एक समय कपड़ा छपाई, चमड़े का काम और आभूषण बनाने सहित राजस्थान के हस्तशिल्प दुनिया भर में प्रसिद्ध थे. जिससे हज़ारों लोगों को रोज़गार प्राप्त होता था. लेकिन बड़े पैमाने पर मशीनीकृत उद्योगों के विकास और बदलते बाज़ार रुझानों के कारण पारंपरिक कारीगरों के लिए अवसर सीमित हो गए हैं. हस्तशिल्प की मांग घट गई जिसके परिणामस्वरूप ग्रामीण क्षेत्रों से जुड़े हजारों कारीगर बेरोजगार हो गए हैं. वहीं दूसरी ओर शिक्षा और कौशल की कमी के कारण युवाओं के पास रोजगार के अवसर भी सीमित हो चुके हैं. ऐसे में युवा रोजगार की तलाश में शहरों की ओर पलायन करने पर मजबूर हैं, लेकिन वहां भी उन्हें अक्सर कम वेतन वाली अनौपचारिक नौकरियों में रोजगार मिलता है. पलायन से जहां गांव की कृषि प्रभावित हो रही है वहीं दूसरी ओर घरेलू अर्थव्यवस्था पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है. हालांकि सरकार ने ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार प्रदान करने के लिए मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) जैसी विभिन्न योजनाएं शुरू की हैं, लेकिन प्रभावी क्रियान्वयन नहीं होने से ये योजनाएं ज़मीनी स्तर पर ग्रामीणों को अपनी पूरी क्षमता से लाभ नहीं दे पा रही हैं, जिससे बेरोज़गारी की समस्या और भी बढ़ गई है.
गांव में रोज़गार संकट का सबसे नकारात्मक प्रभाव महिलाओं के जीवन पर पड़ रहा है. पुरुष कमाने के लिए पलायन कर जाते हैं. लेकिन महिलाओं को घर की ज़िम्मेदारी के साथ साथ आर्थिक उपार्जन भी करनी पड़ती है. ऐसे में उनके सामने रोज़गार के लिए दूसरों के खेतों में काम या फिर मनरेगा ही विकल्प के रूप में रह जाता है. इस संबंध में 30 वर्षीय शारदा देवी कहती हैं कि 'पुरुष रोजगार के लिए दूर-दराज के शहरों में चले जाते हैं जबकि महिलाएं गांव में ही रहकर मनरेगा जैसे काम करती हैं. लेकिन इसमें भी उन्हें बेहतर आमदनी नहीं हो पाती है. ऐसे में कई महिलाएं पति के साथ पलायन करती हैं जहां उन्हें मज़दूरी के साथ साथ घर के काम भी करने पड़ते हैं. वहीं 55 वर्षीय विमला देवी कहती हैं कि उनका 28 वर्षीय बेटा लोगों के खेतों में काम करता है. उसके परिवार में 4 बच्चे भी हैं. उसे महीने में 10 दिन ही काम मिलता है. ऐसे में घर में आर्थिक संकट बना रहता है. वह कहती हैं कि घरेलू कारणों से उनका बेटा बाहर जाकर रोज़गार नहीं कर सकता है. उनके घर तक कोई सरकारी योजना भी नहीं पहुंची है. न बिजली, न पीने का साफ पानी और न ही घर में शौचालय की उचित व्यवस्था है. खारा पानी के कारण वे लोग अक्सर कई प्रकार की बीमारियों से ग्रस्त रहते हैं. वह कहती हैं कि 'यदि गांव में ही रोज़गार के बेहतर साधन उपलब्ध होते तो उनके परिवार की आर्थिक समस्या ख़त्म हो जाती.'
गांव के एक दुकानदार सीताराम ने बताया कि उसकी दुकान 24 साल पुरानी है. इसके अतिरिक्त ज़मीन के छोटे टुकड़े पर खेती कर कुछ आमदनी प्राप्त करते हैं. वह कहते हैं कि गांव में रोज़गार के कम साधन का प्रभाव उनकी दुकानदारी पर भी नज़र आता है. पैसे नहीं होने के कारण लोग सामान कम खरीदते हैं. वहीं 47 वर्षीय पूनम देवी अपने पति के साथ खेतों में काम करती हैं. वह कहती हैं कि करणीसर गांव में लोगों के लिए रोजगार सबसे बड़ी समस्या है. इसके कारण युवा शहरों की ओर पलायन करने पर मजबूर हैं. लेकिन वहां भी उनके लिए बहुत अधिक आय अर्जित करने के विकल्प नहीं होते हैं. वह कहती हैं कि ग्रामीण क्षेत्रों के लिए बहुत सारी सरकारी योजनाएं हैं जिनका लाभ उठाकर युवा गांव में ही रहकर रोज़गार कर सकते हैं. इसके लिए उनका मार्गदर्शन करने की ज़रूरत है जिससे उनके जीवन में बदलाव आ सके. वह कहती हैं कि गांव में शिक्षा के प्रति जागरूकता फैला कर इस कमी को दूर किया जा सकता है क्योंकि बेरोजगारी का मुख्य कारण शिक्षा की कमी है. ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार के साधन को बढ़ाने के लिए कुछ यदि कुछ सुझावों का पालन किया जाए तो आर्थिक समस्या को दूर करने में मदद मिल सकती है. उदाहरण के लिए सरकार के साथ साथ निजी क्षेत्रों को भी ग्रामीण इलाकों में उद्योग स्थापित करने चाहिए, ताकि स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर उपलब्ध कराए जा सकें. कृषि के आधुनिकीकरण के माध्यम से उत्पादकता बढ़ाने पर ज़ोर दिया जाना चाहिए. इसके अतिरिक्त राजस्थान के पारंपरिक शिल्पकला को जीवित रखने के लिए हस्तशिल्प उद्योग को आधुनिक विपणन और डिजाइनिंग तकनीकों से जोड़ना जरूरी है ताकि कारीगर अपने उत्पाद को वैश्विक बाजार में बेच सकें. इसके लिए युवाओं को आधुनिक कला और कौशल में प्रशिक्षित किया जाना चाहिए ताकि वे बदलती वैश्विक आर्थिक व्यवस्था के अनुरूप बाजार में स्थापित हो सके. वास्तव में, ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ती बेरोजगारी एक गंभीर चुनौती बनी हुई है, जिसका प्रभाव सामाजिक और आर्थिक दोनों स्तरों पर महसूस किया जा सकता है. यदि समय रहते प्रभावी कदम उठाए जाएं तो रोज़गार के संकट को दूर कर राजस्थान की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को विकास की राह पर लाया जा सकता है.
मुरमा कंवर
लूणकरणसर, राजस्थान
(चरखा फीचर्स)
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