जल सम्पदा विभाग के विश्वासघात का दुष्परिणाम हैं ग्लोबल वार्मिंग, जलवायु परिवर्तन : श्याम सुन्दर राठी - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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गुरुवार, 25 जुलाई 2024

जल सम्पदा विभाग के विश्वासघात का दुष्परिणाम हैं ग्लोबल वार्मिंग, जलवायु परिवर्तन : श्याम सुन्दर राठी

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नई दिल्ली। देश ने जलसंपदा विभाग को पानी संग्रह कर सुरक्षित रखने की ज़िम्मेदारी सौंपी। विभाग इस कार्य के लिए अब तक देश भर में 6,000 बांध निर्माण कर चुका हैं। इन बांधो के निर्माण में 8,00 गुना 8,00 किलोमीटर का भूखण्ड यानी देश की कुल जमीन का 21% भूभाग उपयोग किया जा चुका है। इनके लिए लाखों गावों एवं कस्बों में रहने वाले 12 करोड़ भारतीयों ने अपने घरों एवं जमीन की कुर्बानी दी है तथा देश की 30% वन सम्पदा इन बांधो की भेंट चढ़ गई है। इन बांधो के निर्माण में जनता से टैक्स में वसूला गया अथाह धन खर्च किया गया, उन पैसों के हिसाब की बात छोड़िए आकलन करना भी असम्भव है। यह कहना है जल वैज्ञानिक श्याम सुंदर राठी का। उनका शोध है कि जल सम्पदा विभाग इन 6,000 बांधों के जरिए जो पानी संग्रह करता है उस पानी का मूल्य एक पैसे प्रति लीटर की दर से हिसाब किया जाए तो यह राशि  80 लाख करोड़ रुपए को पार कर जाएगी (देश के 3 सालों के बजट की धनराशि)। विभाग उस अथाह पानी का न्यूनतम लाभ जनता को प्रदान करता तो देश में एक भी व्यक्ति गरीब नही रहता। हमें बूंद बूंद पानी बचाओ, पानी सोने से अधिक मूल्यवान है, जल है तो कल है का ज्ञान देने वाला विभाग अथाह पानी संग्रह कर पूरा का पूरा पानी बर्बाद कर रहा है और हमें पानी के बिना मरने के लिए भगवान भरोसे छोड़ देता है। जलसंपदा विभाग पानी स्टोर कर के रखने के स्थान पर संग्रह किए हुए पानी को जल कब्रगाहों में दफन कर के देश तथा हम सब के साथ विश्वासघात कर रहा है।

     

बांधों में नदी नालों से पानी को अलग कर उस पानी को जमीन पर गिरा देने का चलन है। एक 10,,12 वर्ष का बच्चा भी जानता है कि पानी को जमीन पर गिरा दिया जाता है तो पानी कुछ समय के भीतर स्वतः खत्म हो जाता है। जल संपदा विभाग में कार्यरत लाखों विशेषज्ञ, वैज्ञानिक, इंजीनियर्स, टेक्नोलॉजिस्ट, अधिकारी विज्ञान की इस सच्चाई को नहीं मानते इसलिए 6,000 जल-कब्रगाहों का निर्माण देश भर में कर चुके हैं। जलसंपदा विभाग अपनी इस भूल को सुधारने के बदलें नाकामयाबियों को छुपाने के लिए दुनिया का सबसे बड़ा घृणित अपराध कर रहा है जिसे किसी भी सूरत में क्षमा नहीं किया जा सकता। विभाग भूगर्भ जल को इंसानों की संपत्ति घोषणा कर के एवं पानी की कमी का झूठा प्रचार कर के चारों ओर अंधविश्वास फैला रहा है। भूगर्भ जल के लिए बनाए गए सारे नीति नियमों को धत्ता बताते हुए 24 घंटे सातों दिन तीन सौ पैंसठ दिन बिना किसी रोक टोक के पंप लगाकर मन इच्छा भूगर्भ जल का दोहन हो रहा है। जिससे देश के 80% भूभाग का भूगर्भ जल का स्तर घट कर डार्क जोन से बहुत नीचे चला गया है। परिणाम स्वरूप आगामी कुछ वर्षो में हराभरा भारत मरुभूमि बन कर रह जाएगा। भूगर्भ जल की इस क्षति को भरपाई किए बगैर आज की परिस्थितियों को सामान्य करना असंभव है। मैंने देश को आवश्यक होने वाले पानी का सर्वे किया तब दो सौ सत्तर घन किलोमीटर पानी की आवश्यकता का आंकड़ा निकल कर आया। एम एस डी टैंक के जरिए 270 के एम पानी मात्र दो वर्षो में स्टोर कर आम लोगों तक पहुंचाया जा सकता है। उसके पश्चात मैंने बांधों की कार्य क्षमता बनाई तब मौजूदा समय की गंभीर परिस्थितियों को करीब से समझने का अवसर मिला। बांधों की कार्य क्षमता के आंकड़े मेरे लिए सदमे से कम नहीं हैं फिर भी विज्ञान की सच्चाई को स्वीकार करना ही पड़ेगा। बांधों में संग्रह किए गए 1,000 लीटर पानी से मात्र 2 से 3 लीटर पानी का लाभ हिताधिकारियों को मिलता है एवं अवशिष्ट 997- 998 लीटर पानी बर्बाद हो जाता है। बांध रुपी जल-कब्रगाह इन सभी समस्याओं की जननी निकल कर सामने आई। यह आंकड़े आप सब के सामने रख रहा हूं जिससे जल-कब्रगाहों की सच्चाई देश दुनिया तक पहुंचे एवं मेरी शोध का लाभ मानव जाति को मिले।

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