आज नहीं तो कल होगा,
जो सच है, वह सच में होगा,
क्या सच में कभी आएगा?
ये कल, जाने गुजर गए कितने कल,
इंतज़ार में इस कल के,
जब हो जाऊंगी मैं सफल,
देती दिलासा खुद को मैं,
चलती रहती हूं हर हाल में मैं,
भूलकर कभी थक कर बैठ जाती हूं,
फिर उठकर आगे बढ़ती हूं ये सोचकर,
आज नहीं तो कल होगा,
करना चाहती हूं बहुत कुछ मगर,
पर कुछ न कर पाने के डर को सोच कर,
बहुत रोती हूं, छुपाकर गम को अपने,
खुशी से एक और कदम आगे बढ़ाती हूं,
ये सोचकर, आज नहीं तो कल होगा।।
भावना
कन्यालीकोट, उत्तराखंड
चरखा फीचर्स
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें