मधुबनी : ईलाज के अभाव में बेहिसाब दम तोड़ती जिंदगी - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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सोमवार, 14 अक्तूबर 2024

मधुबनी : ईलाज के अभाव में बेहिसाब दम तोड़ती जिंदगी

  • रेफर टू यमलोक का जरिया बना सरकारी अस्पताल

Treatment-in-madhubani
खुटौना/मधुबनी (रजनीश के झा)। बिहार में उन्नत स्वास्थ्य व्यवस्था के खोखले दावों की आये दिन पोल खुलती ही रहती है। रसूखदार लंबे कुर्ते वाले विकास की बैलगाड़ी खींचते सत्ता के पुजारी खुद के पेट की गुदगुदी खुजाने भी विदेशों के अस्पताल में जाते हैं जबकि आम जिन्दगी सरकारी अस्पतालों के यमदूतों के सहारे सीधा स्वर्ग के दरवाजे पर खड़े दिखाई देते हैं। आम लोगों के पास अपनी तकलीफों के मुद्दों को लेकर उतनी सजगता नहीं होती जितनी की मजहबी और राजनितिक उन्माद के लिए पीएचडी करने की होती है। बिगड़ते स्वास्थ्य व्यवस्था के संक्रमण को खुटौना प्रखंड क्षेत्र में सरलता से महसूस किया जा सकता है। प्रखंड के खुटौना सीएचसी से लेकर लौकहा, ललमनियां, बाघा कुशमार, पिपराही, एकहत्था जैसे तमाम छोटी-बड़ी जगहों पर सरकारी अस्पताल में ईलाज के नाम पर सिर्फ आमलोगों की जान से खिलवाड़ किया जाता है। कागज पर जिला में अव्वल दर्जे पर काबिज खुटौना सीएचसी में तू चल मैं आया की तर्ज पर अक्सर मरीज की लाशों को मिट्टी में दफन करने के लिए भेज दिया जाता है। इंसान तो छोड़िए जब पूरे प्रखंड में बेजुबान पशुओं के ईलाज के लिए कोई व्यवस्था नहीं है तो फिर निरीह इंसान की सुध कौन लेगा!


कलेजा सिहर जाता है जब नौ महीने पेट में पालने के बाद एक मां चीत्कार भरती है और पता चलता है कि उसके कलेजे के टुकड़े की सांसे छीन ली गई हैं। घरों के चिराग बुझ गए और मां की गोद उजड़ गई। उससे भी ज्यादा खौफनाक मंजर तब होता है जब किसी नवजात के दुनियां में आते ही उसके सिर से मां का आंचल छीन लिया जाता है। ऐसा नहीं है कि ये सिर्फ महज एक संयोग है कि डाक्टर मरीज का उपचार करने की कोशिश तो करते हैं लेकिन मौत तो भगवान के हाथ में है बल्कि आए दिन खुटौना सीएचसी में ऐसी घटनाएं होती ही रहती है। यहां के चिकित्सा पदाधिकारी डा. विजय मोहन केसरी न जाने कौन सी घूंट पीकर आए हैं कि अंगद की तरह जो पैर जमाए हैं कि फिर हिल ही नहीं रहे। प्रखंड सहित पुरे इलाक़े में आम जनता के अरबों रुपए सरकारी स्वास्थ्य सुविधा के नाम पर खर्च करने के बावजूद यहां के कसाई लोगों को जिंदगी नहीं दे पाते उल्टा उनके मौत के सौदे के लिए कुकुरमुत्तों की तरह गली-गली में निजी क्लीनिक का बाजार सजाने के लिए सुलभ वातावरण उपलब्ध कराते हैं। जिसका नतीजा है कि कोरी कार्रवाई के बावजूद भी धड़ल्ले से मानकों का उलंघन कर बगैर दक्ष चिकित्सकों के अवैध निजी क्लीनिक चल रहे हैं। बेटी बचाओ अभियान को आइना दिखाने के लिए अवैध अल्ट्रासाउंड की मदद से कोख में ही बेटी को बचा लिया जाता है और बाहर आने ही नहीं दिया जाता। लोगों की माने तो स्वास्थ्य विभाग पर जबतक हंटर वाली कार्रवाई नहीं होगी तब तक कलयुग के ये कालनेमी ऐसे ही जिंदगी और मौत का खौफनाक खेल बेखौफ खेलते रहेंगे। जरूरत है कि मेडिकल माफिया गैंग के बड़ी मछलियों को जल्दी से जल्दी दबोचा जाए।

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