सपनों के तराजू पर जरूरतें अभी भारी हैं,
पूरा किसे करूं, प्रश्न ये अभी जारी है,
द्वंद बढ़ता जाता है, निष्कर्ष निकल न पाता है,
सपनों की दुनिया को जरूरतें दबाए जाती हैं,
वक्त निकलता मानों, मुट्ठी से गिर रही रेत जैसे,
समय की मार फिर तो ऐसी पड़ी रिमझिम,
सपनों के ऊपर ज़रूरतें ऐसी पड़ी भारी,
मन की आवाज़ बार-बार ठनकती है,
आशाएं और उम्मीदों की किरण जगाती है,
फिर जरूरतें उस पर होती हावी हैं,
पूरा किसे करूं अभी यहीं प्रश्न जारी है।।
रिमझिम कुमारी
मुजफ्फरपुर, बिहार
चरखा फीचर्स
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