- गरीबी के ऐतिहासिक दुष्चक्र से राज्य को निकालने के लिए कोई विशेष पैकेज भी नहीं मिला
केंद्रीय बजट में ‘पूर्वोदया’ योजना के तहत कहा जा रहा है कि बिहार को बहुत कुछ दिया जा रहा है. लेकिन सरकार की यह योजना मूलतः हाइवे के निर्माझा पर केंद्रित है, जो मूलतः मोदी के काॅरपोरेट मित्रों के हितों में ध्यान रखकर तैयार किया गया है. इन योजनाओं से जनता को सही अर्थों में न तो कोई लाभ मिलेगा और न ही कोई रोजगार. बिहार की खेती में व्यापक सुधार और कृषि आधारित उद्योंगों के विकास के बिना बिहार के विकास की हर बात बेमानी है. कृषि का अधिकांश बटाईदार किसानों पर निर्भर है, लेकिन बजट में इन तबकों की घोर उपेक्षा की गई है. ग्रामीण मजदूरों व युवाओं के रोजगार के लिए एक शब्द नहीं कहा गया है. आशा, रसोइया, आंगनबाड़ी आदि कार्यकर्ताओं को सरकार ने एक बार फिर छला है. दरअसल, भाजपा के एजेंडे में बिहार को आर्थिक तौर पर सशक्त बनाने का एजेंडा कभी रहा ही नहीं. वह इसे काॅरपोरेट घरानों के लिए सस्ता श्रम उपलब्ध कराने का जोन बना कर रखना चाहती है. हालत यह हो गई कि अभी हाल ही में जारी नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार सतत विकास सूचकांक में बिहार देश में सबसे निचले पायदान पर पहुंच गया है. विगत साल बिहार सरकार द्वारा कराए गए सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण में भी राज्य में - भयावह गरीबी, आवासहीनता, पलायन, कर्ज के भारी बोझ - की तस्वीर उभरकर सामने आई थी. रिपोर्ट के अनुसार 95 लाख से अधिक परिवार महागरीबी रेखा के नीेचे पाए गए. राज्य की बड़ी आबादी पलायन को मजबूर है और देश के दूसरे हिस्सों में बेहद भयावह स्थितियों में काम कर रही है. राज्य की ऐसी दयनीय स्थिति के लिए भाजपा-जदयू ही जिम्मेवार है. ये स्थितियां बिहार के विशेष राज्य के दर्जे की मांग को पुष्ट कर रही हैं.
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