यह गांव राज्य के बागेश्वर जिला स्थित गरुड़ ब्लॉक से तक़रीबन साढ़े ग्यारह किमी की दूरी पर बसा है. यहां की आबादी करीब 1152 है. यहां संचालित आंगनबाड़ी केंद्र गांव से बाहर जंगल के करीब बना हुआ है. जहां जल्दी कोई इंसान नजर नहीं आता है. जंगल घने होने के कारण पेड़ के अलावा कुछ नजर नहीं आता है. ऐसे में कब और किधर से कोई जानवर आ जाए किसी को पता भी न चले. इस आंगनबाड़ी केंद्र में चारदीवारी के नाम पर छोटी छोटी दीवारें हैं जिसमें कोई गेट भी नहीं है. इसका आंगन भी इतना छोटा है कि बच्चे आराम से वहां पर न तो भाग दौड़ कर सकते हैं और न किसी किसी प्रकार से खेल सकते हैं. इस संबंध में गांव की एक 24 वर्षीय पूजा देवी कहती हैं कि वह अपनी तीन साल की बेटी को आंगनबाड़ी भेजना तो चाहती हैं, लेकिन वह जिस स्थान पर बना हुआ है वहां कई सारे खतरे हैं. एक तो यह आंगनबाड़ी जंगल के करीब है, जिससे जानवरों के आने का खतरा तो बना ही रहता है. दूसरा यह इतनी ऊंचाई पर बनाया गया है कि छोटे बच्चों का ऊंचाई से गिरने का डर भी बना रहता है. जिसकी वजह से मैं अपनी बच्ची को बहुत कम ही आंगनबाड़ी भेजती हूं. जिस दिन फ्री रहती हूं, खुद लेकर जाती हूं और छुट्टी तक वहीं रहती हूं.
इस आंगनबाड़ी केंद्र की कार्यकर्ता 38 वर्षीय मुन्नी देवी बताती हैं कि "हमारे आंगनबाड़ी केंद्र में 18 बच्चे नामांकित हैं. यहां बच्चों के खेलने के लिए खिलौने और पढ़ने के लिए किताबें भी उपलब्ध हैं. उनके बैठने के लिए कुर्सियां और टेबल की भी अच्छी व्यवस्था है. बच्चों के लिए शौचालय की भी सुविधा है. बच्चों को पौष्टिक आहार के रूप में दलिया, गेहूं, चावल और दाल दिया जाता है. वहीं प्रत्येक सप्ताह दूध भी उपलब्ध कराया जाता है. प्रतिदिन बच्चों को ताज़ा खाना खिलाया जाता है ताकि पिंगलों के सभी बच्चे कुपोषण मुक्त हो सकें. इसके अतिरिक्त यहां पर हर तीन महीने में गर्भवती महिलाओं के लिए पोषक आहार भी उपलब्ध कराया जाता है. वहीं किशोरियों के लिए आयरन और कैल्शियम की गोली भी मुहैया कराई जाती है. लेकिन इन सुविधाओं के बीच मुन्नी देवी सुरक्षा से संबंधित कमियों को भी मानती हैं. हालांकि वह कहती हैं कि गांव से बाहर इसका निर्माण अथवा छोटी चारदीवारी को ठीक करना उनके अधिकार क्षेत्र से बाहर है. लेकिन इसके बावजूद वह अपनी ओर से सुरक्षा की भरपूर व्यवस्था का प्रयास करती रहती हैं ताकि माताएं अपने बच्चों को भयमुक्त होकर केंद्र पर भेज सकें.
इस संबंध में पिंगलो के ग्राम प्रधान पान सिंह का कहना है कि "पंचायत के पास जितना बजट था, उस आधार पर मैंने चारदीवारी बनवाने का प्रयास किया था, लेकिन अभी भी वह इतनी छोटी है कि उसके ऊपर से कोई भी जानवर आसानी से आ सकता है. आंगनबाड़ी में बहुत छोटे बच्चे आते है, उनके बाहर की तरफ गिरने का भी भय रहता है. पान सिंह इस बात को भी स्वीकार करते हैं कि इस आंगनबाड़ी केंद्र का छोटा आंगन भी एक बड़ी समस्या है, जिससे यहां पर बच्चे खेल नहीं पाते हैं. सर्दियों में उन्हें ज्यादा दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. वह कहते हैं कि जैसे ही सरकार द्वारा इस संबंध में बजट आएगा, पंचायत इस दिशा में भी प्रयास करेगी ताकि बच्चों को खेलने का उचित वातावरण मिल सके. महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, मिशन शक्ति के तहत पालना और प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना (पीएमएमवीवाई) जैसी योजनाएं संचालित कर रहा है. जिसके तहत आंगनबाड़ी व पोषण 2.0 के माध्यम से माताओं और उनके छह साल से कम उम्र के बच्चों को सशक्त बनाने का लक्ष्य रखा गया है. इसका उद्देश्य प्रशिक्षित कर्मियों, शैक्षिक संसाधनों, पोषण संबंधी सहायता और समग्र बाल विकास के लिए गतिविधियों के साथ एक सुरक्षित वातावरण में पूरे दिन व्यापक बाल देखभाल सहायता सुनिश्चित करना है. ज्ञात हो कि यह मंत्रालय देश भर में 13.9 लाख आंगनवाड़ी केंद्र चलाता है, जो छह साल से कम उम्र के आठ करोड़ से अधिक बच्चों की देखभाल करते हैं. लेकिन पिंगलों गांव में सभी सुविधाओं से लैस होने के बावजूद जिस प्रकार से माताओं में इसकी सुरक्षा को लेकर चिंता है, उसे दूर करने की आवश्यकता है ताकि पिंगलों के नौनिहालों का बचपन भी सुरक्षित आंगनबाड़ी में खिल सके.
सुनीता जोशी
गरुड़, बागेश्वर
उत्तराखंड
(चरखा फीचर्स)
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