श्रीराम के वंशज महाराजा अग्रसेन की जयंती अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि यानि शारदीय नवरात्रि के पहले दिन मनाई जाती है. इस साल महाराजा अग्रसेन जी की जयंती 3 अक्टूबर को है। महाराज अग्रसेन, अग्रवाल अर्थात वैश्य समाज के जनक कहे जाते हैं. इन्होंने व्यापारियों के राज्य की स्थापना की थी। यही वजह है कि अग्रसेन जी के जन्मोत्सव पर व्यापारी क्षेत्र से जुड़े लोग विधि विधान से उनकी पूजा करते हैं. कहते हैं मां लक्ष्मी ने राजा अग्रसेन को स्वप्न में आकर वैश्य समाज की स्थापना के लिए कहा था. राजा अग्रसेन ने वैश्य जाति का जन्म तो कर दिया, लेकिन इसे व्यवस्थित करने के लिए 18 यज्ञ हुए और उनके आधार पर गौत्र बनाये गए. अग्रसेन महाराज के 18 पुत्रों ने यज्ञ का संकल्प लिया. जिन्हें 18 ऋषियों ने पूरा करवाया. इन ऋषियों के आधार पर गौत्र की उत्त्पत्ति हुई, जिसने भव्य 18 गोत्र वाले अग्रवाल समाज का निर्माण किया गया
महाराज अग्रसेन ने नाग लोक के राजा कुमद के यहां आयोजित स्वंयवर में राजकुमारी माधवी का वरण किया। इस विवाह से नाग एवं आर्य कुल का नया गठबंधन हुआ। महाराजा अग्रसेन समाजवाद के प्रर्वतक, युग पुरुष, राम राज्य के समर्थक एवं महादानी थे। माता लक्ष्मी की कृपा से श्री अग्रसेन के 18 पुत्र हुए। राजकुमार विभु उनमें सबसे बड़े थे। महर्षि गर्ग ने महाराजा अग्रसेन को 18 पुत्र के साथ 18 यज्ञ करने का संकल्प करवाया। माना जाता है कि यज्ञों में बैठे 18 गुरुओं के नाम पर ही अग्रवंश की स्थापना हुई। ऋषियों द्वारा प्रदत्त अठारह गोत्रों को महाराजा अग्रसेन के 18 पुत्रों के साथ उनके द्वारा बसाई 18 बस्तियों के निवासियों ने भी धारण कर लिया। अग्रवास समाज के 18 गौत्र है, जिनमें बंसल, बिंदल, धारण, गर्ग, गोयल, गोयन, जिंदल, कंसल, कुच्छल, मंगल, मित्तल, नागल, सिंघल, तायल, तिंगल प्रमुख है। महाराजा अग्रसेन को समाजवाद का अग्रदूत कहा जाता है। अपने क्षेत्र में सच्चे समाजवाद की स्थापना हेतु उन्होंने नियम बनाया था कि उनके नगर में बाहर से आकर बसने वाले प्रत्येक परिवार की सहायता के लिए नगर का प्रत्येक परिवार उसे एक सिक्का व एक ईंट देगा। जिससे आने वाला परिवार स्वयं के लिए मकान व व्यापार का प्रबंध कर सके।
महाराजा अग्रसेन ने शासन प्रणाली में एक नई व्यवस्था को जन्म दिया था। उन्होंने वैदिक सनातन आर्य सस्कृंति की मूल मान्यताओं को लागू कर राज्य में कृषि-व्यापार, उद्योग, गौपालन के विकास के साथ-साथ नैतिक मूल्यों की स्थापना की थी। कहते है एक बस्ती के साथ प्रेम भाव बनाए रखने के लिए एक सर्वसम्मत निर्णय हुआ कि अपने पुत्र और पुत्री का विवाह अपनी बस्ती में नहीं दूसरी बस्ती में करेंगे। आगे चलकर यह व्यवस्था गोत्रों में बदल गई जो आज भी अग्रवाल समाज में प्रचलित है। महाराजा अग्रसेन के जन्म के समय गर्ग ऋषि ने महाराज वल्लभ से कहा था कि यह बालक बहुत बड़ा राजा बनेगा। इस के राज्य में एक नई शासन व्यवस्था उदय होगी और हजारों वर्ष बाद भी इनका नाम अमर होगा। उनके राज में कोई दुखी या लाचार नहीं था। बचपन से ही वे अपनी प्रजा में बहुत लोकप्रिय थे। वे एक धार्मिक, शांति दूत, प्रजा वत्सल, हिंसा विरोधी, बली प्रथा को बंद करवाने वाले, करुणानिधि, सब जीवों से प्रेम, स्नेह रखने वाले दयालू राजा थे। महाराजा वल्लभ के निधन के बाद अपने नए राज्य की स्थापना के लिए महाराज अग्रसेन ने अपनी रानी माधवी के साथ सारे भारतवर्ष का भ्रमण किया। इसी दौरान उन्हें एक जगह शेर तथा भेडिए के बच्चे एक साथ खेलते मिले। उन्हें लगा कि यह दैवीय संदेश है जो इस वीरभूमि पर उन्हें राज्य स्थापित करने का संकेत दे रहा है। ऋषि मुनियों और ज्योतिषियों की सलाह पर नए राज्य का नाम अग्रेयगण रखा गया जिसे अग्रोहा नाम से जाना जाता है। वह जगह आज के हरियाणा के हिसार के पास है। आज भी यह स्थान अग्रहरि और अग्रवाल समाज के लिए तीर्थ के समान है। यहां महाराज अग्रसेन और मां लक्ष्मी देवी का भव्य मंदिर है। अग्रसेन अपने छोटे भाई शूरसेन को प्रतापनगर का राजपाट सौंप दिया। महाराजा अग्रसेन अग्रवाल जाति के पितामह थे। उन्होंने परिश्रम और उद्योग से धनोपार्जन के साथ-साथ उसका समान वितरण और आय से कम खर्च करने पर बल दिया। जहां एक ओर वैश्य जाति को व्यवसाय का प्रतीक तराजू प्रदान किया वहीं दूसरी ओर आत्म-रक्षा के लिए शस्त्रों के उपयोग की शिक्षा पर भी बल दिया। उस समय यज्ञ करना समृद्धि, वैभव और खुशहाली की निशानी माना जाता था। महाराज अग्रसेन ने बहुत सारे यज्ञ किए। एक बार यज्ञ में बली के लिए लाए गए घोड़े को बहुत बैचैन और डरा हुआ देख उन्हें विचार आया कि ऐसी समृद्धि का क्या फायदा जो मूक पशुओं के खून से सराबोर हो। उसी समय उन्होंने पशु बली पर रोक लगा दी। इसीलिए आज भी अग्रवंश समाज हिंसा से दूर रहता है।
महाराज अग्रसेन ने एक ओर हिंदू धर्म ग्रंथों में वैश्य वर्ण के लिए निर्देशित कर्म क्षेत्र को स्वीकार किया और नए आदर्श स्थापित किए। उनके जीवन के मूल रूप से तीन आदर्श हैं- लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था, आर्थिक समरूपता एवं सामाजिक समानता। एक निश्चित आयु प्राप्त करने के बाद कुलदेवी महालक्ष्मी से परामर्श पर वे आग्रेय गणराज्य का शासन अपने ज्येष्ठ पुत्र विभु के हाथों में सौंपकर तपस्या करने चले गए। कहते हैं कि एक बार अग्रोहा में बड़ी भीषण आग लगी। उस पर किसी भी तरह काबू ना पाया जा सका। उस अग्निकांड से हजारों लोग बेघर हो गए और जीविका की तलाश में भारत के विभिन्न प्रदेशों में जा बसे। पर उन्होंने अपनी पहचान नहीं छोड़ी। वे सब आज भी अग्रवाल ही कहलवाना पसंद करते हैं और उसी 18 गोत्रों से अपनी पहचान बनाए हुए हैं। आज भी वे सब महाराज अग्रसेन द्वारा निर्देशित मार्ग का अनुसरण कर समाज की सेवा में लगे हुए हैं। बचपन में ही शास्त्रों, अस्त्र-शास्त्र, राजनीति और अर्थनीति के ज्ञान ने इन्हें सुसंस्कारित बना दिया, जिससे इन्होंने संगठन कौशल और वीर योद्धा के रूप में ख्याति अर्जित करनी शुरू कर दी। 15 वर्ष की आयु में इन्होंने पांडवों के पक्ष से महाभारत का भी युद्ध लड़ा था।
