कविता : लड़कियां कहां सुरक्षित हैं? - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 20 अक्तूबर 2024

कविता : लड़कियां कहां सुरक्षित हैं?

सब कुछ अच्छा चल रहा था,

जब तक वो हाथ मेरे ऊपर ना आया था,

यूं तो छोटी बच्ची थी मैं तब,

हुआ हादसा था ये जब,

एक अनजान हाथ मेरी तरफ़ आया,

ना जाने क्यों वो स्पर्श मुझे ना भाया,

समझ कर गलती भूल गई मैं,

क्योंकि तब नन्ही सी परी थी मैं,

जब उस गलती को बार बार दोहराया,

तब कुछ समझ में मेरे आया,

लड़ पाती उससे इतनी हिम्मत कहां थी,

कह पाती किसी को, साहस कहां थी,

रोती पूरी रात और ख़ुद को यू समझाती थी,

सारी गलती खुद की मानकर और,

फिर ख़ुद को ही दोषी ठहराती थी,

डर इतना था कि उसके ख़िलाफ़ कुछ न कह पाती थी,

उसकी गंदी नीयत की आग में जलती रहती थी,

यूं तो कहती दुनिया देर रात लड़कियां बाहर न जाना,

छोटे कपड़े पहन कर खुद को ना इतराना,

मगर मैं क्या बताती और क्या समझाती किसी को,

तुम बाहर निकलने से उन्हें रोकते हो मगर,

लड़कियां तो अपने घर में भी सुरक्षित नहीं॥




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दिया डसिला

अनगडी, उत्तराखंड

चरखा फीचर्स

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