बांधों में नदी नालों से पानी को अलग कर उस पानी को जमीन पर गिरा देने का चलन है। एक 10,,12 वर्ष का बच्चा भी जानता है कि पानी को जमीन पर गिरा दिया जाता है तो पानी कुछ समय के भीतर स्वतः खत्म हो जाता है। जल संपदा विभाग में कार्यरत लाखों विशेषज्ञ, वैज्ञानिक, इंजीनियर्स, टेक्नोलॉजिस्ट, अधिकारी विज्ञान की इस सच्चाई को नहीं मानते इसलिए 6,000 जल-कब्रगाहों का निर्माण देश भर में कर चुके हैं। जलसंपदा विभाग अपनी इस भूल को सुधारने के बदलें नाकामयाबियों को छुपाने के लिए दुनिया का सबसे बड़ा घृणित अपराध कर रहा है जिसे किसी भी सूरत में क्षमा नहीं किया जा सकता। विभाग भूगर्भ जल को इंसानों की संपत्ति घोषणा कर के एवं पानी की कमी का झूठा प्रचार कर के चारों ओर अंधविश्वास फैला रहा है। भूगर्भ जल के लिए बनाए गए सारे नीति नियमों को धत्ता बताते हुए 24 घंटे सातों दिन तीन सौ पैंसठ दिन बिना किसी रोक टोक के पंप लगाकर मन इच्छा भूगर्भ जल का दोहन हो रहा है। जिससे देश के 80% भूभाग का भूगर्भ जल का स्तर घट कर डार्क जोन से बहुत नीचे चला गया है। परिणाम स्वरूप आगामी कुछ वर्षो में हराभरा भारत मरुभूमि बन कर रह जाएगा। भूगर्भ जल की इस क्षति को भरपाई किए बगैर आज की परिस्थितियों को सामान्य करना असंभव है। मैंने देश को आवश्यक होने वाले पानी का सर्वे किया तब दो सौ सत्तर घन किलोमीटर पानी की आवश्यकता का आंकड़ा निकल कर आया। एम एस डी टैंक के जरिए 270 के एम पानी मात्र दो वर्षो में स्टोर कर आम लोगों तक पहुंचाया जा सकता है। उसके पश्चात मैंने बांधों की कार्य क्षमता बनाई तब मौजूदा समय की गंभीर परिस्थितियों को करीब से समझने का अवसर मिला। बांधों की कार्य क्षमता के आंकड़े मेरे लिए सदमे से कम नहीं हैं फिर भी विज्ञान की सच्चाई को स्वीकार करना ही पड़ेगा। बांधों में संग्रह किए गए 1,000 लीटर पानी से मात्र 2 से 3 लीटर पानी का लाभ हिताधिकारियों को मिलता है एवं अवशिष्ट 997- 998 लीटर पानी बर्बाद हो जाता है। बांध रुपी जल-कब्रगाह इन सभी समस्याओं की जननी निकल कर सामने आई। यह आंकड़े आप सब के सामने रख रहा हूं जिससे जल-कब्रगाहों की सच्चाई देश दुनिया तक पहुंचे एवं मेरी शोध का लाभ मानव जाति को मिले।
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