वाराणसी : बाबा विश्वनाथ का प्रसाद मिला तो मै भी चौका : रामनाथ कोविंद - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शनिवार, 21 सितंबर 2024

वाराणसी : बाबा विश्वनाथ का प्रसाद मिला तो मै भी चौका : रामनाथ कोविंद

  • गोमूत्र या उसके दूध से बने उत्पाद न सिर्फ हमारे परिवारों के पोषण का स्रोत है, बल्कि औषधीय भी है
  • कहा, तीर्थस्थलों के प्रसाद पर मिलावट सबसे बड़ा महापाप, सभी मंदिरों में हो जांच

Kovind-varanasi
वाराणसी (सुरेश गांधी)। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने तिरुमला तिरुपति के प्रसाद में मिलावट को लेकर गंभीर चिंता जताई है। दो दिवसीय दौरे पर वाराणसी पहुंचे रामनाथ कोविंद ने कहा कि शुक्रवार की देर रात जब मुझे बाबा विश्वनाथ का प्रसाद मिला, तो मेरे मन में भी तिरुपति में प्रसाद की महा मिलावट की घटना एकबारगी याद आई। हालांकि मैं बाबा विश्वनाथ दरबार नहीं पहुंच सका, लेकिन कान पर पकड़कर माफी मांगी कि इस बार उनका दर्शन नहीं कर पाया लेकिन अगली बार जरुर करूंगा। यह बातें दौरे के दुसरे दिन शनिवार को काशी हिंदू विश्वविद्यालय के शताब्दी कृषि विज्ञान प्रेक्षागृह में 21-22 सितंबर को ‘भारतीय गाय, जैविक कृषि एवं पंचगव्य चिकित्सा’ पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र के दौरान कहीं।


पूर्व राष्ट्रपति ने कहा कि मै ही नहीं आपके मन भी सवाल उठना लाजिमी है। क्योंकि तिरुपति प्रसादम का मामला बहुत ही चिंताजनक है। मैं प्रसादम के पॉलिटिकल एंगल पर नहीं जा रहा हूं। लेकिन मैं कहना चाहता हूं कि प्रसाद के प्रति हिंदुओं में जो श्रद्धा होती है। उसमें शंका उत्पन्न होती है। अफसोस है तीर्थस्थल भी मिलावट से नहीं बच पा रहे है। ऐसे में सभी बड़े धार्मिक स्थलों के मंदिरों के प्रसाद की जांच होना जरुरी है, क्योंकि इसमें लाखों करोड़ों लोगों की आस्था है। उन्होंने इस बयान को गैर राजनीतिक बताते हुए कहा कि कल रात मेरे कुछ सहयोगी बाबा विश्वनाथ धाम गए थे। रात में मुझे बाबा का प्रसादम दिया तो मेरे मन में तिरुमाला की घटना याद आई और मेरे मन में शंका हई। लेकिन, बाबा विश्वनाथ के प्रसादम में हर किसी का अटूट भरोसा और श्रद्धा है। पूर्व राष्ट्रपति ने कहा कि इसमें कितना क्या है, उस पर जाना नहीं चाहता, लेकिन ये देश के हर मंदिर की कहानी हो सकती है। हर तीर्थ स्थल में ऐसी घटिया मिलावट हो सकती है। हिंदू धर्म के अनुसार ये बहुत बड़ा पाप है। इसकी ढंग से जांच हो। उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार भी जैविक खेती पर बहुत अधिक प्रोत्साहन दे रही है। परिणाम यह है कि लाखों किसान सफलतापूर्वक खेती कर रहे है। गोमूत्र या उसके दूध से बने उत्पाद हमारे परिवारों के लिए पोषण का स्रोत है। गोमूत्र का औषधीय उपयोग के साथ साथ उसके गोबर से बने उत्पाद स्वच्छता का भी प्रतीक है। उन्होंने किसानो का आह्वान करते हुए कहा कि कुछ किसान खुद के लिए जैविक खेती तो करते है, लेकिन आर्थिक लाभ या यूं कहे अधिक उत्पादन के लिए रासायनिक उर्वरकों पर निर्भर होते है, लेकिन यह देशहित में नहीं है। हमें सर्व समाज के लिए जैविक खेती को हरहाल में अपनाना होगा। उन्होंने किसानो को एक अतिरिक्त सुझाव देते हुए गुजरात के कुरुक्षेत्र के आचार्य नरेन्द्रदेव की चर्चा करते हुए कहा कि एक बार उनके द्वारा किए जा रहे जैविक खेती का भी अध्ययन करना चाहिए।


