नाम नहीं बताने की शर्त पर इसी गांव की एक महिला बताती हैं कि उसका पति दैनिक मज़दूरी का काम करता है. अक्सर वह मज़दूरी के पैसे को जुए में खर्च कर देता है. मना करने पर वह उसके साथ मारपीट करता है. वह कहती हैं कि घर चलाने और बच्चों की शिक्षा के लिए वह खेतों में काम करती हैं. लेकिन उससे मिलने वाले पैसे को भी उनका पति उनसे छीन लेता है. वह बताती हैं कि हुस्सेपुर जोड़ा कान्ही गांव में महादलित समुदाय की बहुलता है. आर्थिक और सामाजिक रूप से यह गांव काफी पिछड़ा हुआ है. यहां शिक्षा और रोजगार की कमी है. महिलाओं के साथ हिंसा आम बात है. कभी पैसे के लिए तो कभी किसी बात पर पति अपनी पत्नी के साथ मारपीट करता है. छह माह पहले गांव की एक गर्भवती महिला ने पति द्वार किये जाने वाले अत्याचार से तंग आकर आत्महत्या कर ली थी. इस संबंध में 25 वर्षीय अंजू (बदला हुआ नाम) कहती है कि बार बार पति द्वारा मारपीट किये जाने से वह न केवल मानसिक बल्कि शारीरिक रूप से भी बीमार रहने लगी है. वह कहती है कि जब वह घर के किसी फैसले में हस्तक्षेप करती है तो उसे चुप करा दिया जाता है. घर के सारे फैसले पुरुष ही करते हैं चाहे वह हमें पसंद आये या न आये. उनका फैसला मानना ही पड़ता है. वह बताती हैं कि 19 वर्षीय उसकी ननद आगे पढ़ना चाहती थी. लेकिन घर के पुरुषों द्वारा उसकी शादी तय कर दी गई. जब उन्होंने उसकी इच्छा के विरुद्ध हो रही शादी को रोकना चाहा तो उनके साथ काफी मारपीट की गई. 28 वर्षीय आरती (नाम परिवर्तित) कहती है कि घर की चारदीवारी के अंदर भी महिलाओं की भूमिका नगण्य है. हमें अपने फैसले लेने का अधिकार तक नहीं है. हमारी भूमिका केवल खाना बनाने, बच्चों को जन्म देने और उनका लालन-पालन तक सीमित होता है. महिलाओं को अपने बच्चों के भविष्य का फैसला लेने का हक भी नहीं होता है. यदि कोई महिला पुरुषों द्वारा लिए गए फैसले का विरोध करती है तो उसके साथ मारपीट की जाती है. लड़की को जन्म देने पर भी उसके साथ मानसिक रूप से अत्याचार किया जाता है.
शिक्षा के प्रचार प्रसार के बावजूद लैंगिक हिंसा का आंकड़ा कम नहीं हुआ है. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा जारी 2022 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार 2021 की तुलना में 2022 में महिलाओं के प्रति अपराध में चार प्रतिशत की वृद्धि हुई है. 2022 में देश में अपराध के 58 लाख से अधिक मामले दर्ज किए गए थे, जिनमें महिलाओं के प्रति अपराध के करीब साढ़े चार लाख मामले थे. मतलब हर घंटे औसतन करीब 51 एफआईआर महिलाओं के साथ हुए हिंसा के दर्ज हुए. रिपोर्ट के अनुसार जहां राजधानी दिल्ली में महिलाओं के साथ सबसे अधिक हिंसा के मामले दर्ज हुए, वहीं बिहार में भी महिलाओं और किशोरियों के साथ होने वाली हिंसा के आंकड़े अधिक नज़र आते हैं. रिपोर्ट बताते हैं कि महिलाओं के खिलाफ ज्यादातर हिंसा या भेदभाव के मामले पति या उसके करीबी रिश्तेदारों द्वारा किए जाते हैं. हालांकि लैंगिक हिंसा को रोकने के लिए देश में सख्त कानून भी बनाए गए हैं. इसके अतिरिक्त बिहार सरकार की ओर से महिलाओं के विरुद्ध हिंसा को रोकने के लिए 24 घंटे एक हेल्पलाइन नंबर भी चलाया जाता है. सामाजिक कार्यकर्ता रेखा देवी कहती हैं कि अक्सर न केवल जागरूकता के अभाव में बल्कि सामाजिक और आर्थिक कारणों से भी महिलाएं अपने विरुद्ध होने वाली हिंसा की शिकायत नहीं कर पाती हैं. केवल ग्रामीण क्षेत्रों में ही नहीं बल्कि शहरी क्षेत्रों में भी यही प्रवृत्ति देखी जाती है. जहां एक महिला घर और परिवार की इज्जत के नाम पर पति द्वारा की जाने वाली हिंसा को सहन करती रहती है. हालांकि कई महिलाएं हिम्मत का परिचय देते हुए अपने विरुद्ध होने वाली हिंसा के खिलाफ आवाज उठाती हैं और पुलिस में इसकी शिकायत भी दर्ज कराती हैं. लेकिन अभी भी बड़े पैमाने पर इसे घर का मामला बता कर महिलाओं को शिकायत करने से रोक दिया जाता है. वह कहती हैं कि 2016 से बिहार में पूर्ण शराबबंदी के बाद महिला हिंसा के आंकड़ों में थोड़ी बहुत कमी दर्ज की गई है. लेकिन इसे पूरी तरह समाप्त करना आवश्यक है क्योंकि लैंगिक हिंसा न केवल महिलाओं को आगे बढ़ने से रोकता है बल्कि यह समाज के विकास में भी एक बड़ी बाधा है.
सिमरन सहनी
मुजफ्फरपुर, बिहार
(चरखा फीचर्स)
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