कविता : अंजान बचपन - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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बुधवार, 16 अक्तूबर 2024

कविता : अंजान बचपन

छोटी सी मीना घर में सबकी जान थी,

सारा दिन चहकती रहती, हर दुख से अंजान थी,

खेलने जाती बच्चों संग निराली उसकी शान थी,

एक दिन खेल रही थी अकेले घर के दालान में,

पड़ोस का भईया आया और उससे बोला,

आज एक नया खेल खेलने जाएंगे खेत खलियान में,

नया खेल सोचकर मीना ख़ुशी ख़ुशी चल दी खलियान में,

नए खेल का बोलकर उसने, मीना को गलत तरीके से छुआ,

पर मासूम मीना को पता नहीं चला, वह इससे अंजान थी,

क्यूंकी उसके परिवार और स्कूल वालों ने,

नहीं दिया था उसे इन बातों का ज्ञान कभी,

जब वह थोड़ी बड़ी हुई, तो उसे एहसास हुआ,

उस दिन भईया ने कैसे मुझे गलत तरीके से छुआ था,

घर में बताने की कोशिश भी करती, तो कौन यकीन करता,

अब चुप रहती, किसी से कुछ न कहती, 

बस रहने लगी उदास और परेशान भी,

आओ मिलकर सभी को बताएं, गुड टच और बैड टच,

ताकि अब हर मीना हो जाए सजग और समझे यह ज्ञान भी।।




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सविता देवी

कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश

चरखा फीचर्स

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