यात्रा वृतांत : माउंट मणिपुर नेशनल पार्क - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

शुक्रवार, 26 जुलाई 2024

यात्रा वृतांत : माउंट मणिपुर नेशनल पार्क

Manipur-national-park
‘माउंट हैरिएट’ ब्रिटिश राज के दौरान अंडमान द्वीप के मुख्य आयुक्त का ग्रीष्मकालीन मुख्यालय था। पोर्ट ब्लेयर से सड़कमार्ग द्वारा 55 किमी और नौका-जहाज मार्ग से 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह जगह पास के द्वीपों और समुद्र के आकर्षक दृश्य के लिए दर्शनीय है । ‘माउंट हैरियट’ अंडमान और निकोबार द्वीप समूह की तीसरी सबसे ऊँची चोटी है, जहाँ मणिपुर के महाराजा कुलचंद्र सिंह और 22 अन्य स्वतंत्रता सेनानियों को एंग्लो-मणिपुर युद्ध (1891) के दौरान कैद किया गया था। मणिपुर के उन्हीं स्वतंत्रता सेनानियों के सम्मान में,हाल ही में, इसका नाम परिवर्तित किया गया और इस का नाम रखा गया माउंट मणिपुर नेशनल पार्क। दरअसल,1891 के ऐंग्लो-मणिपुर युद्ध के बाद अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने वाले महाराजा कुलचंद्र ध्वाजा सिंह समेत कई मणिपुरी सेतानियों को ब्रिटिश सरकार ने दंड के तौर पर अंडमान द्वीप की कॉलोनी में निर्वासित कर दिया था। उस समय तक पोर्ट ब्लेयर में कुख्यात सेलुलर जेल (कालापानी) नहीं बनी थी। इसलिए कुलचंद्र और बाकी कैदियों को ‘माउंट हैरियट’ द्वीप पर ही रखा गया था । इम्फाल के एक इतिहासकार वैंगम सोमोरजीत के अनुसार उन 23 बहादुर सेनानियों को मणिपुर में ‘वॉर हीरो’ माना जाता है। इसीलिए ‘माउंट हैरियट’ 1891 के एंग्लो-मणिपुर युद्ध का एक महत्वपूर्ण प्रतीक था। जैसा कि कहा गया है कि मणिपुर के उन्हीं स्वतंत्रता सेनानियों के सम्मान में ‘माउंट हैरियट’ का नाम परिवर्तित किया गया और इस का नाम रखा गया ‘माउंट मणिपुर नेशनल पार्क।‘ अपनी पोर्ट ब्लेयर की यात्रा के दौरान बेटी अपर्णा के सहयोग से आज इस ऐतिहासिक स्थल को देखने का सुयोग बना।कुछ चित्र साझा कर रहा हूँ।





डॉ० शिबन कृष्ण रैणा

कोई टिप्पणी नहीं: