कविता : प्यासी पृथ्वी कब से तरसे - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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सोमवार, 23 सितंबर 2024

कविता : प्यासी पृथ्वी कब से तरसे

प्यासी पृथ्वी कब से तरसे,

नभ से मोती का झरना,

टिप-टिप हौले हौले बरसे,

वर्षा की बूंदों का एहसास,

प्यासी पृथ्वी कब से तरसे,

पूछो उस बंजर धरती से,

उस जीव उस पेड़ से,

बादल के छाने पर मोर से,

वर्षा की एक बूंद गिरे तो पत्तों से,

भूमि पे जल पड़ते ही,

मिट्टी की फैले सुरभि अनुपम,

पानी से ही पुनीत मानस,

दिखे निसर्ग कितना हरितम,

सरिता का बहना भी,

वर्षा की बूंदों से बने,

धूप के बाद वर्षा का एहसास,

प्यासी पृथ्वी कब से तरसे।।





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पल्लवी भारती

मुजफ्फरपुर, बिहार

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