- भगवान अपने भक्तों की पुकार सुनते है, मित्रता भी एक भक्ति की तरह होनी चाहिए : पंडित शिवम मिश्रा
पंडित श्री मिश्रा ने कहा कि भगवान अपने भक्तों की पुकार सुनते है, मित्रता भी एक भक्ति की तरह होनी चाहिए, मित्रता करो, तो भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा जैसी करो। सच्चा मित्र वही है, जो अपने मित्र की परेशानी को समझे और बिना बताए ही मदद कर दे। परंतु आजकल स्वार्थ की मित्रता रह गई है। जब तक स्वार्थ सिद्ध नहीं होता है, तब तक मित्रता रहती है। जब स्वार्थ पूरा हो जाता है, मित्रता खत्म हो जाती है। उन्होंने कहा कि एक सुदामा अपनी पत्नी के कहने पर मित्र कृष्ण से मिलने द्वारकापुरी जाते हैं। जब वह महल के गेट पर पहुंच जाते हैं, तब प्रहरियों से कृष्ण को अपना मित्र बताते है और अंदर जाने की बात कहते हैं। सुदामा की यह बात सुनकर प्रहरी उपहास उड़ाते है और कहते है कि भगवान श्रीकृष्ण का मित्र एक दरिद्र व्यक्ति कैसे हो सकता है। प्रहरियों की बात सुनकर सुदामा अपने मित्र से बिना मिले ही लौटने लगते हैं। तभी एक प्रहरी महल के अंदर जाकर भगवान श्रीकृष्ण को बताता है कि महल के द्वार पर एक सुदामा नाम का दरिद्र व्यक्ति खड़ा है और अपने आप को आपका मित्र बता रहा है। द्वारपाल की बात सुनकर भगवान कृष्ण नंगे पांव ही दौड़े चले आते हैं और अपने मित्र को रोककर सुदामा को रोककर गले लगा लिया।
सुखी गृहस्थ परिवार वही है जहां पति-पत्नी में आपसी सामंजस्य हो
कथा के अंत में उन्होंने कहा कि सुखी गृहस्थ परिवार वही है जहां पति-पत्नी में आपसी सामंजस्य हो। यह सामंजस्य तभी संभव होता है जब पति-पत्नी अपनी मर्यादा का पालन करें। कभी-कभी गृहस्थ जीवन में धर्म संकट उत्पन्न हो जाता है। उस समय पति-पत्नी दोनों को आपसी सूझबूझ से काम लेना चाहिए। किसी निर्णय को लेने में जरा सी चूक हुई तो गृहस्थ संसार में पश्चाताप करने के सिवाय कुछ भी नहीं मिलता है। भगवान को प्राप्त करने के लिए भाव सुंदर होना चाहिए, कलियुग में भक्ति और नाम जप का काफी महत्व है।
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