- सैकड़ों की संख्या में आए श्रद्धालुओं को किया प्रसादी का वितरण
- भगवान राम और कृष्ण जैसे व्यक्तित्व के लिए बच्चों को उसी तरह के संस्कार देने होंगे : पंडित शिवम मिश्रा
राजकुमारों की बाललीला का सुंदर वर्णन किया
पंडित श्री मिश्रा ने अयोध्या में चारों राजकुमारों की बाललीला का सुंदर वर्णन किया। उन्होंनें कहा कि चारों राजकुमार सब के चहेते थे। चारों बालक राजमहल में जब पैरों में पायल पहनकर चलने की कोशिश करते तो तीनों माताएं प्रसन्नता से भर जाती। इधर राजा दशरथ भी अपने चारों पुत्रों को बड़ा होता देख आनंद पाते। इन सबमें बालक राम का आकर्षण ही कुछ और था। जैसे-जैसे चारों बड़े होते गए तीनों अनुज अपने बड़े भाई राम के प्रति और लगाव रखने लगे। राजकुमारों की गुरुवरों की देखरेख में शिक्षा दीक्षा का कार्यक्रम तय किया गया और महर्षि वशिष्ठ की आज्ञा से उन्हें पढऩे के लिए विश्वामित्र के गुरुकुल भेजा जाता है। अस्त शस्त्रों की सीख के बाद जब राजकुमार गुरु के साथ वन उपवन देखने जाते हैं तो एक उजाड़ आश्रम की तरफ उनका ध्यान जाता है। विश्वामित्र बताते हैं कि यह महर्षि गौतम का आश्रम था। उन्होंने पूरी कहानी सुनाते हुए बताया कि किस तरह महर्षि गौतम ने श्राप देकर अपनी पत्नी अहिल्या को पत्थर बना दिया। ये कब से तुम्हारे आने का इंतजार कर रही थी। तुम इस शिला को छुओ ताकि वह श्राप मुक्त हो जाए। यहां राम अहिल्या का उद्धार करते हैं।
जीव अपना तो कल्याण कर ही सकता
पंडित श्री मिश्रा ने कहा कि श्रीमद् भागवत कथा में लिखें मंत्र और श्लोक केवल भगवान की आराधना और उनके चरित्र का वर्णन ही नहीं है बल्कि कथा मेंं वह सारे तत्व हैं जिनके माध्यम से जीव अपना तो कल्याण कर ही सकता है साथ में अपने से जुडे हुए लोगों का भी कल्याण होता है। जीवन में व्यक्ति को अवश्य ही भागवत कथा का श्रवण करना चाहिए। बिना आमंत्रण के भी अगर कहीं भागवत कथा हो रही है तो वहां अवश्य जाना चाहिए। इससे जीव का कल्याण ही होता है। भागवत कथा में श्री कृष्ण जन्मोत्सव वर्णन किया। जिसमें उन्होंने श्री कृष्ण से संस्कार की सीख लेने की बात कही। भगवान श्रीकृष्ण स्वयं जानते थे कि वह परमात्मा हैं उसके बाद भी वह अपने माता पिता के चरणों को प्रणाम करने में कभी संकोच नहीं करते थे। यह सीख में भगवान श्रीकृष्ण से सभी को लेनी चाहिए।
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