इस कहावत के पीछे एक दिलचस्प कहानी छिपी है:
एक बार, एक बूढ़ा कौआ और उसका पोता सड़क के किनारे एक मरे हुए जानवर पर ठूँगे मार रहे थे। अचानक, वहाँ से एक आदमी गुज़रा। उसे देखकर, छोटा कौआ तुरंत उड़कर पास के पेड़ पर जा बैठा। लेकिन बूढ़ा कौआ बिना किसी चिंता के बैठा रहा और खाने में मग्न रहा। जब आदमी चला गया, तो युवा कौआ वापस सड़क पर आया और अपने दादा से पूछा, "दादा, जब आपने उस आदमी को देखा, तो आप उड़कर क्यों नहीं भागे? अगर उसने आप पर पत्थर फेंक दिया होता, तो ?"
बूढ़ा कौआ अपने पोते की मासूमियत पर हंसा और बोला, "मेरे बच्चे, तुम अभी बहुत भोले हो। हमें तभी उड़ना चाहिए जब हम देखें कि आदमी पत्थर उठाने वाला है या उसने पहले ही एक उठा लिया है। पहले से भागने का कोई मतलब नहीं है।"
पोता तुरंत बोला, “दादा, लेकिन अगर आदमी ने पहले से ही अपने पीछे पत्थर छिपा लिया होता, तो ?"
पोते के इस तीखे उत्तर ने बूढ़े कौए को निरुत्तर कर दिया। उसके पास कोई जवाब नहीं था और वह शर्मिंदा होकर वहां से उड़ गया, यह स्वीकार करते हुए कि उसके पोते की बात में गहरी बुद्धिमत्ता थी। इस कहावत के पीछे संदेश यह है कि कभी-कभी छोटे बच्चे, अपनी कम उम्र के बावजूद, इतनी बुद्धिमानी और समझदारी दिखाते हैं कि बड़े लोग भी उनके सामने निरुत्तर हो जाते हैं।
यह कहानी, जो मेरे दादा ने मुझे मेरे बचपन में सुनाई थी, कई महत्वपूर्ण उपदेशों की याद दिलाती है। सबसे पहले, यह हमें हर स्थिति में सतर्क और सावधान रहने का महत्व बताती है, क्योंकि चीजें हमेशा वैसी नहीं होतीं, जैसी दिखती हैं। बूढ़ा कौआ अपने अनुभव पर निर्भर था और उसने अनुमान लगाया कि कब रुकना है और कब भागना है। लेकिन उसके पोते की यह समझ कि खतरे अदृश्य भी हो सकते हैं, एक गहरी दृष्टि थी, जो यह दर्शाती है कि ख़तरे कभी भी अप्रत्याशित हो सकते हैं। यह कहानी पीढ़ियों के बीच सोचने और दृष्टिकोण के अंतर को भी दर्शाती है। जहां बड़े लोग अनुभव पर भरोसा करते हैं, वहीं कभी-कभी युवा पीढ़ी, बिना किसी पूर्वाग्रह के, नई दृष्टिकोण और गहरी अंतर्दृष्टि प्रदान कर सकती है। युवा कौए का प्रश्न दूरदर्शिता को दर्शाता है, यह बताता है कि कभी-कभी सावधानी उस समय भी बरतनी चाहिए जब कोई तात्कालिक ख़तरा न दिखे। कहावत का सार यह है कि बुद्धिमत्ता हमेशा उम्र पर निर्भर नहीं होती। कभी-कभी युवा मन, जो परंपरा के बंधनों से मुक्त होता है, उन जटिलताओं को पकड़ लेता है और उन ख़तरों को भांप लेता है जिन्हें अनुभवी लोग भी नजरअंदाज कर सकते हैं। यह कहानी यह भी संकेत देती है कि बुद्धिमत्ता पीढ़ियों के बीच विकसित होती रहती है, जहां अनुभव और युवाओं की दृष्टि एक-दूसरे का पूरक हो सकते हैं।
सारांशतः "काव गाव पाव ता कावपूत गाव डोड पाव" कहावत यह सिखाती है कि बुद्धिमत्ता हमेशा उम्र के साथ नहीं आती, और कभी-कभी युवा भी बड़ों को एक मूल्यवान सबक सिखा सकते हैं। जीवन की जटिलताओं को से जूझते हुए हमें सभी स्रोतों से सीखने के लिए तैयार रहना चाहिए, चाहे वह उम्र हो या अनुभव, यह स्वीकार करते हुए कि बुद्धिमत्ता किसी भी अप्रत्याशित जगह से निकल सकती है।
—डा. शिबन कृष्ण रैणा—
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