पटना : तीसरी दुनिया के लिए सबक है साल्वाडोर अलेंदे की विरासत - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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बुधवार, 11 सितंबर 2024

पटना : तीसरी दुनिया के लिए सबक है साल्वाडोर अलेंदे की विरासत

  • ऐप्सो ने के किया चिली के राष्ट्रपति की शहादत के पचास साल पर कार्यक्रम

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पटना , 11 सितंबर (रजनीश के झा)। अखिल भारतीय शांति व एकजुटता संगठन ( ऐप्सो) की ओर से साम्राज्यवाद विरोधी नायक और चिली  के  राष्ट्रपति साल्वाडोर अलेंदे की शहादत के पचास साल पूरे होने पर कार्यक्रम का आयोजन किया गया। विमर्श का विषय था- चिली  में  'साम्राज्यवाद हस्तक्षेप सबक और सलवादोर अलेंदे की क्रांतिकारी विरासत'। विषय प्रवेश करते हुए ' ऐप्सो' के पटना जिला महासचिव जयप्रकाश ने बताया "  आज से पचास साल पूर्व चिली के लोकतांत्रिक ढंग से चुने राष्ट्रपति  साल्वाडोर अलेंदे को  मार डाला  गया।  अपने अंतिम समय में स्कवादोर अलेंदे क्यूबा के राष्ट्रपति फिदेल कास्ट्रो द्वारा दिए गए राइफल से लड़ते हुए मारे गए। सलवाडोर अलेंदे का शासन मात्र तीन साल रहा 1970 से 1973 तक। लेकिन इस दौरान इस सरकार ने जनता के पक्ष में इतने महत्वपूर्ण कदम उठाए कि अमेरिका को लगने लगा कि इससे तो लैटिन अमेरिका के दूसरे मुल्क भी इस रास्ते पर चले जायेंगे। एलवाड अलेंदे ने बच्चों के लिए दूध मुफ्त कर दिया था ऐसे ही कई लोकप्रिय कदम उठाए।  एलवाडोर अलेंदे के बाद ही चिली को संयुक्त राष्ट्र में सदस्यता मिल पाई थी। " 


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ऐप्सो के राज्य महासचिव सर्वोदय शर्मा ने अपने संबोधन में कहा " अमूमन यह दुष्प्रचार किया जाता है कि समाजवाद के साथ हिंसा जुड़ी रहती है। लेकिन हमें चिली का उदाहरण बताता है कि यह सही नहीं है। हिंसा के सबसे बड़े हथियार एटम बम का उपयोग साम्राज्यवादी मुल्कों द्वारा किया गया था। कम्युनिस्ट इंटरनेशनल का यह पुराना सिद्धांत है कि कैसे साम्राज्यवाद और समाजवाद का अंतर्विरोध प्रमुख है। यही प्रधान अंतर्विरोध है।  अलेंदे की हत्या क्यों हुई? वे तो हथियार और हिंसा का सहारा लेकर सत्ता में नहीं आए थे। वे तो शांतिपूर्ण ढंग से काम कर रहे थे। जैसे कि भारत में भी वामपंथी दल लोकतांत्रिक ढंग से काम कर रहे हैं। लेकिन इस शांतिपूर्ण परिवर्तन को भी साम्राज्वाद बर्दाश्त नहीं कर पाया क्योंकि उसको लगता था कि ऐसा न कि दूसरे अनुकरण करने लगें। उनकी  हत्या के बाद वहां सैनिक तानाशाही स्थापित हुई। अमेरिका ने यह प्रचारित कर दिया था कि उन्होंने आत्महत्या कर ली थी । उस समय मैं सेना में काम कर रहा था। बंगलादेश युद्ध के वक्त अमेरिका ने धमकी दी थी कि वह अपना सातवां बेड़ा भेज देगा। लेकिन तब सोवियत संघ मौजूद था। उसने जवाब में नौसेना को भेज कर मामले को न्यूत्रलाइज किया। इस बीच भारतीय सेना को मौका मिला और उसने जाकर बांग्लादेश को मुक्त कराया। चिली का अनुभव बताता है कि यदि हथियार न रहे तो अपनी उपलब्धियों को बचाकर रखना मुश्किल होगा।"


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चर्चित सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता अरुण मिश्रा " अमेरिका लैटिन अमेरिका में मुनरो डॉक्त्रिन  पर काम करता है।  जिसके तहत वह लैटिन अमेरिका को अपना पिछवाड़ा समझता है। तीसरी दुनिया कें देशों  की सेना का हित एलीट लोगों के साथ जुड़ा हुआ है। देखा गया है कि सेना बहुत कम बार प्रगतिशील सरकारों का समर्थन करती है। ऐसे में को सरकारें उसके हित के अनुकूल काम नहीं करती इसको अस्थिर कर देती है, उसको काम ही नहीं करने दिया जाता है। या तो उनको काम नहीं करने दिया जाता और न फिर उसके बाद सेना को हस्तक्षेप कर सत्ता ले लेती है। अलेंदे मार्क्सवादी थे। वे लोकतंत्र  के माध्यम से समाजवाद स्थापित करना चाहते है। 1970  के राष्ट्रपति चुनाव में पॉपुलर फ्रंट  जीती। अलेंदे में कौपर  का राष्ट्रीयकरण । वह अमेरिकी कंपनी थी।  किया फिर वे भूमि सुधार की ओर बढ़े। लेकिन उसके साथ ही उसके खिलाफ साजिशें भी शुरू हो गई। फिदेल कास्ट्रो ने कहा था की यह बहुत अच्छा प्रयोग है लेकिन आगे साम्राज्यवाद आपको अपने ढंग से जीने नहीं देगा। कभी आपको अपने संसाधनों  का विकास नहीं करने देगा। जो आदमी लोकतंत्र में विश्वास करता था उसे राष्ट्रपति को बचाने के लिए राइफल उठाना पड़ा था। पाब्लो नेरुदा के हत्या हुई, विकटर जारा को गीत गाते समय मारा गया। कितने लोग मारे गए इसका कोई आंकड़ा ही नहीं है। कितने लोग गायब हो गए इसका कोई अंदाजा नहीं है। यह लिबरल लोग हैं जो कहा करते हैं की कम्युनिस्ट लोग हिंसा का सहारा लिया करते हैं। लेकिन कम्युनिस्ट हिंसा पर आधारित समाज को खत्म करना चाहते हैं। क्या शासक वर्ग इस बात की आपको इजाजत देगा ? वह तो उसको खून में डूबो देता है। शासक वर्ग को उससे अपनी हिफाजत करने का अधिकार है और उसे जायज हिंसा माना जाएगा। हिंसा- अहिंसा के बहाने जनता के आंदोलन को बर्बाद करना चाहते हैं। इन तमाम विपरीत स्थितियों के बावजूद क्यूबा किसी तरह टिका हुआ है। हथियार के बल पर क्यूबा ने ऐसा नहीं किया बल्कि जनता के बल पर किया गया। "


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ऐप्सो के राज्य महासचिव अनीश अंकुर ने  अलेंदे की हत्या से संबंधित  परिस्थितियों के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा " सलवादोर अलेंदे  जब 4 सितंबर को चिली का राष्ट्रपति चुना गया उसके ठीक दो दिन बाद अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने मीटिंग बुलाई और एलेंडे की सरकार को अस्थिर करने की योजना पर काम करना शुरू कर दिया। क्यूबा में कम्युनिस्ट क्रांति के बाद ही अमेरिका ने लैटिन अमेरिका पर ज्यादा देना शुरू कर दिया था। चिली की सेना के साथ संपर्क बनाना शुरू कर दिया था। चिली की सेना सैंतीस हजार से सत्तर हजार तक हो गई। अमेरिकी ट्रेनिंग पाए लोगों को शिकागो ब्यवाज कहा जाता था। ये सभी अंध कम्युनिस्ट विरोधी थे।  इन शिकागो ब्वायज का झगड़ा सैंत्यागो ब्वायज के साथ हुआ था।  स्लावडोर अलेंदे कई बार राष्ट्रपति का चुनाव लड़ चुका था। 1958 में वह चाहता को राष्ट्रपति बन सकता था जब चिली के सेनानायक ने चुनाव प्रक्रिया को बाधित कर राष्ट्रपति बनाने का प्रस्ताव रखा था। लेकिन सलवादौर अलेंदे ने लोकतंत्र के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के कारण उस प्रस्ताव को ठुकरा दिया था। स्लावडो अलेंदे के को अपने समय में सुधारवादी कहा जाता था लेकिन वे समाजवाद स्थापित करना चाहते थे लेकिन लोकतांत्रिक माध्यम से ही। फिदेल कास्ट्रो ने कभी कहा था कि चिली में यदि कोई समाजवाद ला सकता है तो वह साल्वाडोर अलेंदे ही थे, यदि  साल्वाडोर अलेंदे नहीं समाजवाद लाएगा तो फिर कोई भी नहीं ला पाएगा। साल्वाडोर अलेंदे कम्युनिस्ट पार्टी में नहीं थे बल्कि सोशलिस्ट थे। वे रिफ्रेंडम करवाना चाहते थे, विरोधी पार्टी के एक हिस्से से समझौता करना चाहते थे लेकिन आपसी अंतर्विरोधों के कारण सफलता नहीं मिली। बाद में यही चिली नवउदारवादी माडल लागू करने वाला पहला मुल्क बना। यह मॉडल बिना लोकतंत्र को खत्म किए, बिना हर आवाज को दबाए लागू नहीं किया जा सकता।" अरुण शाद्वल ने कहा " स्वालदोर अलेंदे ने कभी सिद्धांत से समझौता नहीं किया।" राजीव रंजन के अनुसार " सलवादोर अलेंदे ने अमेरिका के उद्योग का राष्ट्रीयकरण कर दिया उससे खतरा महसूस होने लगा।" 


अध्यक्षीय वक्तव्य में विजय कुमार सिंह ने कहा " जब राष्ट्रपति भवन को घेर लिया गया तो रेडियो पर उन्होंने जो अंतिम भाषण दिया वह इतिहास में अमर हो चुका है।  वह इतना मार्मिक भाषण है जिसे बार बार पढ़ा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि मुझे आक्रोश नहीं है बल्कि निराशा है। अपराध के माध्यम से सामाजिक प्रक्रिया को बाधा नहीं पहुंचा सकता।  उन्होंने कहा जी मेरी मौत के बाद दुनिया यह कहेगी कि एक ऐसा आदमी करीब से गया जो मजदूरों के पक्ष में काम किया।  वे तीन बार चुनाव हारकर चौथी बार चुनाव जीता।  तांबा उद्योग का बिना मुआवजा दिए राष्ट्रीयकरण किया। " सभा में मौजूद प्रमुख लोगों में थे सुनील सिंह, अभय पांडे, राजू कुमार, गौतम गुलाल, कुलभूषण गोपाल, सुधीर कुमार, कपीलदेव , राकेश, पप्पू ठाकुर, रोहित कुमार, अभिषेक विद्रोही , निषाद पप्पू आदि।

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