कैसी है समाज में ये आग भड़की सी?
जला गई अरमान कई मासूमों की,
घर की बेटी बहुओं को जला चुका,
बच्चों की बलि चढ़ा रहा हिंसा की,
घर में सहती रही ये हर ज़ुल्म सितम,
बाहर भी कहां थी ये सुरक्षित,
जब लोगों के ताने सुन सुन कर,
जब इस अबला ने दिया देह त्याग,
तब बढ़ी समाज में हिंसा की आग,
जो सहती थी हिंसा उसे हुआ ये ज्ञात,
अगर नहीं बुझेगी हिंसा की आग,
तो करना होगा औरत को ही त्याग,
महसूस कर इस हिंसात्मक आग को
उठ गई कुछ अबला अकेली मैदान में,
और दिया एक संदेश पूरे समाज में,
नया सवेरा, नई किरण का समय आएगा,
नई उमंग और एक नया समाज बनेगा
अंशु कुमारी
गोरियारा, मुजफ्फरपुर
चरखा फीचर
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