- रेफर टू यमलोक का जरिया बना सरकारी अस्पताल
कलेजा सिहर जाता है जब नौ महीने पेट में पालने के बाद एक मां चीत्कार भरती है और पता चलता है कि उसके कलेजे के टुकड़े की सांसे छीन ली गई हैं। घरों के चिराग बुझ गए और मां की गोद उजड़ गई। उससे भी ज्यादा खौफनाक मंजर तब होता है जब किसी नवजात के दुनियां में आते ही उसके सिर से मां का आंचल छीन लिया जाता है। ऐसा नहीं है कि ये सिर्फ महज एक संयोग है कि डाक्टर मरीज का उपचार करने की कोशिश तो करते हैं लेकिन मौत तो भगवान के हाथ में है बल्कि आए दिन खुटौना सीएचसी में ऐसी घटनाएं होती ही रहती है। यहां के चिकित्सा पदाधिकारी डा. विजय मोहन केसरी न जाने कौन सी घूंट पीकर आए हैं कि अंगद की तरह जो पैर जमाए हैं कि फिर हिल ही नहीं रहे। प्रखंड सहित पुरे इलाक़े में आम जनता के अरबों रुपए सरकारी स्वास्थ्य सुविधा के नाम पर खर्च करने के बावजूद यहां के कसाई लोगों को जिंदगी नहीं दे पाते उल्टा उनके मौत के सौदे के लिए कुकुरमुत्तों की तरह गली-गली में निजी क्लीनिक का बाजार सजाने के लिए सुलभ वातावरण उपलब्ध कराते हैं। जिसका नतीजा है कि कोरी कार्रवाई के बावजूद भी धड़ल्ले से मानकों का उलंघन कर बगैर दक्ष चिकित्सकों के अवैध निजी क्लीनिक चल रहे हैं। बेटी बचाओ अभियान को आइना दिखाने के लिए अवैध अल्ट्रासाउंड की मदद से कोख में ही बेटी को बचा लिया जाता है और बाहर आने ही नहीं दिया जाता। लोगों की माने तो स्वास्थ्य विभाग पर जबतक हंटर वाली कार्रवाई नहीं होगी तब तक कलयुग के ये कालनेमी ऐसे ही जिंदगी और मौत का खौफनाक खेल बेखौफ खेलते रहेंगे। जरूरत है कि मेडिकल माफिया गैंग के बड़ी मछलियों को जल्दी से जल्दी दबोचा जाए।
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