पर काठ की हांडी कितने दिन तक चढ़ती है। उन की पोलें खुलनी शुरू हुई तो खुलती चली गई। यही हाल राजनीति का भी है। एक कट्टर ईमानदार नेता शेष सब को बेईमान बता कर राजनीति में आये. आये तो वे इस बेईमानी के सागर में एक नई राजनीति देने के लिए थे पर मौका लगते ही वे बेईमानी के ऐसे मास्टर हो गए कि सब पुराने घाघ बेईमानों को पीछे छोड़ दिया। शराब के तो वे स्पेशलिस्ट हो गए और पूरी दिल्ली में लोगों के लिए एक के साथ एक फ्री की व्यवस्था करवा दी। ऊपर से तुर्रा यह कि वे और उन के चमचे उनके कट्टर ईमानदार होने का जाप करते हैं। पर फिर वही बात ,काठ की हांडी कितने दिन चढ़ेगी। आखिर वे जेल पहुँच ही गए पर उन के चमचों ने उन की कट्टर ईमानदारी का गुण गान नहीं छोड़ा। जनता के आगे बहुत गिड़गिड़ाए कि उन्हें कट्टर ईमानदारी का प्रमाणपत्र दे दे पर जनता को उन पर तरस नहीं आया। तरस आया तो सुप्रीम कोर्ट के कुछ जजों को जिन्होंने उन्हें शर्तों सहित जमानत दे दी। अब चमचे इसी जमानत को उन की कट्टर ईमानदारी का साबुत बता कर ढोल पीट रहे हैं पर ये जो पब्लिक है ,वो सब जानती है। वह भी अब समझ गई है कि कट्टर ईमानदार को दूर से ही नमस्कार करना अच्छा।
अशोक गुप्त
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