सीहोर : कुबेरेश्वरधाम पर सुदामा चरित्र की कथा सुन भाव विभोर हो गए श्रोता - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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मंगलवार, 27 अगस्त 2024

सीहोर : कुबेरेश्वरधाम पर सुदामा चरित्र की कथा सुन भाव विभोर हो गए श्रोता

  • भगवान अपने भक्तों की पुकार सुनते है, मित्रता भी एक भक्ति की तरह होनी चाहिए : पंडित शिवम मिश्रा

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सीहोर। जिला मुख्यालय के समीपस्थ चितावलिया हेमा स्थित निर्माणाधीन मुरली मनोहर एवं कुबेरेश्वर महादेव मंदिर में संगीतमय भागवत कथा का समापन मंगलवार को सुदामा चरित्र के वर्णन के साथ हुआ। कथा के अंतिम दिन यहां पर बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं को प्रसादी और पेयजल आदि का वितरण किया गया। इस मौके पर अंतर्राष्ट्रीय कथा वाचक पंडित प्रदीप मिश्रा के भतीजे पंडित शिवम मिश्रा ने कहा कि सुदामा चरित्र के माध्यम से भक्तों के सामने दोस्ती की मिसाल पेश की और समाज में समानता का संदेश दिया। साथ ही भक्तो को बताया कि श्रीमद् भागवत कथा का सात दिनों तक श्रवण करने से जीव का उद्धार हो जाता है तो वहीं इसे कराने वाले भी पुण्य के भागी होते है।


पंडित श्री मिश्रा ने कहा कि भगवान अपने भक्तों की पुकार सुनते है, मित्रता भी एक भक्ति की तरह होनी चाहिए, मित्रता करो, तो भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा जैसी करो। सच्चा मित्र वही है, जो अपने मित्र की परेशानी को समझे और बिना बताए ही मदद कर दे। परंतु आजकल स्वार्थ की मित्रता रह गई है। जब तक स्वार्थ सिद्ध नहीं होता है, तब तक मित्रता रहती है। जब स्वार्थ पूरा हो जाता है, मित्रता खत्म हो जाती है। उन्होंने कहा कि एक सुदामा अपनी पत्नी के कहने पर मित्र कृष्ण से मिलने द्वारकापुरी जाते हैं। जब वह महल के गेट पर पहुंच जाते हैं, तब प्रहरियों से कृष्ण को अपना मित्र बताते है और अंदर जाने की बात कहते हैं। सुदामा की यह बात सुनकर प्रहरी उपहास उड़ाते है और कहते है कि भगवान श्रीकृष्ण का मित्र एक दरिद्र व्यक्ति कैसे हो सकता है। प्रहरियों की बात सुनकर सुदामा अपने मित्र से बिना मिले ही लौटने लगते हैं। तभी एक प्रहरी महल के अंदर जाकर भगवान श्रीकृष्ण को बताता है कि महल के द्वार पर एक सुदामा नाम का दरिद्र व्यक्ति खड़ा है और अपने आप को आपका मित्र बता रहा है। द्वारपाल की बात सुनकर भगवान कृष्ण नंगे पांव ही दौड़े चले आते हैं और अपने मित्र को रोककर सुदामा को रोककर गले लगा लिया।


सुखी गृहस्थ परिवार वही है जहां पति-पत्नी में आपसी सामंजस्य हो

कथा के अंत में उन्होंने कहा कि सुखी गृहस्थ परिवार वही है जहां पति-पत्नी में आपसी सामंजस्य हो। यह सामंजस्य तभी संभव होता है जब पति-पत्नी अपनी मर्यादा का पालन करें। कभी-कभी गृहस्थ जीवन में धर्म संकट उत्पन्न हो जाता है। उस समय पति-पत्नी दोनों को आपसी सूझबूझ से काम लेना चाहिए। किसी निर्णय को लेने में जरा सी चूक हुई तो गृहस्थ संसार में पश्चाताप करने के सिवाय कुछ भी नहीं मिलता है। भगवान को प्राप्त करने के लिए भाव सुंदर होना चाहिए, कलियुग में भक्ति और नाम जप का काफी महत्व है। 

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