कान्हा की नगरी बृजभूमि में राधा-कृष्ण के तो कई मंदिर है, लेकिन गोकुलधाम, रमनरेती मंदिर, ब्रह्मांड घाट, चौरासी खंभा, द्वारिकाघीश मंदिर व विश्राम घाट की महिमा कुछ अलग ही है। यहां श्री कृष्ण की लीलाओं और उनके चरण रज की पवित्रता दर्शन के दौरान साक्षात देखने को मिलता है। यहां के कण-कण श्री कृष्ण समाएं हुए है। रमन रेती के चमत्कार का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वहां के मिट्टी या रेत में खेलने मात्र से शरीर के सारे कष्ट व दर्द ठीक हो जाते है। आज भी कुछ भक्त रमन रेती की रेत में लोटते हैं। इसे भगवान श्री कृष्ण का आशीर्वाद माना जाता है। खास यह है कि संत रसखान ने यहीं पर तपस्या की थी। यहां उनकी समाधि है। मंदिर में राधा कृष्ण की अष्टधातु की मूर्ति है। द्वारकाधीश मंदिर में दर्शनमात्र से ही खुल जाता है स्वर्ग का द्वार। यमुना की लहरों से अठखेलियां करने को श्रद्धालु लालायित रहते हैं। गोकुल के घाटों पर ही साथियों संग कान्हा यमुना में अठखेलियां करते थे
रमन रेती के ठीक पीछे रमन सरोवर है, जहां रोजाना हजारों श्रद्धालु स्नान करते हैं। इसे श्री बिहारी जी कुंड मार्ग के नाम से भी जाना जाता है। कहते है श्री कृष्ण ने कई चमत्कार दिखाए या यूं कहें अपनी लीलाएं कीं। उनकी एक बाल लीला तब हुई जब श्री कृष्ण को मां यशोदा ने मिट्टी खाने के बाद डांटना चाहा तो उनके मूंह में ब्रह्मांड देखा। जिस स्थान पर यह चमत्कार हुआ था, उसे अब ब्रह्माण्ड घाट के नाम से जाना जाता है। कहते है जो व्यक्ति ब्रह्माण्ड घाट के दर्शन करता है उसे मुक्ति मिल जाती है। भक्तगण दिव्य यमुना नदी से जल की बूंदें अपने ऊपर भी छिड़कते हैं। ब्रह्माण्ड मंदिर ब्रह्माण्ड घाट के परिसर में स्थित है। ब्रह्माण्ड मंदिर के पास पवित्र पीपल के पेड़ की पूजा महिलाएं करती हैं। रमन रेती के पास ही चिंताहरण घाट है। कहते है जब यशोदा मां ने शिशु कृष्ण जी के मुंह में ब्रह्मांड को देखा, तो वे चिंतित हो गईं। वे चिंताहरण घाट की ओर चल पड़ीं और यहीं पर उनकी सारी चिंताएं दूर हो गईं। चिंतेश्वर महादेव मंदिर में 1,111 लिंग हैं। अगर आप ध्यान से देखेंगे तो पाएंगे कि एक शिवलिंग में 1,111 छोटे-छोटे शिवलिंग खुदे हुए हैं। यहाँ मां यशोदा की मूर्ति की पूजा की जाती है, जिसमें वे कृष्ण जी के कान खींचती हैं, क्योंकि वे बहुत शरारती थे। हनुमान जी, दाऊजी (कृष्ण जी के भाई) और उनकी पत्नी रेवती की मूर्तियों की भी यहां पूजा की जाती है। महावन, जिसे पुरानी गोकुल के नाम से भी जाना जाता है, एक छुपा हुआ रत्न है। महावन अपनी खीर मोहन मिठाई के लिए जाना जाता है। महावन में योगमाया मंदिर, मथुरा नाथजी मंदिर, श्यामलालजी मंदिर और चौरासी खंभा मंदिर हैं।
द्वारिकाधीश मंदिर
