आलेख : मरणासन्न महिला के लिए डॉ. विभा मिश्रा बनी भगवान - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शनिवार, 31 अगस्त 2024

आलेख : मरणासन्न महिला के लिए डॉ. विभा मिश्रा बनी भगवान

जी हां, डॉक्टर यूं ही भगवान नहीं कहा जाता। चिकित्सा के क्षेत्र में ऐसे एक-दो नहीं कई चिकित्सक है गंभीर से गंभीर मरीजों को नया जीवन देने में सफल रहे है। लेकिन गाइनोकॉलोजी (एमबीबीएस, डीजीओ, डीएनबी, फीएज फेलो, गाइनियोलॉजिस्ट एवं प्रोफेसर प्रसूति एवं स्त्री रोग विशेषज्ञ) के क्षेत्र में वाराणसी में डॉक्टर विभा मिश्रा एक बड़ा नाम बन चुका है। इसकी गवाही भदोही जनपद के सुरियावा निवासी रेनु देवी पत्नी सोनीलाल जायसवाल खुद देती है। सोनी के मुताबिक उनकी पत्नी को सप्ताहभर पहले पतला लेट्रिन शुरु हो गया, लेकिन 3 दिन बाद भी जब ठीक नहीं हुई तो जनपद में ही एक बड़े अस्पताल में बेहोशी के हाल में भर्ती कराया, वहां पांच यूनिट ब्लड चढ़ाने के बावजूद स्वास्थ्य में सुधार होना तो दूर आधी रात के बाद चिकित्सक ने यह कहकर जवाब दे दिया घर ले जाकर सेवा करें। तभी एक सीनियर जर्नलिस्ट की सलाह पर वाराणसी के गाइनोकॉलोजिस्ट के यहां भर्ती कराया। 36 घंटों से तेज दर्द हो रहा था, हालांकि उसे ब्लीडिंग नहीं हो रही थी और न ही कोई लक्षण दिख रहे थे। खास यह है कि नाड़ी का धड़कना बंद सा हो गया था या यूं कहे मिल नहीं रहा था। पेट की जांच के दौरान भी यूट्रस के बारे में कुछ स्पष्ट नहीं हो रहा था, लेकिन डॉक्टर विभा ने हास्पिटल के फार्मेलिटिज पूरा कर रिस्क लेते हुए तत्काल ऑपरेशन किया, जिससे उनकी पत्नी की जान बच गयी


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भगवान ने इस संसार की रचना की है. दुनिया में जो कुछ भी मौजूद है, वो इसी भगवान ने रचा है. भगवान हर एक चीज को बेहद सोच-समझकर बनाते हैं. किसके लिए क्या सही है और कैसे नेचर को बैलेंस रखा जाएगा, ये सबकुछ भगवान ने सोचकर दुनिया को गढ़ा है. भगवान होते हैं, ये हम सब मानते हैं. उन्हें किसी ने देखा नहीं है. लेकिन अगर पृथ्वी पर किसी को भगवान कहा जाता है तो वो हैं डॉक्टर्स. जहां भगवान संसार में एक शख्स को जन्म देकर लेकर आते हैं. वहीं डॉक्टर्स उसी इंसान को इस दुनिया में जिंदा रहने में मदद करते हैं. अगर किसी को कोई बीमारी हो जाती है या फिर किसी तरह की मेडिकल दिक्कत आती है, तो डॉक्टर्स ही उसकी मदद करते हैं. अगर किसी की जान जाने को आती है तो लोगों का विश्वास सिर्फ और सिर्फ डॉक्टर्स पर होता है. इसी वजह से डॉक्टर्स को भगवान का दर्जा दिया जाता है. हालांकि ऐसे कई उदाहरण है जहां चिकित्सक के प्रयास से मृत घोषित हो चुके या यूं कहे मरणासन्न मरीजों को बचाया गया है, लेकिन हसाल के दिनों में बदहाल चिकित्सा व्यवस्था के लिये बदनाम वाराणसी की विभा मिश्रा ने एक बड़ी उपलब्धि अपने नाम की है। गाइनोकॉलोजी (प्रसूति एवं स्त्री रोग विशेषज्ञ) डॉक्टर विभा मिश्रा द्वारा मरणासन्न महिला की जान बचाना चिकित्सा के क्षेत्र में बड़ी उपलब्धि माना जा रहा है।


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बता दें, डॉक्टर विभा मिश्रा गाइनोकॉलोजी (एमबीबीएस, डीजीओ, डीएनबी, फीएज फेलो, गाइनियोलॉजिस्ट एवं प्रोफेसर प्रसूति एवं स्त्री रोग विशेषज्ञ) प्रसूति एवं स्त्री रोग विशेषज्ञ) के क्षेत्र में एक बड़ा नाम बन चुका है। इसकी एक बानगी उस देखने को मिली जब भदोही जनपद के सुरियावा निवासी रेनु देवी पत्नी सोनीलाल जायसवाल की पत्नी को सप्ताहभर पहले पतला लेट्रिन शुरु हो गया, लेकिन 3 दिन बाद भी जब ठीक नहीं हुई तो जनपद में ही एक बड़े अस्पताल में बेहोशी के हाल में भर्ती कराया, वहां पांच यूनिट ब्लड चढ़ाने के बावजूद स्वास्थ्य में सुधार होना तो दूर आधी रात के बाद चिकित्सक ने यह कहकर जवाब दे दिया घर ले जाकर सेवा करें। तभी एक सीनियर जर्नलिस्ट की सलाह पर वाराणसी के गाइनोकॉलोजिस्ट के यहां भर्ती कराया। 36 घंटों से तेज दर्द हो रहा था, हालांकि उसे ब्लीडिंग नहीं हो रही थी और न ही कोई लक्षण दिख रहे थे। खास यह है कि नाड़ी का धड़कना बंद सा हो गया था या यूं कहे नाड़ी का कहीं अता-पता नहीं रहा था। पेट की जांच के दौरान भी यूट्रस के बारे में कुछ स्पष्ट नहीं हो रहा था, लेकिन डॉक्टर विभा ने हास्पिटल के फार्मेलिटिज पूरा कर रिस्क लेते हुए तत्काल ऑपरेशन किया, जिससे उनकी पत्नी की जान बच गयी। सोनी का कहना है कि जब कोई बीमार हो या किसी पीड़ा से ग्रस्त हो तो पहले भगवान का नाम मुंह से निकलता है, फिर डॉक्टर में ही उसे भगवान दिखता है। वे अपनी पत्नी को लेकर निराश हो चुके थे। इसकी पल्स भी डॉक्टर्स को नहीं मिल रही थी. सांसें भी नहीं चल रही थी. लेकिन डॉक्टर्स ने उम्मीद नहीं हारी, उनकी कोशिश बेकार नहीं गई और आखिरकार पत्नी की जान बच गयी। सोनी इस बात से भी सहमत दिखे कि डॉक्टर्स वाकई भगवान का रुप होते हैं.

                

डॉक्टर विभा मिश्रा ने बताया कि एक घंटे की मेहनत कर रेनू का ऑपरेशन किया गया। ऑपरेशन के दौरान यूट्ररस के फटे हुए पार्ट को निकाल दिया गया। साथ ही पेट में जमा हुए खून को भी साफ करने के साथ घायल आंत एवं लीवर का भी यथोचित उपचार किया गया। मरीज का आपरेशन पूरी तरह से सफल रहा। निचले हिस्से में कटे हुए घाव पर टांके लगाकर गर्भाशय को जोड़ने में सफल रहे, जिससे उसकी जान बचायी जा सकी। सप्ताहभर की पोस्ट-ऑपरेटिव केयर के बाद, महिला को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई। जबकि, उसके बाद के सभी टेस्ट में सबकुछ ठीक पाया गया। उन्होंने कहा, ये एक ऐसा पेशा है जिस पर लोगों का बहुत विश्वास होता है। उसी विश्वास को जिंदा रखने के लिए चिकित्सक मरीज की जान बचाने का हर रोज अथक प्रयास करता है। डॉक्टरी पेशा बहुत मुश्किलों से भरा भी है। कठिन परीक्षाओं के बाद एक चिकित्सक लोगों का इलाज कर पाने के लिए तैयार होता है। मगर डॉक्टर बनने के पीछे ज्यादातर का एक ही लक्ष्य होता है कि वह लोगों की सेहत की रक्षा कर सके। मेरा पहला लक्ष्य है इस पेशे के प्रति ईमानदार बनू। मेरे जहन में हमेशा रहता है कि मैं इतना काबिल डॉक्टर बन सकूं कि मुश्किल में आने वाले लोगों की जान बचा सकूं। प्रभु ने इस जीवन में जो कार्यभार सौंपा है उसे और अच्छे ढंग से करने का प्रयास करती हूं। महिलाएं क्यों निकलवा रही हैं गर्भाशय के जवाब में डाक्टर विभा मिश्रा ने बताया कि हाल के दिनों में कामकाजी महिलाओं और माहवारी से जुड़ी दो चिंताजनक ख़बरें सामने आई हैं. अक्सर सुनने में आता है कि महिलाओं को गर्भाशय निकालने के लिए ऑपरेशन कराना पड़ा है. ये संख्या अच्छी खासी है. लेकिन यह अंतिम विकल्प नहीं है। यूट्ररस की समस्या को इलाज से भी ठीक किया जा सकता है। साफ़ सफ़ाई की बहुत अच्छी स्थिति न होने के कारण अधिकांश महिलाओं को संक्रमण हो जाता है. इसके चलते महिलाएं परेशान हो जाती है। चूंकि डॉक्टर उन्हें गर्भाशय निकलवाने के ऑपरेशन से जुड़ी समस्याओं के बारे में नहीं बताते इसलिए उनमें से अधिकांश महिलाएं मानती हैं कि गर्भाशय से छुटकारा पाना ही ठीक है. कई केस ऐसे आत है, जिनस पता चलता है कि जबसे उनका ऑपरेशन हुआ है उनकी सेहत और बिगड़ गई है. एक महिला ने बताया कि उसकी गर्दन, पीठ और घुटने में लागातर दर्द बना रहता है और जब वो सुबह उठती है तो उसके हाथ, पैर और चेहरे पर सूजन रहती है.


एक अन्य महिला ने लगातार चक्कर आने की शिकायत की और बताया कि वो थोड़ी दूर तक भी पैदल चलने में असमर्थ हो चुकी है. इसके कारण काम करने में उन्हें परेशानी होता है। दूसरी ख़बर भी इतनी ही चिंताजनक हैं महिलाएं अक्सर पीरियड के दौरान दर्द की शिकायत करती है। जबकि इस तरह की समस्याएं बेहद घातक होती है। महिलाओं की ये बीमारी, शर्मिंदगी हंसती-खेलती जिंदगी में जहर घोल देती है। दरअसल, महिलाओं को होने वाली तमाम ऐसी बीमारियां हैं, जिनको इग्नोर करने से उनकी जान भी जा सकती है. गर्भाशय या बच्चेदानी का कैंसर उनमें से एक है. इसको एंडोमेट्रियल कैंसर व यूटेराइन कैंसर के नाम से भी जाना जाता है. गर्भाशय या बच्चेदानी महिलाओं की प्रजनन प्रणाली का एक बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा है. यही वो स्थान है, जहां गर्भधारण के बाद भ्रूण का विकास होता है. इसलिए बच्चेदानी का स्वस्थ्य होना बेहद जरूरी है. आजकल की खराब जीवनशैली में गर्भाशय कैंसर के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. यह तब होता है जब एंडोमेट्रियम (गर्भाशय की अंदरूनी परत) की कोशिकाएं असामान्य रूप से विभाजित और बढ़ने लगती हैं. ये कोशिकाएं ट्यूमर का रूप ले लेती हैं, जो आगे चलकर कैंसर का कारण बन जाती है. ऐसे जरूरी है कि शुरुआती लक्षणों को पहचानें. ताकि, समय रहते इलाज कराकर जिंदगी को बचाया जा सके. डॉ. विभा मिश्रा बताती हैं कि, पेट के निचले हिस्से में दर्द और ऐंठन होना बच्चेदानी में कैंसर का संकेत हो सकता है. इसके अलावा, महिलाओं को श्रोणि में ऐंठन का अनुभव भी हो सकता. अगर आपको बार-बार इस तरह की परेशानी महसूस हो रही है, तो आपको तुरंत डॉक्टर के पास जाकर अपना चेकअप करवाना चाहिए. यदि किसी महिला को पीरियड्स के अलावा अन्य दिनों में ब्लीडिंग होती है या महीने में कई बार ब्लीडिंग या स्पॉटिंग होती है, तो इन लक्षणों को भूलकर भी नजरअंदाज न करें. क्योंकि, यह बच्चेदानी में कैंसर का भी लक्षण हो सकता है. इसके प्रति समझदारी दिखाएं और समय रहते डॉक्टर से मिलकर जांच करवाएं. अगर आपके पीरियड्स सामान्य से अधिक दिनों तक चलते हैं, तो यह बच्चेदानी में कैंसर होने का संकेत हो सकता है. इसके अलावा, आपको पीरियड्स के दौरान अत्यधिक रक्तस्राव की परेशानी भी हो सकती है. ऐसी स्थिति में आपको तुरंत स्त्री रोग विशेषज्ञ से संपर्क करना चाहिए. मेनोपॉज के बाद महिलाओं में व्हाइट डिस्चार्ज या वेजाइनल ब्लीडिंग की समस्या होना भी बच्चेदानी के कैंसर का लक्षण हो सकता है. अगर आपको मेनोपॉज के बाद इस तरह के लक्षण महसूस हो रहे हैं, तो तुरंत डॉक्टर के पास जाकर अपना चेकअप करवाएं ताकि आपका समय पर इलाज किया जा सके.






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सुरेश गांधी

वरिष्ठ पत्रकार 

वाराणसी

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