी बनी रह सकती थीं। सवाल दल-बदल विरोधी कानून के तहत विधायकी समाप्त करने को लेकर आता है। झारखंड में जेपी पटेल और लोबिन हेम्ब्रम की सदस्यता दल बदल विरोधी कानून के तहत 25 जुलाई को समाप्त कर दी गयी। यह मामला विधान सभा के स्तर पर उठा और कार्रवाई हुई। लेकिन दूसरी दल के आधार पर नामांकन में कोई अड़चन नहीं आयी।
बीमा भारती का मामला झारखंड से अलग है। यदि बीमा भारती जदयू की विधायक रहते हुए चुनाव लड़ती और हार जाती तो भी उनकी खिलाफ कोई कार्रवाई विधान सभा सचिवालय नहीं कर सकता था। हालांकि उनकी सदस्यता दल-बदल के आधार पर समाप्त का अधिकार विधान सभा स्पीकर के पास है, लेकिन स्पीकर ऐसा नहीं कर सकते थे। वजह साफ है। इसी सदन में राजद के पांच और कांग्रेस के दो विधायक नीतीश कुमार की नौवीं सरकार के बहुमत हासिल करने के दिन से ही सत्ता पक्ष में बैठ रहे हैं। यह भी बद-बदल है। इस दौरान आसन पर स्पीकर ही बैठते हैं। जब वे अपने सामने सात विधायकों के पाला बदलकर बैठने के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर सकते हैं तो बीमा भारती के खिलाफ भी वे कार्रवाई नहीं कर सकते थे। दल-बदल कानून के तहत स्पीकर बीमा भारती के खिलाफ कार्रवाई करते तो राजद और कांग्रेस के सात सदस्यों के खिलाफ भी उन्हें कार्रवाई करनी पड़ती। स्पीकर ऐसी कार्रवाई का जोखिम नहीं उठा सकते थे। यदि राजद और कांग्रेस के बागी विधायकों की सदस्यता समाप्त कर दी जाती तो सरकार पर ही संकट आ जाता। ऐसा करना किसी भी स्पीकर के लिए संभव नहीं था। स्पीकर के पद पर बैठा हर आदमी अंधा होता है। उसकी प्रतिबद्धता संविधान और संवैधानिक मर्यादा के प्रति नहीं होती है। उसकी आस्था और प्रतिबद्धता मुख्यमंत्री और पार्टी के हित से बंधी होती है। इसके लिए कोई भी कीमत चुकाने को तैयार रहते हैं। आसन की अंधेरगर्दी के लोकसभा और विधान सभाओं में दर्जनों उदाहरण मौजूद हैं। बिहार में अराजकता में राह निकालने का विकल्प राजद के पास था, बीमा भारती को विधायक बनाये रखने का आधार भी था, लेकिन तेजस्वी के रणनीतिकारों की मूर्खता की वजह से बीमा भारती नप गयीं।
वीरेंद्र यादव, वरिष्ठ पत्रकार, पटना
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