राजपुरा हुडान गांव में पानी की किल्लत का सबसे अधिक बोझ महिलाओं और किशोरियों को उठाना पड़ रहा है. जिनकी न केवल दैनिक दिनचर्या बल्कि स्वास्थ्य भी प्रभावित हो रही है. 50 वर्षीय उमा देवी कहती हैं कि घर के लोगों और मवेशियों के पीने के पानी की व्यवस्था के लिए महिलाओं को सुबह से शाम तक भागदौड़ करनी पड़ती है. दूर दूर जाकर पानी लाना पड़ता है. जिससे उनके स्वास्थ्य पर काफी बुरा प्रभाव पड़ रहा है. जिन घरों में गर्भवती महिलाएं हैं उन्हें भी ऐसी ही हालत में पानी के लिए जाना पड़ता है. वह कहती हैं कि गांव के अधिकतर परिवार मवेशी पालन करते हैं. जिनमें भेड़, बकरियां और ऊंट हैं. इनके लिए भी पानी की व्यवस्था करना महिलाओं के ज़िम्मे होता है. वहीं 19 वर्षीय किशोरी मीरा कहती है कि माहवारी के समय पानी की कमी से कई प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. कई बार घर में पानी उपलब्ध नहीं होने से खारा पानी पीने की मज़बूरी रहती है. जो पेट की समस्या को और भी अधिक बढ़ा देता है. मीरा कहती है कि अक्सर माहवारी के समय भी पानी के लिए किशोरियों को घर की महिलाओं के साथ दूर दूर तक चलना होता है. जो स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से काफी कष्टकारी होता है.
वहीं 48 वर्षीय मोला राम कहते हैं कि पानी की कमी के कारण कृषि पर निर्भर किसानों को फसल उगाने में बहुत कठिनाई होती है. वहीं पशुओं के लिए चारे और पानी की कमी ने हमारे आर्थिक संकट को और भी अधिक बढ़ा दिया है. वह कहते हैं कि ग्रामीण इलाकों में जल संसाधन गायब हो रहे हैं और लोगों को पानी के लिए दूरदराज के इलाकों में जाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है. इसकी कमी न केवल मानव जीवन को प्रभावित कर रही है बल्कि जानवरों के लिए भी विनाशकारी साबित हो रही है. मोला राम के अनुसार राजस्थान का अधिकांश भाग रेगिस्तानी है, जहाँ वर्षा पहले से ही कम होती है. लेकिन हाल के वर्षों में वर्षा में और कमी तथा भूमिगत जल स्तर में लगातार गिरावट ने स्थिति को अधिक गंभीर बना दिया है. इसी गांव के निवासी 32 वर्षीय तेजा राम पानी की समस्या और समाधान के बारे में बताते हुए कहते हैं कि इस स्थिति से निपटने के लिए झरनों, तालाबों और कुओं जैसे पारंपरिक जल भंडारों को पुनर्जीवित करने और प्रभावी जल प्रबंधन के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में आधुनिक तकनीक विकसित करने की जरूरत है. जल संरक्षण और वर्षा जल संचयन अब ग्रामीण क्षेत्रों के लिए आवश्यक बन गया है, इसलिए अब सभी को अपनी भूमिका निभानी होगी।
गांव के एक अन्य निवासी रूपा राम अतीत और वर्तमान को एक साथ रखते हुए कहते हैं कि ग्रामीण राजस्थान सदियों से कृषि और पशुपालन पर निर्भर रहा है, लेकिन हाल के वर्षों में पानी की गंभीर कमी ने इन दो महत्वपूर्ण क्षेत्रों को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचाया है. अनियमित वर्षा, लगातार भूजल में कमी और जलवायु परिवर्तन ने राजस्थान के किसानों और मवेशी पालने वालों का जीवन कठिन बना दिया है. यहां की कृषि काफी हद तक वर्षा पर निर्भर है, लेकिन हाल के वर्षों में इसकी कमी और अनियमितता के कारण फसल उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है. जो किसान कपास, बाजरा और सरसों जैसी फसलें उगाते थे, वे अब पानी की कमी के कारण छोटी फसलें भी ठीक से नहीं उगा पा रहे हैं. वर्षा आधारित कृषि पर निर्भर किसानों के पास न तो खेतों की सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध है और न ही बारिश के वैकल्पिक स्रोत, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें वित्तीय संकट का सामना करना पड़ रहा है. कई किसान कर्ज के बोझ तले दबे हुए हैं.
पानी की कमी का दूसरा सबसे बड़ा प्रभाव पशुधन पर पड़ रहा है. यहां के ग्रामीण क्षेत्रों में पशुपालन आजीविका का एक महत्वपूर्ण स्रोत है, विशेषकर ऊँट, गाय, भेड़ और बकरी पालन। लेकिन पानी की कमी के कारण चारे की आपूर्ति करना भी मुश्किल हो गया है, जिससे पशुओं का स्वास्थ्य प्रभावित हो रहा है. उन्हें पीने का पानी उपलब्ध नहीं हो पा रहा है और चारे की कमी के कारण पशुओं की संख्या में गिरावट आई है. राजस्थान की पहचान ऊंट आज पानी और चारे के अभाव में मर रहे हैं. पर्याप्त चारे के अभाव में गायें और बकरियां भी बीमार और कमजोर हो रही हैं, जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था प्रभावित हो रही है. इस समस्या के हल के लिए सरकार, स्थानीय संस्थाएं और सामाजिक संगठनों को मिलकर एक प्रभावी रणनीति विकसित करने की ज़रूरत है. इसके अलावा सूखे की स्थिति में वर्षा जल के संरक्षण के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में जोहड़, तालाब और कुओं जैसे पारंपरिक जल भंडारों को पुनः बहाल किये जाने की ज़रूरत है. अभावग्रस्त क्षेत्रों में कुशल कृषि तकनीकों जैसे ड्रिप सिंचाई और सूक्ष्म-सिंचाई को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। साथ ही फसलों को समय पर सिंचाई प्रदान करने के लिए स्थानीय स्तर पर वर्षा जल संचयन के उपाय किए जाने चाहिए। पशुओं के लिए चारे और पानी की पर्याप्त व्यवस्था होनी चाहिए। राजस्थान में पानी की कमी एक जरूरी समस्या है और अगर इसे गंभीरता से नहीं लिया गया तो यहां के ग्रामीण क्षेत्रों की अर्थव्यवस्था और भी खराब हो सकती है. यह हम सभी की जिम्मेदारी है कि हम उपलब्ध पानी के हर एक बूंद का संरक्षण करें ताकि न केवल हमें बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी किसी भी परिस्थिति में पीने का साफ़ पानी उपलब्ध हो सके.
जमना शर्मा
लूणकरणसर, राजस्थान
(चरखा फीचर्स)
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