कविता : पाबंदी का इतिहास - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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सोमवार, 23 सितंबर 2024

कविता : पाबंदी का इतिहास

क्यों ज़मीं पर पांव रखते ही,

ज़ंजीरों में उलझा दिया गया,

क्या मेरा होना पाप था?

तो जन्म होने ही क्यों दिया?

मैंने क्या देखा था, क्या जाना था?

आंखे खुलते ही धुंधला सा लगा,

मुझे लगा शायद ऐसा ही होगा संसार,

मैंने जब सोचना शुरू किया,

तो महसूस होने लगा,

कि ये संसार में हर जगह,

तो अंधेरा ही अंधेरा है,

मन में बस यही था, 

कभी तो उजाला होगा,

पर इस उजाले को तो,

हमेशा छुपाया जाता था,

जब उससे लड़ना चाहा तो,

उसी अंधेरे में धकेल दिया गया,

सदियों बाद कुछ ऐसा हुआ,

जब वो निकल पड़ी तो,

उसे क्यों अजीब लगा?

वो सोचती थी मेरी मां के भी,

तो कुछ सपने और अरमान होंगे?

वो तो अपने उन अरमानों को,

इस दुनिया की वजह से छोड़ आई,

पर मैं ऐसा कभी नहीं करूंगी,

अपनी मां के सपनों को लेकर,

आगे मंजिल तक जरूर जाऊंगी।।






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दीपा लिंगड़िया

गनीगांव, उत्तराखंड

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