मथुरा का अन्य आकर्षण असिकुंडा बाजार स्थित ठाकुर द्वारिकाधीश महाराज का मंदिर है। यहां वल्लभ कुल की पूजा-पद्धति से ठाकुरजी की अष्टयाम सेवा-पूजा होती है। देश के सबसे बड़े व अत्यंत मूल्यवान हिंडोले द्वारिकाधीश मंदिर के ही हैं, जो कि सोने व चांदी के हैं। यहां श्रावण माह में सजने वाली लाल गुलाबी, काली व लहरिया आदि घटाएं विश्व प्रसिद्ध हैं। मंदिर की वास्तुकला, राजस्थान की हवेलियों से काफ़ी मिलती-जुलती है। मंदिर का विशाल अग्रभाग, जिसमें मेहराबदार प्रवेशद्वार और जालीदार खिड़कियां हैं। श्रृंगार आरती के दौरान मंदिर में दर्शनार्थियों की भीड़ उमड़ पड़ती है। भगवान कृष्ण को समर्पित “द्वारकाधीश मंदिर” का निर्माण 1814 में एक कृष्ण भक्त द्वारा करवाया गया था। यार्ड के ठीक सामने गर्भगृह है जहां द्वारकाधीश जी की पवित्र मूर्ति स्थापित है। मंदिर में “द्वारकाधीश के राजा” के दर्शन के साथ साथ दीवारों और आंगन की छत पर सुंदर पेंटिंग भी देखी जा सकती है जिनमे कृष्ण के जन्म के दृश्य और कई अन्य लोगों द्वारा उनके द्वारा रास नृत्य के प्रदर्शन को दिखाया गया है। मंदिर में मुख्य मूर्ति के अलावा, कई अन्य हिंदू देवताओं और छोटे तुलसी के पौधे को भी देख सकते हैं जो भगवान के प्रिय हैं और उनके भक्तों के लिए अत्यधिक पूजनीय हैं। हिंडोला उत्सव द्वारकाधीश जगत मंदिर का प्रसिद्ध उत्सव है जिसे “झुला उत्सव” के नाम से भी जाना जाता है। इस उत्सव में राधा रानी और कृष्णा जी की मूर्ति को सोने चांदी से लेकर, फूल पत्ती, जरी, रंग बिरंगे वस़्त्रों से लेकर फलों से मिलकर बने हिंडोला या झूले में रखा जाता है और उन्हें झुलाया जाता है।
गोकुल घाट
यमुना मतलब कान्हा की पटरानी। यमुना की लहरों से अठखेलियां करने को श्रद्धालु लालायित रहते हैं। गोकुल वह स्थान हैं, जहां उन्हें कंस के कारागार में जन्म के बाद पिता वसुदेव यमुना पार कर मैया यशोदा के पास लाए थे। गोकुल के घाटों पर ही साथियों संग कान्हा यमुना में अठखेलियां करते थे। इसी यमुना में उन्होंने कालिया नाग का मर्दन किया था। गोकुल का ठकुरानी और मुरलीधर घाट आज खिलखिला रहे हैं। यहां से यमुना में बोटिंग का आनंद भी पर्यटकों को मिल रहा है। दूर-दूर से श्रद्धालु शाम को यहां पहुंचते हैं और समय बिताते हैं।
विश्राम घाट
भगवत पुराण के अनुसार श्री कृष्ण ने अपने मामा कंस का वध करने के बाद विश्राम किया था। जिसके कारण इस घट का नाम विश्राम घाट पड़ा। शास्त्रों में कहा गया है कि अगर श्री कृष्ण के मंदिरों के दर्शन के साथ यहां पर स्नान न किया तो आपको पूरा फल नहीं मिलेगा। विश्राम घाट के साथ गोकुल तक कई घाट बने है। जिनकी अपनी-अपनी महिमा है। मथुरा में यमुना के प्राचीन घाटों की कुल संख्या 25 है। उन्हीं सब के बीच स्थित है- विश्राम घाट। जहां प्रातः व सांय यमुनाजी की आरती उतारी जाती है। यहां पर यमुना महारानी व उनके भाई यमराज का मंदिर भी मौजूद है। विश्राम के घाट के सामने ही यमुना पार महर्षि दुर्वासा का आश्रम है। ये हैं शहर के अन्य प्रमुख दर्शनीय स्थल जन्मभूमि मंदिर के अलावा मथुरा में भूतेश्वर महादेव, ध्रुव टीला, कंस किला, अम्बरीथ टीला, कंस वध स्थल, पिप्लेश्वर महादेव, बटुक भैरव, कंस का अखाड़ा, पोतरा कुंड, गोकर्ण महादेव, बल्लभद्र कुंड, महाविद्या देवी मंदिर आदि प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं। विश्राम घाट के पुजारी