कविता : घर से निकली थी वो - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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सोमवार, 16 सितंबर 2024

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कविता : घर से निकली थी वो

सज संवर कर घर से निकली थी वो,

गई तो थी वो अपनी मंज़िल पाने,

पर दुनिया की गंदी नज़र नहीं जानती थी,

कौन किस रूप में है नहीं पहचानती थी?

इंसान के रूप में भेड़ियों ने नोच खाया उसे,

और जीने से पहले ही मार डाला उसे,

लोग बातें बनाते रह गये,

घर से निकली ही क्यों थी वो?

ज़रूर छोटे कपड़े पहनी होगी वो,

ज़रूर चरित्र ठीक नहीं रहा उसका होगा,

वरना उसके साथ ही ऐसा क्यों हुआ होगा?

मगर दर्द तो उसका किसी ने देखा नहीं,

जिस्म पर थी उसके कई खरोंचे,

इस तरह सपने उसके सारे तोड़े,

बाल बिखरे, फटे थे कपड़े,

चीखती रही चिल्लाती रही,

इस तरह एक बेटी तिल तिल रोज़ मरती रही।।




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नीतू रावल

गरुड़, बागेश्वर

उत्तराखंड

चरखा फीचर्स

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