विशेष : कश्मीर रामयण अब अंग्रेजी में भी - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शुक्रवार, 18 अक्तूबर 2024

विशेष : कश्मीर रामयण अब अंग्रेजी में भी

Kashmir-ramayan-in-english
प्रभु राम के जीवन-चरित को लेकर अब तक जो रामायणें लिखी गयी हैं, वे इस बात का प्रमाण हैं कि रामकथा सर्वव्यापी और देशकालातीत है और उसका सन्देश सार्वभौम है। भारत में और विश्व के अन्य देशों में भी समय-समय पर कई भाषाओं में रामायणें लिखी गयी हैं। कश्मीरी भाषा में रचित रामायणों की संख्या लगभग सात है। इनमें से सर्वाधिक लोकप्रिय ‘‘रामवतारचरित“ है जिसका रचनाकाल 1847 ई० के आसपास माना जाता है। इस बहुमूल्य रामायण के प्रणेता कुर्यग्राम/कश्मीर निवासी प्रकाशराम हैं।कहना न होगा कि प्रभु श्री रामचन्द्र का जीवन,उनका व्यक्तित्व और उनकी शिक्षाएं पूरी मानवता के लिए मार्गदर्शक का काम करती हैं। प्रभु राम के जीवन-चरित को लेकर अब तक जो रामायणें लिखी गयी हैं, वे इस बात का प्रमाण हैं कि रामकथा सर्वव्यापी और देशकालाततीत है और उसका सन्देश सार्वभौम है। प्रकाशराम के 'रामावतार-चरित` के मूलाधार वाल्मीकि कृत रामायण तथा 'अध्यात्म रामायण’ हैं। संपूर्ण कथानक सात काण्डों में विभक्त है। 'लवकुश-चरित` को अन्त में जोड़ दिया गया है। ‘रामावतारचरित’ कश्मीरी भाषा-साहित्य में उपलब्ध रामकथा-काव्य-परंपरा का एक बहुमूल्य काव्य-ग्रन्थ है जिसमें कवि ने रामकथा को भाव-विभोर होकर गाया है। कवि की वर्णन-शैली एवं कल्पना शक्ति इतनी प्रभावशाली एवं स्थानीय रंगत से सराबोर है कि लगता है कि मानो ‘रामावतारचरित’ की समस्त घटनाएं अयोध्या, जनकपुरी, लंका आदि में न घटकर कश्मीर-मंडल में ही घट रही हों । ‘रामावतारचरित’ की सबसे बड़ी विशेषता यही है और यही उसे ‘विशिष्ट’ बनाती है। ‘कश्मीरियत’ की अनूठी रंगत में सनी यह काव्यकृति संपूर्ण भारतीय रामकाव्य-परंपरा में अपना विशेष स्थान रखती है।


सन् 1965 में जम्मू व कश्मीर प्रदेश की कल्चरल अकादमी ने ’रामावतारचरित’ को ‘लवकुश-चरित’ समेत एक ही जिल्द में प्रकाशित किया था। कश्मीरी नस्तालीक लिपि में लिखी 252 पृष्ठों की इस रामायण का संपादन/परिमार्जन का कार्य कश्मीरी-संस्कृत विद्वान् डॉ0 बलजिन्नाथ पंडित ने किया है। मैंने इस बहुचर्चित रामायण का भुवन वाणी ट्रस्ट, लखनऊ के लिए सानुवाद देवनागरी में लिप्यंतरण किया था । 481 पृष्ठों वाले इस ग्रन्थ की सुन्दर प्रस्तावना डा0 कर्ण सिंह जी ने लिखी है और इस अनुवाद-कार्य के लिए 1983 में बिहार राजभाषा विभाग, पटना द्वारा मुझे ताम्रपत्र से सम्मानित भी किया गया ।अब मेरे द्वारा किया गया इस सुंदर रामायण का अंग्रेजी अनुवाद भी सुधी पाठकों के लिए प्रस्तुत है। कश्मीरी पंडितों के कश्मीर(कश्यप-भूमि) से विस्थापन ने इस समुदाय की बहुमूल्य साहित्यिक-सांस्कृतिक धरोहर को जो क्षति पहुंचायी है, वह सर्वविदित है। कश्मीरी रामायण ‘रामवतारचरित’ के अंग्रेजी अनुवाद का यह पेपरबैक-संस्करण(होप प्रकाशन,भोपाल से प्रकाशित) इस संपदा को अक्षुण्ण रखने का एक विनम्र प्रयास है।

रामावतारचरित का एक अंश देखिए:

"गोरव गंडमच छि वथ, बोज़ कन दार,

छु क्या रोजुऩ, छु बोजुऩ रामावतार।

ति बोज़नअ सत्य वोंदस आनंद आसी,

यि कथ रठ याद, ईशर व्याद कासी।

ति जाऩख पानु दयगत क्या चेह़ हावी,

कत्युक ओसुख चे,कोत-कोत वातनावी।"


(गुरूओं ने एक सत्पथ तैयार किया है, जरा कान लगाकर इसे सुन। यहां कुछ भी नहीं रहेगा, बस रहेगी रामवतार की कथा। इसे सुनकर हृदय आनंदित हो जाएगा, यह बात तू याद रख। इसे सुन ईश्वर तेरी सारी व्याधियां दूर करेंगे और तू स्वयं जान जाएगा कि प्रभु-कृपा/दैवगति तुझे कहां से कहाँ पहुंचाये गी!) मेरे द्वारा अनुवादित कश्मीरी रामायण “रामावतारचरित” के प्रारम्भिक अध्याय में राम-जन्म,रावण के अंत आदि का वर्णन कवि ने “शिव-पार्वती” के परस्पर संवाद से इन खूबसूरत शब्दों में किया है:


(मेरे भक्त) रावण ने यह संकल्प कर लिया था कि भला (तीनों लोकों में) मेरा मुकाबला कौन कर सकता है और मेरी बराबरी कौन कर सकता है? दैवगति के सत्य (विधान) को उसने सरल जान लिया था तथा अपने दुष्कृत्यों द्वारा पृथ्वी को कंपा दिया था । (तब) देवी-वसुन्धरा थरथराने लगी थी और वह भय से गिरती-कांपती हुई नारायण (विष्णु) की शरण में गई। दरअसल, उस (रावण) ने ऐसे कुकर्म किये थे जिससे पृथ्वी लाचार (संत्रस्त) हो गई तथा वह रोते हुए विष्णु के पास अपनी व्यथा कहने लगी। तब विष्णु ने पृथ्वी से कहा: (चिन्ता न कर) वापिस चली जा, मुझे रावण का अन्त करने के लिए जन्म लेना होगा। मुझे मनुष्य-रूप धारण कर रावण का वध करना पड़ेगा और इस कार्य के लिए तुझे भी योग-माया से काम लेना होगा। मैं राम का रूप धारण कर लूँगा और तू सीता का रूप धारण करेगी। राजा दशरथ सन्तानकामेष्टि हेतु कर्म (यज्ञ) करेगा और मैं उसके यहाँ जन्म लेकर रावण के प्राण हर लूँगा। (इसके अतिरिक्त) सभी त्रिकोटि देवता (मेरे सहयोगी देवता) वानर-भेस धारण कर अवतरित होंगे। यह सुनकर पृथ्वी शाद (प्रसन्न) हो गई और (उस घडी़ की) प्रतीक्षा करने लगी कि कब उसके नेत्रों पर वे (राम) अपने चरण रखेंगे। तब देवी ने कहा-‘हे शिवजी! दया कीजिए और मुझे रामावतार की आगे की कथा सुनाइए ताकि मेरे हृदय की दुविधा दूर हो जाये।----‘

कवि ने अन्यत्र जो रूपक प्रस्तुत किया हो वह दृष्टव्य है:

"सोयछ सीता, सतुक सोथ रामअ लख्यमन,

ह्यमथ हलमत, असत रावुन दोरज़न।

(सदिच्छा/सतीत्व सीता है, सत्य का सेतु राम व लक्ष्मण हैं। हिम्मत हनुमान तथा असत्य रूपी दुर्जन रावण है।)


कश्मीरी रामायण "रामावतारचरित" के रचयिता प्रकाशराम के राम लोक-रक्षक, भू-उद्धारक और पाप-निवारक हैं। वे दशरथ-पुत्र होते हुए भी विष्णु के अवतार हैं। पृथ्वी पर पाप का अन्त करने के लिए ही उन्होंने अवतार धारण किया है:--

रावण के हेतु अवतारी बनकर आए, भूमि का भार हरने को आए।


"रे जीव! तू प्रभु राम से प्रीति रख और मोह व लोभ को त्याग दे। सभी को एक दिन इस संसार से चले जाना है, यहाँ भला स्थायी रूप से रहने के लिए कौन आया है?विनयशील बनकर रामचन्द्रजी की शरण में चला जा तथा गुरू पर भावना (आस्था) रख क्योंकि वही तुम्हें सूर्यप्रकाश/सद्गति दिखायेंगे।"राम की महिमा का कश्मीरी रामायणकार ने यों वर्णन किया है: कश्मीरी रामायण “रामावतारचरित” का हिंदी और अंग्रेजी में डा० रैणा द्वारा किया अनुवाद फ्लिपकार्ट और अमेज़न पर उपलब्ध है।





—डा० शिबन कृष्ण रैणा—

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