कविता : नारी को न समझ बेकार - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

शनिवार, 19 अक्तूबर 2024

कविता : नारी को न समझ बेकार

लगा लाख जंजीरे तू,

मैं कहां उनमें उलझूंगी,

हसरतें तेरी अधूरी रहेगी,

देख फिर से मैं सुलगूंगी,

दरिया समझ लिया है तूने,

मैं सागर सी बह जाउंगी,

इस सीमा से उस सीमा तक,

ज़माने में फिर लहरा उठूंगी,

तू भेद करेगा नर-नारी का,

मैं ज्वाला सी दहकूँगी,

तू चल समय के अनुकूल मगर,

शिखरों पर मैं ही दिखूंगी,

उस दिन होंगे अल्फ़ाज़ तेरे,

मगर बातों मैं ही महकूंगी,

तेरी नज़र होगी ज़मीन पर,

और आसमान में मैं झलकूँगी,

उस दिन मैं ज़माने से कहूँगी,

नारी हूं ना कि कोई व्यापार,

न समझ तू नारी को बेकार,

मुझ में बुराई देख ना तू,

मैं हूँ खुशियों का भंडार॥




Renu-charkha-feature


रेनू

गरुड़, उत्तराखंड

चरखा फीचर्स

कोई टिप्पणी नहीं: