गांवों के मैदानों में मेले जैसा उत्सव रहता था। पुरुष अखाड़े और कुश्ती में जोर आजमाइश करते थे। कुश्ती और गुड़िया के कार्यक्रम के बाद बहनें अपने भाइयों को पान (ताम्बूल) खिलाती थी। हर्षोल्लास के बीच सभी अपने परिजन के साथ घर लौट आते थे। बहनें झूले झूलना शुरू करती थी, एक बार फिर सावन के गीतों से गांव झूम उठते थे। अब हमारे यह स्थानीय पर्व धीरे- धीरे टीवी, सोशल मीडिया और आधुनिकता की चकाचौंध में गायब होते जा रहे हैं। कांवेंट के विद्यालय केवल ईसाई त्योहार को वरीयता देते हैं। भारतीय पर्व धीरे धीरे समाप्त होते जा रहे हैं। पहले छोटे उत्सवों होली दीवाली रक्षा बंधन और श्री कृष्ण जन्माष्टमी आदि पावन अवसर पर पूरा गांव इकट्ठा हो जाता था । अपनी खुशियां बाटता था। सबका साथ साथ आयोजन होता रहता था।अब नये ज़माने में ऐसा कोई त्यौहार नहीं जिस पर पूरा गांव इकट्ठा हो सके। हमारी प्राचीन परंपरा विलुप्त होती जा रही है। उसका एक कारण है कि पहले त्योहार कृषि किसानी को प्रोत्साहित करते थे, उनसे गहरा जुड़ाव था। हमारे त्योहार में जानवरों को भी महत्व दिया जाता था। लेकिन अब न किसानों का किसी को ध्यान है और न जानवरों की सुधि। बैल की जगह ट्रैक्टर ने ले ली है। गाय भी जर्सी पाली जाने लगी है। भैंस भी कोई कोई पाल ले जा रहा है। प्रायः सबकी दौड़ नौकर बनने और शहरों में बसने की हो गयी है।
शिक्षा, सोच, सुख, समाज, संस्कार और सम्बन्ध सब बदल गये हैं। शहरी सोच और सब नशायुक्त गुटका, तम्बाकू और शराब सब पर हावी है। सामुदायिकता का क्षरण हो चुका है। उत्सव, त्यौहार के मायने हमारे लिए बदल गये हैं। श्रावण, कार्तिक, मार्गशीर्ष भले नहीं पता हों पब, सिनेमा, बार, न्यूक्लियर परिवार क्रिसमस और ईद का त्यौहार हमें अलबत्ता अच्छे से याद है। बर्थ डे अनवरसरी प्रायः हर सदस्य की मनाई जाने लगी है। टीवी मोबाइल जो कुछ परोस रहा है लोग इस तक ही सिमटते जा रहें हैं। इन त्योहारों के मौसम में मेरा युवा पीढ़ी से यही निवेदन है कि हम अपनी भारतीय संस्कृति को बरकरार रखें। अपने त्योहार उसके महत्व को भी समझे। जहां तक सम्भव हो, आप कहीं भी हो, कितने भी व्यस्त हो, लेकिन त्योहार पूरा परिवार एक साथ मनाए। इससे बहुत बड़ा असर हमारी आने वाली पीढ़ी पर पड़ेगा और परिवार भी, रिश्ते भी टूटने से बचेंगे।साथ ही हमारी लुप्त होती कलाएं, संस्कृति , छोटे- छोटे त्योहार सब जीवित रहेंगे। हमारे बुजुर्ग जो ज्यादातर गांव में, या बच्चों के विदेश में रहने के कारण, अकेले भी रहते है, आपको सपरिवार देखने से,त्योहार मनाने से, कुछ दिन एक साथ बिताने से खुश हो जाएंगे और उनकी उम्र भी बढ़ जाएगी।
आचार्य डॉ. राधेश्याम द्विवेदी
लेखक परिचय :-
(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए सम सामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं। )
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