- चारों भाईयों के गले मिलते ही नम हुई हर आंखें, धूमधाम से हुआ राजतिलक
- नाटी इमली मैदान में राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न की उतारी गई आरती
पांच मिनट के इस दृश्य को नजरों में साल भर बसा लेने को हर कोई आतुर दिखा। बच्चे, जवान, बूढ़े, महिलाएं सब के सब इस अद्भूत मिलन को एकटक निहारते रहे। इस नयनाभिराम दृश्य को जनसमूह ने तो सजल नेत्रों से देखा ही, परंपरागत ढंग से राज घराने के सदस्यों के साथ 3 गजों (हाथी) पर सवार होकर पहुंचे काशी नरेश महाराज कुंवर अनंत नारायण सिंह ने भी इस अविस्मरणीय दृश्य को अपनी पलकों में कैद किया। यह लीला लगभग 481 वर्ष पुरानी है। लीला के शुभारंभ के दौरान श्रीराम को महाराज अनंत नारायण सिंह ने सोने की गिन्नी सौंपी। यह दृश्य तब देखने को मिला जब महाराज ने गज पर सवार होकर लॉग पुष्पक विमान की फेरी लगाई। श्रीराम को गिन्नी सौंपी। भगवान को गिन्नी देने की परम्परा बरसों से चली आ रही है। इस दौरान भव्य चारों भाईयों की शोभायात्रा निकाली गई। रथ पर सवार राम, लक्ष्मण, सीता, हनुमान, भरत, शत्रुघ्न समेत अन्य देवी-देवताओं का जगह-जगह स्वागत किया गया। लोगों ने शोभायात्रा में शामिल चारों भाईयों को भगवान की प्रतिमूर्ति मानकर उन्हें नमन किया। मान्यता है कि प्रभु श्रीराम के चैदह वर्ष वनवास काटने व लंका पर अपनी विजय पताका लहराने के बाद जब अयोध्या की ओर आगमन होते हैं तो इसकी सूचना मिलने पर उनके अनुज भरत उनके दर्शन को पाने के लिए एक संकल्प लेते है कि अगर गोधुली बेला तक प्रभु के दर्शन ना हुए तो वह अपने प्राण त्याग देंगे, लेकिन लीलाधारी प्रभु श्रीराम गोधुली बेला तक भरत के सामने उपस्थित हो जाते हैं। उन्हें देख भरत उनके पैरों में गिर जाते हैं जिस पर श्रीराम उन्हें गले से लगा लेते हैं। इस दृश्य को मंच पर कलाकारों ने बेहद संजीदगी के साथ निभाया। इसे देख दर्शक भाव-विभोर हो गए। इसके बाद धूमधाम से राम का राजतिलक किया गया। यह मंचन मर्यादा पुरुषोत्तम राम का चरित्र मनुष्य को आदर्शों पर चलने की सीख देता है। तुलसी के रामचरित में वर्णित हर पात्र समाज के आदर्श चरित्र का चित्र प्रस्तुत करता है। राम आदर्श पुत्र हैं तो भरत आदर्श भाई। राम के वनवास के बाद राजपाठ मिलने पर भी भरत ने राम की चरण पादुका सिंहासन पर रखकर सेवक की तरह राज संभाला। हर भाई यदि भरत के गुणों को आत्मसात करे तो घर घर में होने वाली महाभारत बंद हो जाएगी।
बता दें, श्रीचित्रकूट रामलील समिति की ओर से होने वाले इस विश्वप्रसिद्ध आयोजन का 481वां वर्ष है। इस आयोजन में काशीराज परिवार के अनंत नारायण सिंह परंपरानुसार हाथी पर सवार होकर शामिल होते हैं। इसके बाद जिला प्रशासन के लोगों ने हाथी पर सवाल अनंत नारायण सिंह को सलामी दी। इसके पहले भगवान श्रीराम के पांच टन वजनी पुष्पक विमान को उठाने के लिए यादव बंधु परी सिद्दत से जटे रहे। हर साल काशी और काशी की जनता यदुकुल के कंधे पर रघुकुल के मिलन की साक्षी बनती है। नाटी इमली के भरत मिलाप की कहानी मेघा और तुलसी के अनुष्ठान से आरंभ हुई। संकट मोदचन मंदिर के महंत पं. विश्वंभरनाथ मिश्र द्वारा पांच टन के वजनी पुष्पक विमान का वैदिक मंत्रोचार के बीच पूजन किया गया। चित्रकूट रामलीला समिति के व्यवस्थापक पं. मुकुंद उपाध्याय बताते हैं कि 480 साल पहले रामभक्त मेघा भगत को प्रभु के सपने में हुए थे। सपने में प्रभु के दर्शन के बाद ही रामलीला और भरत मिलाप का आयोजन किया जाने लगा। आज भी ऐसी मान्यता है कि कुछ पल के लिए प्रभु श्रीराम के दर्शन होते हैं। यही वजह है कि महज कुछ मिनट के भरत मिलाप को देखने के लिए हजारों की भीड़ यहां हर साल जुटती है। बनारस के यादव बंधुओं का इतिहास तुलसीदास के काल से जुड़ा हुआ है। तुलसीदास ने बनारस के गंगा घाट किनारे रह कर रामचरितमानस तो लिख दी, लेकिन उस दौर में श्रीरामचरितमानस जन-जन के बीच तक कैसे पहुंचे ये बड़ा सवाल था। लिहाजा प्रचार-प्रसार करने का बीड़ा तुलसी के समकालीन गुरु भाई मेघाभगत ने उठाया। जाति के अहीर मेघाभगत विशेश्वरगंज स्थित फुटे हनुमान मंदिर के रहने वाले थे। सर्वप्रथम उन्होंने ही काशी में रामलीला मंचन की शुरुआत की। लाटभैरव और चित्रकूट की रामलीला तुलसी के दौर से ही चली आ रही है।
मची भगदड़
भरत मिलाप के पूर्व पुष्पक विमान का गेट खोलने के दौरान भगदड़ मच गई। भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पुलिस को लाठियां भांजनी पड़ी। इस दौरान कुछ लोगों को हल्की चोटें भी आईं। आयोजन शुरू होने से पहले स्थिति पर काबू पा लिया गया था।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें