विशेष : महालक्ष्मी बनाएंगी वैभवशाली, घर में होगी धन वर्षा - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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बुधवार, 11 सितंबर 2024

विशेष : महालक्ष्मी बनाएंगी वैभवशाली, घर में होगी धन वर्षा

तीन देवियों की शक्ति मिलेगी हर बाधा से मुक्ति। महालक्ष्मी, महाकाली व मां सरस्वती करेंगी शत्रुओं का नाश। घर में होगी खुशियों की बारिश। तिजारी में लगेगा धन-संपदा का अंबार। मिलेगा ज्ञान का आर्शीवाद तो बनेंगे वैभवशाली। बिखरेगा यश व कृति। जी हां, इन तीन देवियों की होगी कृपा तो हो जायेंगे धन-संपदा के अधिष्ठात्री। मिलेगी शक्ति, समृद्धि व उन्नति का वरदान। दाम्पत्य जीवन भी होगा बेहतर। कहते है मां लक्ष्मी की उत्पत्ति समुद्र मंथन से हुआ था। मां लक्ष्मी का विवाह श्री हरि विष्णु से हुआ था। कहते है अगर महालक्ष्मी हो जाएं नाराज तो इंसान को करना पड़ता है दरिद्रता का सामना। ज्योतिष में शुक्र ग्रह से जोड़ा जाता है मां लक्ष्मी का संबंध। गणेश जी के साथ उनकी पूजा करने से भक्त हो जाता है धन और बुद्धि का मालिक। श्री हरि विष्णु के साथ उनकी पूजा करने सेमिलती है संपूर्ण संपन्नता। 11 सितंबर को है महालक्ष्मी का व्रत? इस पूजन का अनुष्ठान भी होता है खास। इसमें में सोलह की संख्या का विशेष महत्व माना जाता है। सोलह गांठ का एक गढ़ा तैयार करके मां लक्ष्मी जी को अर्पण करने से होती हैं धन वर्षा। सोलह दिन मां लक्ष्मी की कथा के अलावा 16 बार डुबकी, 16 श्रृंगार, 16 बार मुंह धोना, 16 तर्पण, 16 दीपक, 16 बोल व 16 पूजन सामग्री से मिल जाती है हर सांसारिक बांधा से मुक्ति। जी हां, सनातन धर्म में मां लक्ष्मी की पूजा अर्चना बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है. हर साल भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को महालक्ष्मी का व्रत रखा जाता है. पंचांग के अनुसार भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि की शुरुआत 10 सितंबर को रात्रि 11ः11 से शुरू हो रही है, जिसका समापन 11 सितंबर को रात्रि 11ः46 पर होगा. ऐसी स्थिति में 11 सितंबर को महालक्ष्मी का व्रत रखा जाएगा. काशी में इस दिन से सोरहिया मेले की शुरुवात होती है। इस दिन से महालक्ष्मी, महाकाली व महासरस्वती की 16 दिनों तक की जाती है विशेष आराधना। 


Mahalaxmi-puja
चमत्कार के ढेरों कहानियां अपने अंदर समेटे काशी में विराजमान है माता लक्ष्मी। वह भी एक-दो नहीं, बल्कि तीन रुपों में भक्तों को दर्शन देती है मां माता लक्ष्मी। पहला मां लक्ष्मी, दुसरा मां काली और तीसरा मां सरस्वती, जिन्हें सोरहिया के रुप में भी जाना जाता है। खास बात यह है कि माता ज्यूतियां भी इन तीनों माताओं के साथ है। मान्यता है कि भाद्रपद शुक्ल पक्ष की अष्टमी से क्वार कृष्ण पक्ष अष्टमी तक संतान सुख से वंचित कोई भी महिला मां का व्रत रख सोरहिया मेले के दिन विधि-विधान से सोलहों श्रृंगार में सज-धज पूजन-अर्चन व व्रत का पारण किया उसे मिल जाता है पुत्र रत्न प्राप्ति का वरदान। इतना हीं नहीं इस दौरान सोलहों दिन कोई भी भक्त माता के दरबार में पांच फेरे लगाकर मत्था टेकता है तो मां उसकी सभी बाधाएं दूर हो जाती है। मां भर देती है धन संपदा से उसकी झोली। यह दिव्य एवं मनोरम स्थल है तीनों लोकों में न्यारी धर्म एवं आस्था की नगरी काशी के लक्शा स्थित लक्ष्मी कुंड के पास। यहां माता लक्ष्मी का भव्य मंदिर है। मंदिर से सटा विशाल तालाब है, जिसे लक्ष्मी कुंड के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर अत्यंत सुंदर, आकर्षक और लाखों लोगों की आस्था का प्रमुख केंद्र है। सोलहों दिन लगने वाले सोरहिया मेले के अंतिम दिन लाखों भक्त अपनी-अपनी मन्नतों की पोटली लेकर पहुंचते है और महालक्ष्मी की आराधना कर ले जाते है सुख-समृद्धि एवं धन्यधान से परिपूर्ण होने का आर्शीवाद। देवी भागवत् में कहा गया है कि संसार को उत्पन्न करने वाली शक्ति महालक्ष्मी माता हैं। सरस्वती, लक्ष्मी और काली यह सभी इन्हीं के स्वरूप से उत्पन्न हुई हैं। जिन पर महालक्ष्मी माता की कृपा हो जाती है उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।


Mahalaxmi-puja
जी हां सनातन धर्म में महालक्ष्मी व्रत का विशेष महत्व है। पंचांग के अनुसार भाद्रपद माह में महालक्ष्मी व्रत की शुरुआत 11 सितंबर से होगी। वहीं इस व्रत का समापन 24 सितंबर को होगा। धार्मिक मान्यता है कि महालक्ष्मी व्रत में मां लक्ष्मी की पूजा करने से साधक के जीवन में सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है और मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है। यह व्रत 14 दिनों तक रखा जाता है। पूजा के दौरान लक्ष्मी चालीसा का पाठ करना चाहिए। इससे कभी भी धन की कमी नहीं होगी और मां लक्ष्मी प्रसन्न होंगी। भाद्रपद माह में धन की देवी मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने के लिए शुभ माना जाता है, क्योंकि इस माह में महालक्ष्मी व्रत किया जाता है। हर साल भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से महालक्ष्मी व्रत की शुरुआत होती है। वहीं, इसका समापन आश्विन माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को होता है। इस दौरान मां लक्ष्मी की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। मां भगवती को समर्पित सोरहिया मेले में 16 दिनों तक त्रिशक्ति माता महालक्ष्मी, महाकाली और महासरस्वती की विशेष आराधना होगी। महिलाएं 16 दिनों तक व्रत रहकर माता की आराधना करती हैं। लक्सा स्थित सिद्धपीठ महालक्ष्मी मंदिर लक्ष्मीकुंड के महंत शिव प्रसाद पांडेय उर्फ लिंगिया महाराज एवं अविनाश जी ने बताया कि यह सैकड़ों वर्ष पुरानी परंपरा है। त्रिशक्ति तीनों देवियां त्रिकूट पर्वत पर विराजमान हैं। इनका मेला सोरहिया मेला के नाम से विख्यात है। इस दौरान माताएं-बहने 16 दिनों तक व्रत रहती है। वहीं 16 दुर्बा, 16 अक्षत से माता का पूजन और 16 परिक्रमा करती हैं। उन्होंने बताया कि इस मेला का मान्य अष्टमी से अष्टमी तक होता है। इस दौरान 16 दिनों तक व्रत रहकर आराधना करने वाले भक्तों की त्रिशक्ति भगवती सभी मनोकामना पूरी करती हैं। मेला 25 सितम्बर को समाप्त होगा। इसके बाद 27 को भगवती महालक्ष्मी माता का वार्षिक श्रृंगार महोत्सव होगा। उसी दिन भगवती का मध्याह्न में दुग्धाभिषेक और पंचामृत स्नान होगा। उन्होंने बताया कि सोरहिया के दौरान मंदिर में स्थापित सभी विग्रहों का श्रृंगार होगा। इसमें विशेषकर माता महालक्ष्मी और जीवितपुत्रिका माता का विशेष श्रृंगार किया जाएगा। इस मेला में जल का बड़ा महत्व है। तालाब के किनारे ही जीवितपुत्रिका की पूजा होती है।


पूजा विधि

Mahalaxmi-puja
इस दिन व्रती को सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर साफ कपड़े पहनना चाहिए. इसके बाद मंदिर की सफाई कर एक लकड़ी की चौकी पर माता लक्ष्मी की पूर्ति या तस्वीर स्थापित करें. अब आप एक कलश में जल भरें और उस पर नारियल रखकर माता लक्ष्मी की मूर्ति के सामने रखें. माता लक्ष्मी को फल, फूल, नैवेद्य आदि अर्पित करें. इसके बाद घी का दीपक जलाएं और महालक्ष्मी श्लोक का जाप करें. पूजा के आखिरी में माता लक्ष्मी की आरती करें और पूजा में हुई गलती की क्षमा मांगें. हिंदू पंचांग के अनुसार, श्राद्ध पक्ष की अष्टमी तिथि को महालक्ष्मी व्रत किया जाता है। इस दिन महिलाएं हाथी पर विराजित मां लक्ष्मी की पूजा करती हैं। माता लक्ष्मी की मूर्ति के सामने श्रीयंत्र भी रखें। कमल के फूल से पूजा करें। सोने-चांदी के सिक्के, मिठाई व फल भी रखें। इसके बाद माता लक्ष्मी के आठ रूपों की इन मंत्रों के साथ कुंकुम, चावल और फूल चढ़ाते हुए पूजा करें। ऊं आद्यलक्ष्म्यै नमः - ऊं विद्यालक्ष्म्यै नमः - ऊं सौभाग्यलक्ष्म्यै नमः - ऊं अमृतलक्ष्म्यै नमः - ऊं कामलक्ष्म्यै नमः - ऊं सत्यलक्ष्म्यै नमः - ऊं भोगलक्ष्म्यै नमः - ऊं योगलक्ष्म्यै नमः का जाप करें। इसके बाद गाय के शुद्ध घी के दीपक से मां लक्ष्मी की आरती करें। इस प्रकार विधि-विधान से पूजा करने पर मां महालक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और अपने भक्तों की मनोकामना पूरी करती हैं। पूजा करते समय 5 चीजें चढ़ाने से देवी लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और भक्त की खराब किस्मत भी चमका सकती हैं। ये 5 चीजें हैं 1. खीर  2. कमल का फूल 3. कौड़ी  4. दक्षिणावर्ती शंख 5. चांदी का सिक्का। मां लक्ष्मी की कृपा से व्यक्ति अमीर बनता है. उसे बेशुमार धन-दौलत और यश-कीर्ति मिलती है. 


इन चीजों का भोग लगाएं

1. मां लक्ष्मी को खीर बहुत प्रिय मानी गई है, ऐसे में आप महालक्ष्मी व्रत के दिन माता लक्ष्मी को खीर का भोग लगाएं. इससे मां लक्ष्मी प्रसन्न होंगी, ऐसा माना जाता है.

2. पूजन के दौरान माता लक्ष्मी को आप सिंघाड़ा, पान का पत्ता, अनार, नारियल, हलवा और मखाने का भोग भी लगाएं. ऐसा करने से आपके जीवन में सुख-समृद्धि बढ़ जाती है, ऐसी मान्यता है.


महालक्ष्मी व्रत कथा

एक गांव में एक गरीब ब्राह्मण रहता था। वह दिन प्रतिदिन भगवान विष्णु की आराधना करती थी। भगवान विष्णु उसकी भक्ती से बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने अपनी प्रिय भक्त को दर्शन दिए। साथ ही ब्राह्मणी ने कहा कि तुम्हें जो वरदान मांगना है तुम मांग सकते हो। जब ब्राह्मणी ने इच्छा जाहिर करते हुए कहा कि वह चाहती है कि उसके घर में मां लक्ष्मी का वास हो जाए। इसके बाद भगवान विष्णु ने उस ब्राह्मणी को अपने घर में मां लक्ष्मी को बुलाने की तरीका बताया। भगवान विष्णु ने बताया कि तुम्हारे घर से कुछ ही दूरी पर जो मंदिर है वहां एक स्त्री आती है और वहां आकर वह उपले थापती है। तो तुम्हें उसे अपने घर आने का आमंत्रण देना होगा। वहीं, मां लक्ष्मी है। ब्राह्मणी ने भगवान विष्णु के कहें अनुसार ही किया। ब्राह्मणी ने उस स्त्री को अपने घर आने का निमंत्रण दिया। तब मां लक्ष्मी ने उस ब्राह्मणी से कहा कि वह 16 दिन के लिए मां लक्ष्मी की पूजा करें। मां लक्ष्मी के कहे अनुसार, ब्राह्मणी ने 16 दिन तक मां लक्ष्मी की उपासना की। मां लक्ष्मी ने फिर उस ब्राह्मणी को आशीर्वाद दिया और उसके घर में निवास किया। तभी से जो व्यक्ति भाद्रपद महीने में महालक्ष्मी की इन 16 दिनों तक उपासना करता है मां लक्ष्मी उससे प्रसन्न होकर उसे सुख समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं। मान्यता है कि इस व्रत का पूरा फल जातक को तभी प्राप्त होता है जब वह महालक्ष्मी व्रत की कथा को सुनता है. लिहाजा महालक्ष्मी व्रत करें तो इसकी कथा जरूर पढ़ें या सुनें. आखिर में गाय के शुद्ध घी के दीपक से मां लक्ष्मी की आरती करें. महाभारत के समय में पांडव जुएं में सबकुछ हार गए थे। इसके बाद श्री कृष्ण ने उन्हें महालक्ष्मी व्रत करने की सलाह दी थी। कहानी के अनुसार पांडव जुएं में पूरी संपत्ति हार गाए थे, तब युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से धन प्राप्ति का उपाय पूछा था। इस समय श्री कृष्ण ने उन्हें महालक्ष्मी व्रत करने को कहा था। इसी दिन से भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से महालक्ष्मी व्रत रखा जाने लगा। माता महालक्ष्मी को प्रसन्न करने से भक्तों के जीवन में धन और समृद्धि आती है। इस व्रत में अन्न ग्रहण नहीं किया जाता है। 16वें दिन महालक्ष्मी व्रत का उद्यापन किया जाता है। इस व्रत को करने से सुख-समृद्धि और धन की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि जिस घर की महिलाएं इस व्रत को रखती हैं, उस घर में पारिवारिक शांति हमेशा बनी रहती है।


चंद्रमा को अर्घ्य दें

रात को चंद्रमा को कच्चे दूध और पानी से अर्घ्य अर्पित करें. यह माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने का सबसे सरल और प्रभावी उपाय माना जाता है. इस व्रत में 16 दिनों तक लगातार मां लक्ष्मी की सुबह-शाम पूरे विधि विधान से पूजा करें। महालक्ष्मी व्रत के दिनों में व्रत करने वालों को बाएं हाथ में सोलह गांठों वाली स्ट्रिंग पहननी होती है। व्रत अवधि के दौरान खट्टी चीजों का सेवन न करें। धन की देवी मां लक्ष्मी जी की पूजा के पश्चात् सोलह दूर्वा घास की गांठ को पानी में डुबोकर शरीर पर छिड़कना चाहिए। ऐसा करना शुभ होता है। साथ ही जीवन की सभी मुश्किलें दूर होने लगती है। इस दौरान मां लक्ष्मी की प्रिय वस्तुएं अर्पित करने से व्यापार में उन्नति को योग भी बनते हैं। महालक्ष्मी व्रत के पहले दिन माता लक्ष्मी की मूर्ति की स्थापना विधिपूर्वक करें. इस व्रत में माता लक्ष्मी की सुरहिया आकार वाली मूर्ति की पूजा होती है, लेकिन ऐसी मूर्ति न मिले तो धन वर्षा करती हुई माता लक्ष्मी की मूर्ति भगवान गणेश के साथ स्थापित करें. महालक्ष्मी व्रत के अंतिम दिन माता लक्ष्मी की मूर्ति का विसर्जन कर दें या चाहें तो उसे पूजा घर में स्थापित करके प्रतिदिन पूजन कर सकते हैं. इस व्रत को करने से भक्तों पर पूरे वर्ष माता महालक्ष्मी का आशीर्वाद और कृपा बनी रहती है. धन, वैभव, सुख और समृद्धि में कोई कमी नहीं रहती. संतान सुख की भी प्राप्ति होती है.


काशी में तीन रुपों में विराजमान है मां लक्ष्मी, शक्तिपीठ का है दर्जा

इस मंदिर को शक्तिपीठ के रूप में भी मान्यता प्राप्त है। यहां माता महालक्ष्मी की पूजा यूं तो सालों भर होती है लेकिन श्राद्ध के दिनों में इसका महत्व बढ़ जाता है। इन दिनों में मां प्रसन्न होकर सुहागिनों को पति के साथ-साथ पुत्रों की लंबी उम्र का वरदान देती हैं। इस मंदिर की एक बड़ी ही रोचक मान्यता है कि माता को सिंदूर, बिंदी, महावर सहित सोलहों श्रृंगार की अन्य वस्तुएं अर्पित की जाती हैं। इनमें एक सोलह गांठों वाला धागा भी शामिल होता है। मंदिर के पूजारी इस धागे को माता का स्पर्श करवाकर श्रद्धालु को देते हैं। माना जाता है कि इस धागे में माता की कृपा होती है जो भक्त को आशीर्वाद स्वरूप प्राप्त होता है। आश्विन कृष्ण अष्टमी के प्रदोषकाल में पुत्रवती महिलाएं पुत्र की दीर्घायु की कामना के साथ महिलाएं जीवित्पुत्रिका का निर्जला व्रत भी रखती है। लक्ष्मी कुंड या नदियों, सरोवरों में स्नान कर पूजन-अर्चन करती हैं।


मां का विग्रह रुप

लक्ष्मीकुंड मंदिर में मां लक्ष्मी का विग्रह रुप है। इस मंदिर परिसर में भाद्रपद शुक्ल पक्ष की अष्टमी से क्वार कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि तक 16 दिन तक मेला लगता है। इन 16 दिनों तक महिला-पुरुष रखते हैं व्रत। इसके अलावा पहले ही दिन 16 गांठों वाले धागे की माला धारण करते हैं। मंदिर के गुंबद में आज भी माता पार्वती के हाथों निर्मित 16 जड़ित कलश आज भी मौजूद है। महिलाएं दिन भर कठिन व्रत रख सूर्यास्त के बाद एक अन्न ग्रहण कर पारण करती है। यह सिलसिला सोलहो दिन पूजन-अर्चन के साथ चलता है। महालक्ष्मी का पूजन अर्चन करने वालों के लिए मान्यता यह है कि पखवारे भर वे ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए जमीन पर कंबल पर रात्रि में शयन करते हैं। एक वक्त भोजन किया जाता है। क्वार कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि के जीवित पुत्रिका व्रत वाले दिन ही इस सोरहिया मेले का समापन होता है। इस दिन महालक्ष्मी मंदिर से लगायत लक्सा तिराहे तक मेला लगता है।


यहां मां पार्वती ने भी किया है व्रत

मंदिर के पुजारी अविनाश पांडेय बताते है कि यहां माता पार्वती ने पुत्र श्रीगणेश व श्री कार्तिकेय की दीर्घायु के लिए सोलह दिन का व्रत रखकर पूजन-अर्चन की थी। इस कठिन व्रत के बाद भगवान श्री गणेश देवों में प्रथम पूज्य कहलाएं। मान्यता है कि यहां जो भी महिलाएं विधि विधान से 16 दिन का उपवास रख पुत्र कल्याण व धन्यधान की मन्नतें मांगती है वह पूरा हो जाता है। कहते है जब माता पार्वती यहां सोलहों दिन का उपवास रखी थी। उसी दौरान भ्रमण पर निकली माता लक्ष्मी यहां पहुंची थी। माता लक्ष्मी के विशेष आग्रह के बाद भी जब माता पार्वती उनके साथ नहीं गयी तो वह भी यहीं विराजमान होकर पूजन-अर्चन करने लगी। उनकी तपस्या से ही खुश होकर मां काली और मां सरस्वती भी आ गयी और माता पार्वती के संग श्री गणेश व कार्तिकेय  की दीर्घायु के लिए व्रत रखा। उसी के बाद से यहां 16 दिन का सोरहिया मेले का आयोजन होता चला रहा है। 


