आश्विन मास के कृष्णपक्ष पितरों का होता है. इस मास की अमावस्या को पितृ विसर्जन अमावस्या कहा जाता है. इस दिन धरती पर आए हुए पितरों को याद करके उनकी विदाई की जाती है. अगर पूरे पितृ पक्ष में अपने पितरों को याद न किया गया हो तो केवल अमावस्या को उन्हें याद करके दान करने व निर्धनों को भोजन कराने से पितरों को शान्ति मिलती है. इस दिन दान करने का फल अमोघ होता है। साथ ही इस दिन राहु से संबंधित तमाम बाधाओं से मुक्ति पाई जा सकती है. इस बार की पितृ विसर्जन अमावस्या और भी ज्यादा फलदायी है। कहते है अगर पितृ गण प्रसन्न अवस्था में विदा होते हैं तो वंशजों के जीवन में अथाह सुख और संपन्नता देकर जाते हैं. खासतौर पर इस बार पितृ विसर्जन अमावस्या पर तो सदियों बाद एक महासंयोग बना है. जिसका लाभ आपको जरूर मिलेगा. लेकिन अगर आपने अपने पितरों की तृप्ति के उचित उपाय विधि विधान से नहीं किए तो आशीर्वाद मिलना तो दूर जीवन में कष्ट ही कष्ट शुरु हो जायेंगे
गरुड़ पुराण के अनुसार, अगर कोई व्यक्ति किसी कारणवश अपने पितरों को पितृ पक्ष के दौरान तर्पण करना भूल जाता है, तो सर्वपित अमावस्या के दिन जलांजलि कर सकता है. इस दिन दान करने से अमोघ फल प्राप्त होता, हर बड़ी परेशानी का अंत हो जाता है. ये पितरों को मनाने का आखिरी मौका है, इस दिन श्राद्ध कर्म करने से पूर्वजों को सालभर तक संतुष्टी रहती है. धार्मिक मान्यता है कि पितरों की पूजा करने से व्यक्ति को सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है. हिंदू पंचांग के अनुसार, आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को पितृ विसर्जनी अमावस्या कहा जाता है. इस दिन श्राद्ध पक्ष का समापन होता है और पितृ लोक से आए हुए पितृजन अपने लोक लौट जाते हैं. जाते समय अपने पुत्र, पौत्रों और परिवार को आशीर्वाद देकर जाते हैं. इस दिन सभी ज्ञात-अज्ञात पितरों का श्राद्ध किया जाता है। मान्यता है कि इस दिन उन सभी पितरों का श्राद्ध किया जा सकता है, जिनकी तिथि भूल चुके हैं। इस दिन ब्राह्मण भोजन तथा दान आदि से पितृजन तृप्त होते हैं. इस दिन शाम को दीपक जलाकर पूड़ी पकवान आदि खाद्य पदार्थ दरवाजे पर रखे जाते हैं। जिसका अर्थ है कि पितृ जाते समय भूखे न रह जाएं। इसी तरह दीपक जलाने का आशय उनके मार्ग को आलोकित करना है। पितृ विसर्जन अमावस्या का श्राद्ध पर्व किसी नदी, या सरोवर के तट पर या निजी आवास में भी हो सकता है। अमावस्या को प्रातः काल स्नान आदि के बाद जल में लाल पुष्प और लाल चंदन मिलाकर सूर्य को अर्पित करें. तत्पश्चात आटे की गोलियां बनाकर मछलियों को खिलाएं. पितृ विसर्जनी अमावस्या को शक्कर मिला हुआ आटा चीटियों को खिलाएं. मान्यता है कि ऐसा करने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. मीठा चावल बनाकर पास के किसी मंदिर पर जाएं. वहां गरीब लोगों को खिलाएं. इस दिन ब्रह्मणों को भोजन कराएं, इसके बाद उन्हें दक्षिणा देकर सम्मान के साथ विदा करें. सर्व पितृ अमावस्या के दिन घर पर एक नींबू रखें. उसके बाद शाम को सूर्यास्त के समय इस नींबू को अपने ऊपर से 4 बार उबारकर इसे 4 टुकड़ों में काट लें और चौराहे पर रख दें. इस दिन चांदी के नाग-नागिन लायें. उसकी पूजा करें. अब इस माथे पर लगाकर बहते जल में प्रवाहित कर दें. इससे कुंडली से काल सर्पदोष दूर हो जायेंगे.
शुभ महूर्त
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार समय-समय पर कुछ खास योग का निर्माण होते रहता है. कुछ योग ऐसे भी होते हैं, जिनसे जातकों को विशेष लाभ की प्राप्ति होती है. इस साल पितृ विसर्जन अमावस्या पर ऐसा ही एक खास योग गजच्छाया योग का निर्माण हो रहा है. ज्योतिष शास्त्र में इस योग को बहुत ही महत्वपूर्ण और जातकों की उन्नति के लिए शुभ बताया जा रहा है. गजच्छाया योग करीब 9 साल पहले आया था और उससे पहले यह योग करीब 38 साल पहले 1977 में बना था. शास्त्रों के अनुसार इस योग में पितरों के निमित्त कार्य करने का कई गुना फल प्राप्त होता है. इस दिन पितरों का श्राद्ध कर्म, उनका पिंडदान, गंगा स्नान, हवन यज्ञ आदि करने पर उसका कई गुना फल प्राप्त होगा. इससे पितृ प्रसन्न होकर अपने लोक लौट जाएंगे और अपने वंशजों पर सदैव कृपा बनाए रखेंगे. इस योग में जो भी धार्मिक कार्य अपने पितरों के निमित्त किया जाएगा, उससे पितृ प्रसन्न होकर वंश वृद्धि, सुख वैभव, खुशहाली का आशीर्वाद देंगे क्योंकि शास्त्रों में गजच्छाया योग का विशेष महत्व बताया गया है. अश्विन माह की अमावस्या तिथि 1 अक्टूबर को रात 09.39 मिनट पर शुरू होगी। इसका समापन 3 अक्टूबर को रात 12.18 मिनट पर होगा। सर्व पितृ अमावस्या 2 अक्टूबर को मनाई जाएगी। कुतुप मुहूर्त सुबह 11.46 मिनट से दोपहर 12.33 मिनट तक रहेगा। रोहिणी मुहूर्त दोपहर 12.33 मिनट से 1.20 मिनट तक। वहीं, अपराह््र काल दोपहर 1.20 मिनट से 3.42 मिनट तक है।
कर्म-कांड
- इस दिन नदी, जलाशय या कुंड आदि में स्नान करें और सूर्य देव को अर्घ्य देने के बाद पितरों के निमित्त तर्पण करें.