देवेंद्र नाथ चतुर्वेदी ने बताया कि सतयुग, त्रेता युग, द्वापर युग और इन युगों में विश्राम हुए हैं। सर्वप्रथम गंगोत्री में यमुनोत्री ने कलिंदरी पर्वत पर तपस्या की। तपस्या करने के बाद भगवान स्वयं नारायण ने उनको साक्षात दर्शन दिए। इसके बाद यमुनोत्री ने भगवान को पति स्वरूप में पाने की इच्छा जाहिर की। नारायण ने बोला कि मधुपुरी जाओ, जब मैं वहां आऊंगा तो मैं वहां तुमसे भेंट करूंगा। यमुनोत्री ने गंगोत्री से चलने के बाद यहां आकर विश्राम किया। दूसरा विश्राम 12 अवतार भगवान ने लिया। हिरण्यकश्यप का वध किया। पृथ्वी को लेकर जब चले तो पृथ्वी के मन में जिज्ञासा हुई मैं पृथ्वी साथ में हूं, लेकिन ऐसा कौन सा स्थान है, जहां आप मुझे रखोगे। भगवान ने कहा कि मथुरा पुरी गोलोकधाम जो है हिरण्याक्ष की चटाई (सीमा) में नहीं आया है। भगवान ने यहां आकर उनको विश्राम दिलाया और विश्राम करके लेट गई हैं। तृतीय विश्राम मथुरा का राजा लवणासुर हुआ, जिसको भगवान राम के भाई शत्रुघ्न और हमारे पूर्वज अयोध्यापुरी से बुला करके लाए। लवणासुर का वध करवाया। यहां आकर विश्राम लिया।
ब्रह्मांड घाट
ब्रह्मांड घाट वही स्थान है, जहां के बारे में मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने यहां मिट्टी खाई तो मैया यशोदा ने उससे मुंह खोलने को कहा, जब कान्हा ने मुंह खोला तो मैया को मुख के अंदर मिट्टी के स्थान पर ब्रह्मांड दिखाई दिया। इसीलिए स्थान को ब्रह्मांड घाट के नाम से जाना जाता है। घाट पर स्थित भगवान श्रीकृष्ण के ब्रह्मांड बिहारी मंदिर पर मिट्टी के लड्डू चढ़ाए जाते हैं।
चौरासी खंबा
चौरासी खंबा मंदिर में भगवान श्री कृष्ण का बचपन व्यतीत हुआ था। वासुदेव और देवकी को कंस द्वारा बंदी बना लेने के उपरांत नंदबाबा और उनकी पत्नी मां यशोदा के साथ भगवान श्री कृष्ण इसी घर में रहा करते थे। यही कारण है इस मंदिर में श्रीकृष्ण का बाल रूप मौज़ूद है। दरसअल गोकुल के नंद भवन मंदिर जिसे चौरासी खंबा मंदिर के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है जिस तरह मथुरा के द्वारकाधीश और वृंदावन में स्थित बांके बिहारी मंदिर में जाने के लिए तंग गलियों से गुज़रना पड़ता है, ठीक उसी तरह इस मंदिर तक जाने वाला रास्ता है। मान्यताओं की मानें तों कहा जाता है बलराम जी के जन्म के उपरांत देवी यशोदा यहां कुछ ही समय के लिए रही थीं। तो मंदिर की खासियत की बात करें तो चौरासी खंबार नामक इस मंदिर में भगवान श्री कृष्ण का बचपन व्यतीत हुआ था। वासुदेव और देवकी को कंस द्वारा बंदी बना लेने के उपरांत नंदबाबा और उनकी पत्नी मां यशोदा के साथ भगवान श्री कृष्ण इसी घर में रहा करते थे। यही कारण है इस मंदिर में श्रीकृष्ण का बाल रूप मौज़ूद है। इसके अलावा भी यहां इनकी अनेकों मूर्तियां रखी हुई हैं जिसमें से एक मूर्ति के बारे में मान्यता प्रचलित है यह प्रतिमा ज़मीन से अपने-आप निकली थीं। इसके अतिरिक्त इस मंदिर के पास में ही एक गौशाला भी है।
सुरेश गांधी
वरिष्ठ पत्रकार
वाराणसी
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