संगोष्ठी शुभांरंभ पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने महामना एवं धनवंतरी जी के प्रतिमा पर माल्यार्पण व दीप प्रज्वलन कर किया। इस दौरान पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने संगीत और मंच कला संकाय की छात्रों से कुलगीत सुना। इसके बाद आईएमएस के डायरेक्टर प्रो. एसएन संखवार आदि ने मंच पर बैठे अतिथियों का स्वागत पुष्प गुच्छ देकर किया गया। संगोष्ठी में पूर्व राष्ट्रपति ने गुजरात के देसी नस्ल की गायों के संरक्षण और संवर्धन पर विस्तार से चर्चा की। इस दौरान उन्होंने गौ सेवा विज्ञान अनुसंधान केंद्र, भारतीय गोवंश रक्षण संवर्धन परिषद के अध्यक्ष सुनील मानसिंहका द्वारा इस तरह के आयोजनों के लिए धन्यवाद देते हुए कहा कि गोसेवा बड़ा कोई दूसरी सेवा नहीं हो कसती। आयुर्वेद संकाय के काय चिकित्सा विभाग एवं गो विज्ञान अनुसंधान केंद्र देवलापुर, नागपुर के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित संगोष्ठी में उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, दिल्ली, महाराष्ट्र, राजस्थान, कर्नाटक, केरल, असम, पश्चिम बंगाल, हिमाचल प्रदेश आदि से लगभग 300 प्रतिभागी शोध पत्र प्रस्तुत किया। दो दिनों में देश-विदेश के वैज्ञानिक, शोध अध्येता समेत 500 से अधिक लोग जुटेंगे। नेपाल के विशेषज्ञ भी शामिल हुए हैं। संगोष्ठी का उद्देश्य देसी गाय, गोपालन एवं पंचगव्य चिकित्सा के जरिये जनमानस को होने वाली बीमारियों जैसे कैंसर, मधुमेह, अवसाद, रक्तचाप, एलर्जी आदि के उपचार के साथ जैविक खेती पर चर्चा करना था। पश्चिमी नस्ल की गायों जैसे जर्सी, होल्स्टीन और फ्राइजियन से प्राप्त दूध से कई स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं। भारतीय नस्ल की गायों गंगातीरी, साहीवाल, गिर, लाल सिंधी आदि से प्राप्त दूध ए-2 मिल्क की श्रेणी में आता है।


पंचगव्य मानव जाति के लिए एक अनमोल उपहार है : प्रो. ओपी सिंह

गाय के दूध में स्वर्ण भस्म पाया जाता है। इसलिए इस दूध में हल्का पीलापन रहता है। ये रिसर्च भी हो चुकी है। इसका इस्तेमाल हर रोग में रामबाण जैसा काम करेगा। ये बातें बीएचयू के कृषि शताब्दी सभागार में शनिवार को शुरू हुए भारतीय गाय जैविक कृषि एवं पंचगवी चिकित्सा कार्यक्रम में एक्सपर्ट प्रो. ओपी सिंह ने कहीं। उन्होंने ने कहा कि दुनिया में आयुर्वेद की शुरुआत काशी से होती है। पूर्व राष्ट्रपति का गाय और चिकित्सा से बहुत लगाव रहा है। आजकल लाइफ स्टाइल की डिस ऑर्डर काफी बढ़ गया है। इसलिए अब हमें अपनी पुरानी इलाज पद्धति पर आना होगा। गाय की घी का पान हर व्यक्ति को करना चाहिए। देसी गाय के बिलौना घी का 10 से 20 ग्राम इस्तेमाल करना चाहिए। देसी गाय के मूत्र का पी एच 9 होता है। इसके पीने से कई रोग दूर होंगे। उन्होंनपे कहा कि जैविक किसानों की संख्या के मामले में भारत पहले स्थान पर है। पंचगव्य मानव जाति के लिए एक अनमोल उपहार है। पंचगव्य स्वास्थ्य लाभ और औषधीय गुणों का खजाना है। आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में गाय के दूध, घी, मूत्र, गोबर और दही के उपयोग का महत्व बताया गया है, जिनमें से प्रत्येक को विभिन्न रोगों के उपचार के लिए ’गव्य’ (यान ’गौ’ यानी गाय से प्राप्त) कहा जाता है। प्रत्येक उत्पाद में मानव स्वास्थ्य, कृषि और अन्य उद्देश्यों के लिए अलग-अलग घटक और उपयोग होते हैं।

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