विचार : मौली का महत्व - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शनिवार, 7 सितंबर 2024

विचार : मौली का महत्व

mauli-bandhan
मुझे लगता है कि कश्मीरी शब्द ना’र्यवन्द “नाडीबंध”से बना है।जन्म-दिन आदि मांगलिक अवसरों पर कश्मीरी पंडित/हिन्दू इसे कलाई पर बांधते हैं। हिंदी क्षेत्रों में इसे मौली,कलावा,रक्षा-सूत्र,डोरा आदि नामों से जाना जाता है। वैसे,मौली शब्द प्रचलन में अधिक है। मौली लाल-पीले सूत का वह लच्छा है जिसे प्रायः मांगलिक अवसरों पर कलाई,घड़ों तथा अन्य वस्तुओं पर बाँधा जाता है। कलाई पर इसलिए क्योंकि कलाई में स्थित नाडी/नब्ज़ का विशेष महत्त्व है। वैद्य कलाई की नाडी/नब्ज़ के परीक्षण द्वारा ही रोग का पता लगाते हैं। नाडी-परीक्षण से हृदय द्वारा संचालित रक्त-संचार का पता भी पता लगाया जाता है। मौली बाँधने की प्रथा कब से शुरू हुई और इसके महत्त्व के विषय में अनेक आख्यान शास्त्रों में मौजूद हैं । ऐसा माना जाता है कि मौली बाँधने की परंपरा तब से चली आ रही है, जब से दानवीरों में अग्रणी महाराज बलि की अमरता के लिए वामन भगवान् ने उनकी कलाई पर रक्षा-सूत्र बांधा था !तभी से इसे रक्षा-कवच के रूप में भी शरीर पर बांधा जाता है। इन्द्र जब वृत्रासुर से युद्ध करने जा रहे थे तब इंद्राणी शची ने इन्द्र की दाहिनी भुजा पर रक्षा-कवच के रूप में मौली को बाँध दिया था और इन्द्र इस युद्ध में विजयी हुए थे। मौली का दोनों धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व बताया जाता है।


ऐसा भी माना जाता है कि मौली बांधना उत्तम स्वास्थ्य प्रदान करता है क्योंकि आयुर्वेद के अनुसार मौली बांधने से त्रिदोष यानी वात, पित्त तथा कफ का शरीर में सामंजस्य बना रहता है। शरीर की संरचना का प्रमुख नियंत्रण हाथ की कलाई में होता है,अनेक नाड़ियाँ यहाँ आकर मिलती हैं, अतः यहां पर मौली बांधने से व्यक्ति स्वस्थ रहता है। इसे बांधने से बीमारी अधिक नहीं बढती है। ब्लड-प्रेशर, हार्ट एटेक, डायबीटिज और लकवा जैसे रोगों से बचाव के लिये मौली बांधना हितकर बताया गया है। शास्त्रों का ऐसा भी मत है कि मौली बांधने से त्रिदेव : ब्रह्मा, विष्णु व महेश तथा तीनों देवियों- लक्ष्मी, पार्वती व सरस्वती की कृपा प्राप्त होती है। ब्रह्मा की कृपा से "कीर्ति", विष्णु की अनुकंपा से "रक्षा बल" मिलता है तथा शिव "दुर्गुणों" का विनाश करते हैं। इसी प्रकार लक्ष्मी से "धन", दुर्गा से "शक्ति" एवं सरस्वती की कृपा से "बुद्धि" प्राप्त होती है। मौली शत प्रतिशत कच्चे धागे (सूत) की ही होनी चाहिये। पुरुषों तथा अविवाहित कन्याओं के दाएं हाथ में तथा विवाहित महिलाओं के बाएं हाथ में मौली को बांधा जाता है। जिस हाथ में कलावा या मौली बांधें उसकी मुट्ठी बंधी हुयी हो एवं दूसरा हाथ सिर पर हो। इस पुण्य कार्य के लिए व्रतशील बनकर उत्तरदायित्व स्वीकार करने का भाव रखा जाए। संकटों के समय भी यह रक्षासूत्र हमारी रक्षा करता है,ऐसा माना जाता है। वाहन, कलम, बही खाते, फैक्ट्री के मेन गेट, चाबी के छल्ले, तिजोरी पर पवित्र मौली बांधने से लाभ होता है, महिलाएं मटकी, कलश, कंडा, अलमारी, चाबी के छल्ले, पूजा घर में मौली बांधें या रखें। मोली से बनी सजावट की वस्तुएं घर में रखेंगी तो नई खुशियां आती हैं। नौकरी-पेशा लोग कार्य करने की टेबल एवं दराज में पवित्र मौली रखें या हाथ में मौली बांधेंगे तो लाभ प्राप्ति की संभावना बढ़ती है।


 



 

डॉ० शिबन कृष्ण रैणा

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