- 2017 के विधानसभा चुनाव में इस सीट से बसपा के रमेश बिंद को सुचिस्मिता मौर्या ने 41159 मतों से हराया था, सुचिस्मिता मौर्य इस सीट से वर्ष 2017 से 2022 तक विधायक रहीं
मझवां विधानसभा सीट को लेकर होने वाले उपचुनाव के लिए आखिरकार भाजपा ने गुरुवार को अपने पत्ते खोल दिए। भाजपा ने इसी सीट के लिए एक बार फिर पूर्व विधायक सुचिस्मिता मौर्या पर भरोसा जताया है और उनको अपना उम्मीदवार बनाया है। कहा जा रहा है कि विपक्ष में महिला उम्मीदवार व राजनीति में लगातार सक्रियता के चलते ही पार्टी की वह पसंद बनीं। सुचिस्मिता मौर्य इस सीट से वर्ष 2017 से 2022 तक विधायक रहीं। 2022 के विधानसभा चुनाव में उनको टिकट नहीं मिला और यह सीट भाजपा की सहयोगी पार्टी निषाद पार्टी के डॉ. विनोद बिंद को दे दी गई। विनोद बिंद चुनाव जीते। लेकिन उसके बाद वह 2024 के आम चुनाव में भदोही सीट से लोकसभा का चुनाव लड़े और जीत गए। उनके सांसद बनने के बाद मझवां सीट रिक्त हो गई। इस पर भी निषाद पार्टी की उम्मीदवारी का कयास लगाया जा रहा था, लेकिन भाजपा ने सुचिस्मिता मौर्य को अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया। सुचिस्मिता उद्योगपति व पूर्व विधायक स्व. रामचंद मौर्य की पुत्रवधू हैं। वह एमबीए की हुई हैं और राजनीति में खासा दखल रखती हैं। उनका कालीन का व्यवसाय है।
भाजपा, सपा व बसपा प्रत्याशी घोषित होने के बाद मझवां विधानसभा में चुनावी सरगर्मियां तेज हो गई हैं. सभी सियासी दल चुनाव में जीत का दावा कर रहे हैं. इस सीट पर पिछड़ा वर्ग, दलित, ब्राह्मण और बिंद मतदाताओं का प्रभुत्व है। जातीय समीकरण की बात की जाए तो इस सीट पर दलित, ब्राह्मण, बिंद वोटरों की संख्या करीब 60-60 हजार है। इनके अलावा कुशवाहा वोटर 30 हजार, पाल 22 हजार, राजपूत 20 हजार, मुस्लिम 22 हजार, पटेल 16 हजार हैं। 1960 में अस्तित्व में आई इस सीट पर ब्राह्मण, दलित और बिंद बिरादरी का बर्चस्व है। मिर्जापुर लोकसभा सीट के तहत यह सीट आती है। मिर्जापुर से लगातार तीसरी बार अपना दल एस प्रमुख अनुप्रिया पटेल सांसद बनी हैं। मझवां विधानसभा सीट कई दिग्गजों का राजनीतिक अखाड़ा रह चुका है। लोकपति त्रिपाठी भी यहां से विधायक चुने जा चुके हैं। साल 1952 में मझवां विधानसभा सीट अस्तित्व में आया था। क्षेत्र में ब्राह्मण और बिंद बिरादरी का ज्यादा दबदबा रहा है। 2002 से लगातार तीन बार इस सीट पर रमेश बिंद का कब्जा था। हालांकि 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की सुचिस्मिता मौर्य ने रमेश बिंद को हरा दिया था।
मझवां सीट बहुत लंबे समय तक रिजर्व सीट रही थी, लेकिन 1974 में यह सामान्य सीट हो गई। 1952 में कांग्रेस के बेचन राम, 1957 में कांग्रेस के बेचन राम, 1960 में कांग्रेस के बेचन राम, 1962 में भारतीय जनसंघ के राम किशुन, 1967 में कांग्रेस के बेचन राम, 1969 में कांग्रेस के बेचन राम, 1974 में कांग्रेस के रुद्र प्रसाद सिंह, 1977 संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के शिवदास, 1980 में कांग्रेस के लोकपति त्रिपाठी चुनाव जीते थे। 1985 में कांग्रेस के लोकपति त्रिपाठी, 1989 में जनता दल के रुद्र प्रसाद, 1991 में बसपा के भागवत पाल, 1993 में बसपा के भागवतपाल, 1996 में भाजपा के रामचंद्र, 2002 में बसपा के डॉक्टर रमेश चंद बिंद, 2007 में बसपा के रमेश चंद बिंद, 2012 में बसपा के रमेश चंद बिंद, 2017 में भाजपा के टिकट पर सुचिष्मिता मौर्य ने चुनाव जीता, 2022 में निषाद पार्टी के विनोद बिंद ने चुनाव जीता।
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