कविता : पिंजरे में कैद चिड़िया - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

सोमवार, 23 सितंबर 2024

कविता : पिंजरे में कैद चिड़िया

जहां थे पहले खेत-खलिहान,

वहां है अब एक महल आलीशान,

जिसमें कैद है एक नन्ही-सी चिड़िया,

जो कल तक थी खेतों की परियां,

पिंजरे में मिलता है दाना उसको,

जिसे मजबूरन खाना है उसको,

खेतों के दिन याद आते हैं उसे,

जिसमें मिलते थे दाने-ही-दाने,

पिंजरे का वह छोटा कमरा,

जिसमें कैद है नन्ही चिड़िया,

याद अपने साथियों को करती,

जिनके साथ थी वह हंसती गाती,

खिड़की से देखती जब चिड़ियों के झुंड को,

मन उसका भी तिलमिला जाता है,

पंख तो हैं उसके पास, पर, 

न जा सकती वो झुंड के साथ,

आसमान की वो रोमांचकारी सैर,

पल-पल वो इन यादों में ही रहती,

इनके सहारे अब वो ज़िन्दा रहती,

ऐसे पिंजरों की चारदीवारी में,

न जाने क़ैद हैं कितनी चिड़ियां,

जिनके आसमान के मजेदार,

सैर का सपना रह गया अधूरा।।




Anshu-kumari-charkha-feature

अंशु कुमारी

मुजफ्फरपुर, बिहार

चरखा फीचर्स

कोई टिप्पणी नहीं: