सीहोर। पंचांगों की परंपरा अत्यंत प्राचीन है। साधनों के अभाव में हजारों सालों से पंचांग का निर्माण हो रहा है। आज पंचांगों को लेकर तमाम आक्षेप लगाए जा रहे हैं जबकि हकीकत यह है कि यदि पंचांग नहीं होते तो आज धर्म भी नहीं बचा होता। पंचांग के बदौलत ही हम आज भी धर्म, पर्व के बारे में बता पाते हैं। दीपावली पर्व को लेकर मंगलवार को जिला संस्कार मंच और शिव प्रदोष सेवा समिति सहित अन्य विप्रजनों ने एक मत होकर दीपावली 31 अक्टूबर को मनाए जाने के लिए अभियान चलाया है। इस अभियान को लेकर सैकडों की संख्या में क्षेत्रवासियों का समर्थन मिल रहा है। इस संबंध में जानकारी देते हुए शिव प्रदोष सेवा समिति के पंडित कुणाल व्यास, मंच के संयोजक मनोज दीक्षित मामा के अनुसार दीपावली पर लक्ष्मी पूजन अमावस्या तिथि में होता है, 31 अक्टूबर की रात को अमावस्या तिथि है, 1 नवंबर की रात में नहीं इसलिए दीपावली पर्व पर पूजन 31 अक्टूबर को ही शास्त्र सम्मत है। आगामी दिनों में शहर सहित आस-पास के समस्त पंडितों और संतों को आमंत्रित किया जाएगा। वहीं जिले भर में महिलाओं के सबसे बड़े संगठन सनातनी महिला मंडल की अध्यक्ष श्रीमती ज्योति अग्रवाल ने भी 31 को ही दीपावली पर्व मनाए जाने की बात कही। वहीं पंडित सुनील पाराशर, मंच के उपाध्यक्ष धर्मेन्द्र माहेश्वरी ने कहा कि पंचांग में अलग-अलग तारीखों के कारण दीपावली त्यौहार में संशय की स्थिति निर्मित हो गई है। देश में कही दीपावली 31 अक्टूबर को और कहीं 1 नवंबर को मनाई जा रही है। इस संशय को दूर करने के लिए, पुजारियों से पूछा कि दीपावली कब मनाएं। देवी मंदिरों के पुजारियो ने स्पष्ट किया है कि आगामी 31 अक्टूबर को अमावस्या शुरू हो जाएगी और इस दिन ही लक्ष्मी पूजन का विशेष मुहूर्त है। पुजारियों ने यह भी कहा कि लक्ष्मी पूजन शाम से देर रात्रि तक किया जाता है, एक नवंबर को शाम पांच बजे के बाद प्रतिपदा लग जाएगी इसलिए दीपोत्सव पर्व 31 अक्टूबर को ही मान्य होगा। वहीं 23 और 24 अक्टूबर को पुष्य नक्षत्र का शुभ मुहूर्त है।
भ्रम की स्थिति निर्मित हो गयी है
विभिन्न पंचांग में दीपावली पर्व की तिथियां अलग अलग होने के कारण लोगों में भ्रम की स्थिति निर्मित हो गयी है। 31 अक्टूबर को शाम चार बजे से अमावस्या शुरू हो जाएगी जो 1 नवंबर को शाम छह बजे खत्म होगी। यहीं कारण है कि कुछ पंचांग जहां 31 अक्टूबर को दीपावली होने की जानकारी दे रहे है, मंदिरों के पुजारियो के जरिए दीपोत्सव की तिथियों में निर्मित हुई भ्रम की स्थिति को दूर करने की कोशिश की है। पंडितो का कहना है कि 31 अक्टूबर को शाम चार बजे अमावस्या शुरू हो जाएगी। लक्ष्मी पूजन का मुहूर्त गोधूलि बेला से शुरू होकर देर रात्रि तक रहता है। ऐसी स्थिति में 31 अक्टूबर को ही लक्ष्मी पूजन के लिए शाम और रात मिल रही है। एक नवंबर को शाम चार बजे अमावस्या खत्म होते ही प्रतिपदा लग जाएगी। प्रतिपदा में लक्ष्मी का पूजन नहीं किया जाता। पंडितों का कहना है कि 31 अक्टूबर को ही दीपावली का पर्व मनाया जाएगा। दीपावली का पर्व प्रदोष काल में लक्ष्मी जी का स्वागत कर मनाया जाता है। सिंह लग्न में अलक्ष्मी का निस्तारण करते हैं। यदि 1 को तारीख को दीपावली मानेंगे तो प्रदोषकाल में भी अमावस्या नहीं है, और सिंह लग्न में भी अमावस्या नहीं है। इसलिए 31 अक्टूबर को ही दीपावली मनेगी। दीपावली में अमावस्या का ही प्रभाव होता है। इसी दिन दीपदान एवं लक्ष्मी पूजन किया जाना चाहिए। 31 अक्टूबर को अमावस्या रहेगी। 1 नवंबर को शाम 4 बजे के बाद अमावस्या नहीं है। अमावस्या 31 अक्टूबर को शुरू होगी। लक्ष्मी पूजन शाम से रात तक अमावस्या में ही किया जाता है।
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