- इस दिन संध्या के समय दीपक जलाएं. पूड़ी व अन्य मिष्ठान दरवाजे पर रखें. ऐसा इसलिए करना चाहिए, ताकि पितृगण भूखे न जाएं और दीपक की रोशनी में पितरों को जाने का रास्ता दिखाएं.
- यदि किसी वजह से आपको अपने पितरों के श्राद्ध की तिथि याद न हो तो, इस दिन उनका श्राद्ध किया जा सकता है.
- इसके अलावा यदि आप पूरे श्राद्ध पक्ष में पितरों का तर्पण नहीं कर पाए हैं तो इस दिन पितरों का तर्पण कर सकते हैं.
- इस दिन भूले-भटके पितरों के नाम से किसी जरूरतमंद व्यक्ति या ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए.
व्यापार के लिए-
अमावस्या को किसी पीपल के वृक्ष की पूजा करें तथा पेड़ को जनेऊ व अन्य पूजन सामग्री अर्पित करें. इसके बाद भगवान विष्णु के मंत्र ॐ नमो भगवते वासुदेवाय का जाप करें. इससे श्रीहरि और मां महालक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है और घर की सभी परेशानियां दूर होकर धन, सुख-संपत्ति आनी आरंभ हो जाती है.
धन प्राप्ति के लिए-
सर्वपितृ अमावस्या के लिए पितरों के निमित्त खीर बनाएं. उस खीर में से थोड़ा सा भाग लेकर किसी चांदी के बर्तन, कटोरी आदि में रखें. कुछ देर पश्चात् चांदी के बर्तन वाली खीर पूरी खीर में मिलाकर 21 कन्याओं और सात बालकों को खिलाएं. ऐसा करने से धन संबंधी परेशानी दूर होने लगती है.
शत्रु पर विजय के लिए-
यदि आपको भी कोई परेशान कर रहा है या आप मुकदमा आदि नहीं जीत पा रहे हैं तो सर्वपितृ अमावस्या के दिन एक नारियल पर सिंदूर से स्वस्तिक बनाकर उसे हनुमान मंदिर में अर्पित करें और शत्रुओं से संबंधित अपनी परेशानियां खत्म करने का आग्रह हनुमानजी से करें.
पितृदोष से मुक्ति के उपाय
जीवन में एक साथ कई सारे दुखों का आना और लंबे समय तक बने रहना पितृ दोष का संकेत हो सकता है. ऐसे में अगर कई कोशिशों के बाद भी राहत नहीं मिल रही है तो ज्योतिष की सलाह लेनी चाहिए. सर्व पितृ अमावस्या की शाम को एक पीतल के दीपक में सरसों का तेल डालकर दक्षिण दिशा की तरफ रखें. संभव हो तो कोशिश करें कि ये दीपक अमावस्या की पूरी रात जलता रहे. इससे कुंडली में पितृ दोष के प्रभाव कम होते हैं. पितृ दोष हटाने के ये सबसे सरल उपायों में से एक है. पितृ विसर्जन की शाम को गजेंद्र मोक्ष का पाठ करना चाहिए. इस पाठ को करते समय एक दीपक जला लें और दक्षिण दिशा की ओर मुख करके इसका पाठ करें. पाठ पूरा होने के बाद भगवान विष्णु का स्मरण करें. इतना ही नहीं, घर के पितर और भगवान विष्णु से प्रार्थना करें कि घर से पितृ दोष को दूर करें. इसके बाद पितरों को जलेबी का भोग लगाएं.
भूल-चूक की भरपाई के लिए करें श्राद्ध
सर्व पितृ अमावस्या के दिन भोजन बनाकर पितरों के निमित्त एक पत्तल में रखें. इस भोजन को किसी वृद्ध को खिला दें. अगर वृद्ध को न खिला पाएं तो बबूल या पीपल के पेड़ की जड़ में उस भोजन को रख दें. पेड़ की जड़ में भोजन रखते समय ये प्रार्थना करें कि हे पितृ देव आप यह भोजन खाकर तृप्त हो जाएं और घर से पितृ दोष को दूर करें. ये उपाय करने के बाद पीछे मुड़कर न देखें और वापस अपने घर को आ जाएं.नियमित रूप से गाय को आटे की लोइयां बनाकर खिलाएं और उनकी सेवा करें। पशु-पक्षियों के लिए दाना-पानी का बंदोबस्त करें और वृद्ध आश्रम जाकर बुजुर्गों की सेवा करें।
सुरेश गांधी
वरिष्ठ पत्रकार
वाराणसी
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