आलेख : डोली में आयेंगी मां दुर्गा, चरणायुध में होंगी विदा, महामारी के संकेत - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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मंगलवार, 10 सितंबर 2024

आलेख : डोली में आयेंगी मां दुर्गा, चरणायुध में होंगी विदा, महामारी के संकेत

सनातन में नवरात्रि महापर्व को विशेष महत्व है. जगत जननी मां दुर्गा के भक्तों को नवरात्रि का बेसब्री से इंतजार होता है. हालांकि नवरात्रि साल में चार बार पड़ती है - माघ, चैत्र, आषाढ़ और आश्विन. आश्विन की नवरात्रि को शारदीय नवरात्रि कहा जाता है. शारदीय नवरात्रि का पर्व उत्सव का पर्व होता है. इस वर्ष शारदीय नवरात्रि 3 अक्टूबर, गुरुवार से आरंभ हो रही है. जबकि समापन यानी नवमी 11 अक्टूबर को है। नवरात्रि के नौ दिनों में देवी के अलग अलग शक्ति रूपों की पूजा की जाती है, जिसे नवदुर्गा का स्वरूप कहा जाता है. हर स्वरूप से विशेष तरह का आशीर्वाद और वरदान प्राप्त होता है. साथ ही साथ आपके ग्रहों की दिक्कतों का समापन भी होता है. लेकिन इस साल नवरात्रि पर मां कें आगमन-प्रस्थान की सवारी बहुत खतरनाक संकेत दे रही है. महामारी व तबाही से इनकार नहीं किया जा सकता। या यूं कहे गुरुवार से नवरात्रि का प्रारंभ यानी मां दुर्गा इस बार डोली में सवार होकर आ रही हैं. हालांकि देवी पुराण में डोली की सवारी को शुभ माना गया है. लेकिन डोली की सवारी आंशिक महामारी का कारण भी मानी गई है. लिहाजा देश में बीमारियां-महामारी फैलने की आशंका है. जबकि मां दुर्गा के प्रस्थान की सवारी शुक्रवार को है, जो चरणायुध (बड़े पंजे वाले मुर्गे) पर होगा. मां दुर्गा की मुर्गे की सवारी को अशुभ माना गया है. यह भी देश पर प्रतिकूल प्रभाव डालने का संकेत देती है


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नवरात्रि के वातावरण से तमस का अंत होता है, नकारात्मक माहौल की समाप्ति होती है. शारदीय नवरात्रि से मन में उमंग और उल्लास की वृद्धि होती है. दुनिया में सारी शक्ति नारी या स्त्री स्वरूप के पास ही है, इसलिए नवरात्रि में देवी की उपासना की जाती है। देवी शक्ति का एक स्वरूप कहलाती है, इसलिए इसे शक्ति नवरात्रि भी कहा जाता है. साल में चार बार मां दुर्गा को समर्पित नवरात्रि आती हैं, जिनमें से दो प्रत्यक्ष और दो अप्रत्यक्ष नवरात्रि होती हैं. शारदीय नवरात्रि प्रत्यक्ष नवरात्रि और उत्सव की नवरात्रि होती हैं. शारदीय नवरात्रि सभी नवरात्रियों में सबसे ज्यादा लोकप्रिय व महत्वपूर्ण नवरात्रि है. इसलिए शारदीय नवरात्रि को महा नवरात्रि भी कहा जाता है. शारदीय नवरात्रि आश्विन मास की प्रतिपदा से प्रारंभ होती हैं और नवमी तिथि तक चलती हैं. इन नौ दिनों में मां दुर्गा की विशाल प्रतिमाएं स्थापित की जाती हैं. मां दुर्गा के नौ रूपों के निमित्त नवरात्र का व्रत रखा जाता है। कहा जाता है कि नवरात्रि के दौरान माता जगत जननी जगदंबा 9 दिनों तक अपने भक्तों के बीच में रहती हैं. नौ दिन तक उनकी विशेष पूजा-अर्चना की जाती है. कहते है मां दुर्गा की पूजा करने से साधक के जीवन में व्याप्त समस्त प्रकार के दुख एवं संकट दूर हो जाते हैं। साथ ही मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। इस दौरान गरबा खेला जाता है. फिर दशहरा के दिन मां दुर्गा की प्रतिमाएं विसर्जित की जाती हैं.