पौराणिक मान्यताएं

मान्यता है कि मां लक्ष्मी को धन की देवी है। महालक्ष्मी की पूजा घर और कारोबार में सुख और समृद्धि लाने के लिए की जाती है। महालक्ष्मी मंदिर के मुख्य द्वार पर सुंदर नक्काशी की गई है। मंदिर परिसर में विभिन्न देवी-देवताओं की आकर्षक प्रतिमाएं स्थापित हैं। मंदिर के गर्भगृह में महालक्ष्मी, महाकाली एवं महासरस्वती तीनों देवियों की प्रतिमाएं एक साथ विद्यमान हैं। तीनों प्रतिमाओं को सोने एवं मोतियों के आभूषणों से सुसज्जित किया गया है। यहां आने वाले हर भक्त का यह दृढ़ विश्वास होता है कि माता उनकी हर इच्छा जरूर पूरी करेंगी। महालक्ष्मी व्रत से आप साल भर की आमदनी का इंतजाम कर सकते हैं। महालक्ष्मी व्रत पूरे 15 दिन चलता है। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत से गरीबी हमेशा-हमेशा के लिए चली जाती है। महालक्ष्मी के महाव्रत से आप अपने घर के आंगन में धन की बरसात भी कर सकते हैं। इस अवधि में शक्ति पीठों में शक्ति मां मौजूद रहकर जन कल्याण के लिये भक्त जनों का परिपालन करती है। काशी की शक्ति पीठं बहुत ही सुप्रसिद्ध है क्योंकि यहां जो भी अपने विचारों को प्रकट करता है वो तुरंत मां जी के आशीर्वाद से पूरा हो जाता है या उस व्यक्ति मुक्ति पाकर उसका जनम सफल हो जाता है। भगवान विष्णु के पत्नी होने के नाते इस मंदिर का नाम माता महालक्ष्मी से जोड़ा हुआ है और यहां के लोग इस जगह में महाविष्णु महालक्ष्मी के साथ निवास करते हुए लोक परिपालन करने का विशवास करते है। मंदिर के अन्दर नवग्रहों, भगवान सूर्य, महिषासुर मर्धिनी, विट्टल रखमाई, शिवजी, विष्णु, तुलजा भवानी आदी देवी देवताओं को पूजा करने का स्थल भी दिखाई देते हैं। इन प्रतिमाओं में से कुछ 11 वीं सदी के हो सकते हैं, जबकि कुछ हाल ही मूल के हैं। इसके अलावा आंगन में स्थित मणिकर्णिका कुंड के तट पर विश्वेश्वर महादेव मंदिर भी स्थित हैं।


चढ़ावा 16 अंक वाला

सोरहिया मां का पूजा करने के बाद लक्ष्मी जी का दर्शन का विधान है। 16 पेड़ा, 16 दुब की माला, 16 खड़ा चावल, 16 गांठ का धागा, 16 लौंग, 16 इलायची, 16 पान, 16 खड़ी सुपारी, श्रृंगार का सामान मां को अर्पित किया जाता है। यहां आने वाली महिलाएं बताती है की जिन्हें संतान सुख प्राप्त नहीं होता है वो यहां आती है उन्हें संतान सुख प्राप्त होता है और हमारे घर में लक्ष्मी का वास होता है। अगर आप भी समृद्धि और सौभाग्य की देवी मां लक्ष्मी को प्रसन्न करना चाहती हैं तो सोरहिया पूजन जरूर करें। सोरहिया व्रत एवं पूजन 16 दिनों तक चलता है, जिसकी शुरुआत भाद्रपद के शुक्लपक्ष की अष्टमी से होता है। विवाहित महिलाएं व्रत का संकल्प लेकर 16 दिनों तक इसे धारण करती हैं। स्नान के बाद महालक्ष्मी मंदिर में पूजन कर सोलह गांठ का धागा पूजती हैं। धागे को बांह में बांधने के साथ ही 16 दिन का अपना व्रत शुरू कर देती हैं। मिट्टी की बनी मां लक्ष्मी की मूर्ति की पूजा कर उसे अपने साथ घर ले जाती हैं। अंतिम 16 वे दिन जिउत पुत्रिका लोकाचार में जिवतिया पर्व के साथ इस कठिन व्रत तप की समाप्ति होती है।


लक्ष्मी कुंड

पुराणों के अनुसार, प्राचीन लक्ष्मीकुण्ड की स्थापना अगस्त ऋषि ने की थी। व्रत से जुड़ी मान्यता है कि महाराजा जिउत की कोई संतान नहीं थी। महाराज ने मां लक्ष्मी का ध्यान किया और मां लक्ष्मी ने सपने मे दर्शन देकर सोलह दिनों के इस कठिन व्रत का अनुष्ठान करने को कहा। महाराजा जिउत ने ठीक वैसे ही 16 दिनों तक व्रत रखा और मां लक्ष्मी की पूजा की। कुछ दिनों बाद ही उन्हें संतान के साथ समृद्धि और ऐश्वर्य की भी प्राप्ति हुई, तभी से इस परम्परा का नाम सोरहिया पड़ा। 





Suresh-gandhi


सुरेश गांधी

वरिष्ठ पत्रकार 

वाराणसी

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