यौवन की दहलीज पर पांव रखते ही पिता के आदेश पर नागलोक के महाराज कुमुद की पुत्री राजकुमारी माधवी के स्वयंवर में पहुंचे, तो राजकुमारी ने इनकी सुंदरता और तेज से प्रभावित होकर इनके गले में वरमाला डाल इन्हें अपना पति बना लिया। यह दो अलग-अलग संप्रदायों, जातियों और संस्कृतियों का मेल था। इस शादी से स्वर्ग के राजा इंद्र नाराज हो गए और इनके राज्य में बारिश बंद कर दी परन्तु तप द्वारा प्राप्त दिव्य अस्त्रों से इन्होंने वर्षा करवा दी, जिससे इंद्र और अधिक चिढ़ गए और इन्हें तंग करने लगे। तब अग्रसेन जी ने भगवान शंकर और मां लक्ष्मी का कठोर तप कर वरदान प्राप्त किया। उन्होंने एक नए राज्य आग्रेंयण की स्थापना कर चारों ओर फैले अंधकार में समाजवाद और आदर्श लोकतंत्र की मिसाल कायम की। अग्रसेन जी ने अपने राज्य में बाहर से आकर बसने वालों या गरीब परिवारों की सहायता के लिए एक सोने की मुद्रा और एक ईंट देने की सामाजिक समरसता और विश्व बंधुत्व की ऐसी पद्धति शुरू की, जो विश्व में मिसाल बन गई। 108 वर्ष सफलतापूर्वक शासन करने के बाद मां लक्ष्मी जी के ही आदेश से अपने राज्य की बागडोर बड़े बेटे विभु को थमा कर वानप्रस्थ चले गए। महाराजा अग्रसेन जी के वंशज आज अग्रवाल के नाम से पूरे विश्व में जाने जाते हैं। इस समाज की कई विभूतियों ने अपने कार्यों से अग्रवाल समाज और देश का नाम पूरी दुनिया में रोशन किया जिनमें महान स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपत राय, डा. राम मनोहर लोहिया, सर गंगा राम, मैथिली शरण गुप्त, भारतेंदु हरीशचंद्र और सेठ जमना दास आदि प्रमुख हैं।
24 सितंबर 1976 में भारत सरकार द्वारा 25 पैसे का डाक टिकट महाराजा अग्रसेन के नाम पर जारी किया गया था। सन् 1995 में भारत सरकार ने दक्षिण कोरिया से 350 करोड़ रूपये में एक विशेष तेल वाहक पोत (जहाज) खरीदा, जिसका नाम महाराजा अग्रसेन रखा गया। राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 10 का आधिकारिक नाम महाराजा अग्रसेन पर है। आज का अग्रोहा ही प्राचीन ग्रंथों में वर्णित अग्रवालों का उद्गम स्थान आग्रेय है। अग्रोहा हिसार से 20 किलोमीटर दूर महाराजा अग्रसेन राष्ट्र मार्ग संख्या 10 के किनारे एक साधारण गांव के रूप में स्थित है। जहां पांच सौ परिवारों की आबादी रहती है। इसके समीप ही प्राचीन राजधानी अग्रेह (अग्रोहा) के अवशेष के रूप में 650 एकड भूमि में फैला महाराजा अग्रसेन धाम हैं। जो महाराज अग्रसेन के अग्रोहा नगर के गौरव पूर्ण इतिहास को दर्शाता है। आज भी यह स्थान अग्रवाल समाज में पांचवे धाम के रूप में पूजा जाता है। देश में जगह-जगह महाराजा अग्रसेन के नाम पर बनाए गए स्कूल, अस्पताल, बावड़ी, धर्मशालाएं आदि महाराजा अग्रसेन के जीवन मूल्यों का आधार हैं। जो मानव आस्था के प्रतीक हैं।
सुरेश गांधी
वरिष्ठ पत्रकार
वाराणसी
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