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चूंकि इस समय शरद ऋतु प्रारंभ हो जाती है इसलिए इन्हें शारदीय नवरात्रि कहते हैं. शारदीय नवरात्रि 3 अक्टूबर से प्रारंभ होंगी और 11 अक्टूबर को नवमी के दिन समाप्त होंगी. इसके बाद 12 अक्टूबर को दशहरा मनाया जाएगा. 3 अक्टूबर को नवरात्रि के पहले दिन घरों में कलश स्थापना की जाती है. फिर 9 दिनों तक मां भवानी के नौ स्वरूपों की विधिवत पूजा की जाती है. शारदीय नवरात्रि में माता के आगमन-प्रस्थान की सवारी बहुत खास होती है. माता की सवारी भविष्य में होने वाली घटनाओं के संकेत देती है. नवरात्रि के प्रारंभ और समापन के दिन से माता की सवारी का पता चलता है. ज्योतिषियों का कहना है कि माता दुर्गा के आगमन और प्रस्थान की सवारी दिन के हिसाब से तय होती है. अगर सोमवार या रविवार को नवरात्रि शुरू होती है तो मां का आगमन हाथी पर होता है. मंगलवार या शनिवार के दिन मां का आगमन घोड़े पर, शुक्रवार या गुरुवार के दिन मां दुर्गा का आगमन  पालकी पर होता है और बुधवार के दिन मां का आगमन नाव पर होता. इस साल गुरुवार के दिन घटस्थापना होने वाली है. इस हिसाब से माता दुर्गा का आगमन पालकी पर होने वाला है, जिसे शुभ नहीं माना जाता है. हालांकि देवी पुराण में पालकी की सवारी को बहुत शुभ माना गया है. लेकिन पालकी की सवारी पर जब मां दुर्गा सवार होकर आती हैं, तो इससे आंशिक महामारी का सामना देश दुनिया को करना पड़ सकता है. राष्ट्र पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. ज्योतिषियों की मानें तो आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि यानी घटस्थापना के दिन दुर्लभ इंद्र योग का निर्माण हो रहा है। इस योग का समापन 04 अक्टूबर को सुबह 04 बजकर 24 मिनट पर होगा। इंद्र योग में जगत जननी मां दुर्गा की पूजा करने से व्रती को सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति होगी। कलश स्थापना का मुहूर्त 3 अक्टूबर को सुबह 06 बजकर 15 मिनट से लेकर सुबह 07 बजकर 22 मिनट तक रहेगा. वहीं घटस्थापना के लिए अभिजीत मुहूर्त सुबह 11 बजकर 46 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 33 मिनट तक रहेगा. नवरात्रि के नौ दिन शक्ति की साधना के लिए सर्वश्रेष्ठ माने जाते हैं. यह त्योहार लोगों को आध्यात्मिक रूप से जागृत करने और उन्हें देवी दुर्गा की कृपा प्राप्त करने का अवसर प्रदान करता है. शारदीय नवरात्रि की शुरुआत घटस्थापना से होती है और आखिरी दिन विजया “विजयादशमी (दशहरा) के रूप में मनाया जाता है, जिसमें भगवान राम ने लंकापति रावण को और देवी दुर्गा ने महिषासुर को मारकर विजय प्राप्त की थी.


