कविता : रोजी रोटी की चिंता - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

शुक्रवार, 23 अगस्त 2024

कविता : रोजी रोटी की चिंता

दूर-दराज से आते हैं वो,

शहर में कहीं दूर रह जाते हैं वो,

मिल तो जाती है रोजी रोटी, मगर,

सड़क पर ही सो जाते हैं वो,

और ऊंची ऊंची इमारतों के बीच,

छत के लिए तरस जाते हैं वो,

शहर की इस चमक-दमक में, 

दूर कहीं खो जाते हैं वो,

रोजी रोटी का है ये खेल सारा,

नहीं मिलता उनको इसका सहारा,

बच्चे भी करते उनके साथ प्रवास,

और बन जाते बाल मजदूर बेआस,

बाल विवाह और दहेज प्रथा से नहीं बच पाते वो,

अपने श्रम के साथ खुद भी बिक जाते हैं वो,

देखकर हालत इन श्रमिक मजदूरों की,

इंसानियत के भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं,

भाई, कुछ तो मजबूरी होगी इनकी जो, 

यूं हीं सड़क पर सो जाते हैं वो,

सरकार भी नहीं करती कुछ रोजगारी के लिए,

बस यही रोना रो जाते हैं वो,

पापी पेट का सवाल है भाई,

जिसके लिए उलझ जाते हैं वो,

मिल जाए रोजी रोटी और क्या चाहिए हमें?

बस यही एक बात कहते जाते हैं वो,

बाल मजदूर बन जाते बच्चे उनके,

और आजीवन अशिक्षित रह जाते हैं वो,

उठा कर कर्ज अपने जीवन का,

बस मजदूर और मजबूर रह जाते हैं वो,

दूर कहीं रह जाते हैं वो, 

और शहर में कहीं खो जाते हैं वो।।





Minakshi-charkha-feature


मीनाक्षी

अहमदाबाद, गुजरात

चरखा फीचर

कोई टिप्पणी नहीं: