- दर्द की दास्तां कहते-कहते, रुक गयी फिर जुबां कहते-कहते
सोच रहा हूँ सच की खातिर दुनिया के हालात लिखूं, जागे एक मसीहा मुझ में अपनी भी औकात लिखूं। कवि एवं ग़ज़लकार अनिमेष शर्मा की ब्रजभाषा की हज़लों ने श्रोताओं को ख़ूब गुदगुदाया। रूबी मोहंती की रचना “ग्रे शेड” को भी ख़ूब वाहवाही मिली। डॉ. अल्पना सुहासिनी की छोटी बह्र की ग़ज़ल भी ख़ूब पसंद की गई। प्रख्यात कवि चेतन आनंद ने अपने गीतों और ग़ज़लों से ख़ूब तालियां बटोरीं-दर्द की दास्तां कहते-कहते, रुक गयी फिर जुबां कहते-कहते, रह गयी बात फिर से अधूरी, चल दिये तुम कहाँ कहते-कहते’ खूब पसंद की गई। पूनम माटिया की रचनाएं भी बहुत सराहीं गईं-ज़िन्दगी के इस सफ़र में बचपना जो खो दिया, तो अजब बीमारियों का सिलसिला हो जाएगा, आज दिल में और घरों में कुछ जगह छोड़ी नहीं, इक ज़माना था कि जब हर घर में रोशनदान थे। डॉ. प्रमोद कुश ’तन्हा’ के मुक्तक और सस्वर ग़ज़लों को भी कवियों और श्रोताओं का भरपूर प्यार मिला-‘इन्हीं ख़ामोशियों में तो हमारी दास्तां गुम है, लबों की बर्फ़ पिघलेगी तो कुछ पैग़ाम देखेंगे, कहेंगे सच को सच तो साथ छोड़ेंगे सभी अपने, रहेंगे चुप तो पलकों के तले कुहराम देखेंगे।’ मुख्य अतिथि ओम प्रकाश यती की संवेदनशील ग़ज़लों से काव्य संध्या पूरी तरह ग़ज़लमय हो गई-निर्भया, श्रद्धा, शिवानी, अंकिता बन जाएगी। क्या पता कब कौन लड़की पीड़िता बन जाएगी। डॉ रमा सिंह के गीतों और ग़ज़लों से सभी कवि और श्रोता झूम उठे-तुम्हे कैसे पता होगा, मैं कैसे दौर से गुज़रा, मेरी तनहाइयाँ चुप थीं, मगर मैं शोर से गुज़रा, मेरे इस मन के मौसम ने, भी देखे हैं कई मौसम, कभी आँधी, कभी तूफाँ, घटा घनघोर से गुज़रा। सभी रचनाकारों की रचनाओं को साथी कवियों और श्रोताओं का भरपूर प्यार मिला और श्रोताओं ने भरपूर तालियों की गूंज के साथ प्रत्येक रचना का आनंद उठाया। एक आत्मीय काव्य संध्या को अपनी सहभागिता से सफलता की ऊंचाइयों तक पहुंचाने के लिए अखिल भारतीय अनुबन्ध फाउंडेशन के संस्थापक एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ प्रमोद कुमार कुश ’तन्हा’ द्वारा सभी कवियों, कवयित्रियों और शायरों के प्रति आभार व्यक्त किया गया।
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