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एक कथा के अनुसार, माता भगवती देवी दुर्गा ने महिषासुर नामक असुर के साथ नौ दिन तक युद्ध किया उसके बाद नवमी की रात्रि को उसका वध किया. उस समय से देवी माता को ‘महिषासुरमर्दिनी’ के नाम से जाना जाता है. तभी से मां दुर्गा की शक्ति को समर्पित नवरात्रि का व्रत करते हुए इनके 9 स्वरूपों की पूजा की जाती है. नव का शाब्दिक अर्थ है नौ और नया. शारदीय नवरात्रि से प्रकृति सर्दी की चाहर में सिकुड़ने लगती है. ऋतु में परिवर्तन होने लगता है. यही वजह है कि नवरात्रि की अवधि में उपासक संतुलित और सात्विक भोजन कर अपना ध्यान चिंतन और मनन में लगाते हैं और स्वंय को भीतर से शक्तिशाली बनाते हैं. इससे ऋतु परिवर्तन का बुरा असर उसकी सेहत पर नहीं पड़ता. इसके साथ ही मां दुर्गा की पूजा पूर्ण शुद्धि के साथ संपन्न कर पाते हैं. नवरात्रि की 9 रातें बहुत खास मानी जाती है. कहते हैं इसमें व्यक्ति व्रत, पूजा, मंत्र जाप, संयम, नियम, यज्ञ, तंत्र, त्राटक, योग कर नौ अलौकिक सिद्धियां प्राप्त कर सकता है. पुराणों के अनुसार रात्रि में कई तरह के अवरोध खत्म हो जाते हैं. रात्रि का समय शांत रहता है, इसमें ईश्वर से संपर्क साधना दिन की बजाय ज्यादा प्रभावशाली है. रात्रि के समय देवी दुर्गा की पूजा से शरीर, मन और आत्मा. भौतिक, मानसिक और आध्यात्मिक सुख प्राप्त होता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, कहा जाता है कि देवी दुर्गा ने आश्विन के महीने में महिषासुर पर आक्रमण कर उससे नौ दिनों तक युद्ध किया और दसवें दिन उसका वध किया. इसलिए इन नौ दिनों को शक्ति की आराधना के लिए समर्पित कर दिया गया. आश्विन मास में शरद ऋतु का प्रारंभ हो जाता है, इसलिए इसे शारदीय नवरात्रि कहा जाता है. शारदीय नवरात्रि सांसारिक इच्छाओं को पूरा करने वाली मानी जाती है. दुर्गा सप्तशती में बताया गया है कि शरद ऋतु में जो वार्षिक महापूजा की जाती है, उस अवसर पर जो मेरे महात्म्य (दुर्गा सप्तशती) को श्रद्धा-भक्ति के साथ सुनेगा, वह मनुष्य मेरी अनुकंपा से सब बाधाओं से मुक्त होकर धन, धान्य और पुत्रादि से सम्पन्न होगा. शारदीय नवरात्र-पूजा वैदिक काल में प्रचलित थी.


कलश स्थापना व पूजा-विधि

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शारदीय नवरात्रि से एक दिन पहले ही घर की अच्छी तरह साफ-सफाई कर लें. फिर नवरात्रि की प्रतिपदा के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करके साफ कपड़े पहनें. मंदिर की साफ-सफाई करें. गंगाजल छिड़क करें शुद्ध करें. फिर उत्तर या उत्तर-पूर्व दिशा में चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित करें. साथ ही कलश स्थापना के लिए मिट्टी का एक पात्र लें, जिसका मुंह चौड़ा हो, फिर उसमें शुद्ध जौ के बीज बाएं. इसके अलावा तांबे के कलश में शुद्ध पानी और गंगाजल डालें. कलश पर कलावा बांधें. उस पर रोली से स्वास्तिक बनाएं. साथ ही कलश में अक्षत, सुपारी और सिक्का डालें. फिर कलश पर चुनरी मौली बांध कर एक सूखा नारियल रखें. विधि-विधान से माता की पूजन करें. पान का पत्ता, सुपारी अर्पित करें. फल-मिठाइयों का भोग लगाएं. दुर्गा सप्तशती का पाठ जरूर करें. आखिरी में आरती करें और प्रसाद का वितरण करें.


शारदीय नवरात्रि की तिथियां

03 अक्टूबर गुरुवार- मां शैलपुत्री की पूजा

04 अक्टूबर शुक्रवार- मां ब्रह्मचारिणी की पूजा

05 अक्टूबर शनिवार- मां चंद्रघंटा की पूजा

06 अक्टूबर रविवार- मां कूष्मांडा की पूजा

07 अक्टूबर सोमवार- मां स्कंदमाता की पूजा

08 अक्टूबर मंगलवार- मां कात्यायनी की पूजा

09 अक्टूबर बुधवार- मां कालरात्रि की पूजा

10 अक्टूबर गुरुवार- मां सिद्धिदात्री की पूजा

11 अक्टूबर शुक्रवार- मां महागौरी की पूजा

12 अक्टूबर शनिवार- विजयदशमी (दशहरा)


पूजा सामग्री

नवरात्रि में मां शक्ति के अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती है। पूजा सामग्री में कुमकुम, पुष्प, देवी की मूर्ति या फोटो, जल से भरा कलश, मिट्टी के बर्तन, जौ, लाल चुनरी, लाल वस्त्र, नारियल, अक्षत, पान, सुपारी, लौंग, इलायची, मिसरी, कपूर, श्रृंगार का सामान, दीपक, घी, फल, मिठाई और कलावा।


नवरात्रि की 9 शक्तियां

नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा के नौ रूप पूजे जाते हैं, जिन्हें नवदुर्गा के रूप में जाना जाता है- शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, और सिद्धिदात्री.







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सुरेश गांधी

वरिष्ठ पत्रकार 

वाराणसी

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