एक बंधन में बंधे थे हम,
ये भी अक्सर सोचते थे हम,
जो करना चाहते थे हम,
वो ना कर पाते थे हम,
कुछ भी सीखने पर,
लगती है पाबंदी हम पर,
हमारे सपनों को पूरा करने में,
ये पाबंदी अक्सर आड़े आती है,
इसका आना मुझे ना भाता है,
भाता ना था किसी का बोलना मुझको,
कैसे इन्हें मैं चुप करा पाती?
ये न समझ में आता है मुझको,
आज भी मैं वही हूँ खड़ी,
जहां छोड़ा था मुझे कभी॥
पूजा बिष्ट
कक्षा-8
कपकोट, उत्तराखंड
चरखा फीचर्स
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